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Monday, 4 November 2019
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प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Monday, November 04, 2019
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Sunday, 3 November 2019
मेरे दिये (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह
मेरे दिये
(कविता)
मिट्टी के भी दीपक लेलो बाबूजी।
मेरे घर भी दीवाली
है बाबूजी।
शाम ढले मैं भी कुछ
घर ले जाऊंगा।
दिल बच्चों का रह
जायेगा बाबूजी ।
त्यौहारों की रौनक
सिर्फ विदेशों में।
भारत में तो
राजनीति है बाबूजी।
डोकलाम तो
घड़ी-घड़ी चिल्लाते हो।
बंगले पर फिर चीनी
लडियाँ बाबूजी।
अपनापन-अपनत्व बहुत
ही मंहगा है।
तुम चीनी सामान उठा
लो बाबूजी।
हम लोगों की क्या
कोई दिवाली है?
दीपक भी है
खाली-खाली बाबूजी।
-०-
सुरजीत मान जलईया
सिंह
गांव - नगला नत्थू , पोस्ट
- नौगाँव , तहसील - सादाबाद , जिला -
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
वर्त्तमान पता: दुलियाजान, असम.
प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Sunday, November 03, 2019
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शब्दों के प्रभाव! (कविता) - सुरेश शर्मा
शब्दों के प्रभाव!
(कविता)
कभी व्यथित किया ,
तो कभी प्रफुल्लित किया ;
और कभी झकझोर के रख दिया ।
शब्दों के प्रभाव ने,
किसी के आंगन मे खुशियाॅ बिखेरी ,
तो किसी के आंगन को ही बिखेर दिया ;
और कभी तो डांवाडोल कर दिया ।
शब्दों के प्रभाव ने,
किसी को खूब हंसाया,
तो किसी को खूब रुलाया भी;
और कभी तो कही का भी छोड़ा नही ।
शब्दों के प्रभाव ने,
किसी के कोमल मन को सहलाया ,
तो कभी किसी के मन को लताड़ा भी ;
और कभी तो तार -तार करके भी नही छोड़ा ।
शबदों के प्रभाव ने ,
किसी के जीवन को उजाड़ा ,
तो किसी को सुन्दर से बसाया भी ।
और किसी को तो तीतर - वितर करके छोरा ।
शब्दों के प्रभाव ने ,
किसी को पूजना सिखाया ,
तो किसी को नफरत करना ।
और किसी को तो गर्त मे ढकेल कर छोरा ।
शब्दो के प्रभाव ने ,
किसी के जेहन मे जहर घोला
तो किसी मे मधू -सी मिठास ।
और किसी को तो आजीवन कड़वा बना दिया ।
शब्दो के कड़वे और कोमल प्रभाव ने
बड़ी ही अहम भूमिका निभाई है
हमारे महत्वपूर्ण जीवन मे ।
शव्द -प्रभाव के कठोर प्रहार ने
मनुष्य के जीवन के जीने का आज,
अर्थ ही बदल के रख दिया है ।
-०-सुरेश शर्मा
-०-
***
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प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Sunday, November 03, 2019
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गाँव में (ग़ज़ल) - अंजलि गुप्ता 'सिफ़र'
गाँव में
बुढ़िया गूगल सी सयानी है अभी तक गाँव में
कहते थे सब जिसको नानी है अभी तक गाँव में
इक शजर यादों का हर घर में लगा है आज भी
सौंधी मिट्टी की निशानी है अभी तक गाँव में
बेज़ुबानों के लिए रोटी परिंदों के लिए
छत पे इक बरतन में पानी है अभी तक गाँव में
एक क्यारी से हटाकर दूसरी में रोपना
रिश्तों की ये बाग़वानी है अभी तक गाँव में
सात रंगों से रँगी हरसू फ़ज़ाएँ हैं वहाँ
और चुनर धरती पे धानी है अभी तक गाँव में
बिन बुलाये बिन बताये आते जाते हैं सभी
ख़ुशदिली से मेज़बानी है अभी तक गाँव में
नींद आ जाती थी जिसको सुनते सुनते ही 'सिफ़र'
दादा दादी की कहानी है अभी तक गाँव में
प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Sunday, November 03, 2019
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तुमने जो दिए हैं जख्म (कविता) - संजय कुमार सुमन
तुमने जो दिए हैं जख्म
(कविता)
देखता हूं तुझको तो
फिर लेता हूं
अपनी निगाहें
कहीं पुरानी यादें
ताजा ना हो जाए
और
तुमने जो दिए हैं
जख्म
वह हरे ना हो जाए
तुमने जो किए हैं
प्यार में मुझ पर सितम
वह दिल में
अब तक
है दफन
तुमने जो दिया है
दर्द
उसे अब तक
हमने समेट रखा है
तुम्हारे दर्द,सितम,
जख्म और तुम्हारे प्यार
एक ही साथ रहता है
मेरे दिल में
देखता हूं
तुझको तो फेर लेता हूं
अपनी निगाहें।
-0-
संजय कुमार सुमन
प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Sunday, November 03, 2019
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