*दिल की बातें*
(कविता)
कैसी कश्मकश में है ये जिंदगी तू ,
ना किसी की चाहत, ना किसी की आरजू
ना कोई अपना लगता, ना बेगाना
कुछ मिले तो खुशी ना मिले तो गम
ऐसे अंदाज में ही जी रहें हैं हम
मन में तूफानों का सैलाब है
फिर भी लबों पर इक हसीन मुस्कान है
कोई मिन्नते करता,कोई दर-दर भटकता
कोई महलों में रहकर भी सारी रात है जगता
किसी की ख्वाहिश मरते दम तक ना होती पूरी
तो कोई किस्मत को ही समझ बैठता अपनी मजबूरी
लाखों की भीड़ में कोई रहता अकेला
तो किसी अकेले के लिए लगता हजारों का यहाँ मेला
कहीं ईमानदारी महँगी पड़ती
तो कहीं रिश्वतखोरों के लिए ताली है बजती
गरीबों का खून है चूसा जाता
अमीरी का गुण यहाँ हर कोई गाता
मासूम सी कलियों को रौंदा जाता
दरिंदो का अब यहाँ ताँता है लगता
शिक्षा का अब व्यापार चल रहा
पढ़-लिख युवा बेकार है पड़ा
अंधविश्वासों की झड़ी सी है लगी
मानवता की पल-पल बली चढ़ रही
अंधकारमय जग है ये हो रहा
पता नहीं कब कौन चल पड़ा ...।
***
पता:लक्ष्मी बाकेलाल यादव
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Nice one
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery nice
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