*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Monday, 26 October 2020

सृजन महोत्सव पटल का आरंभ दिन 26 अक्तूबर

 

सादर सस्नेह नमस्कार,
           आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आज 26 अक्तूबर 2020 के दिन सृजन महोत्सव पटल को एक वर्ष पूरा होने जा रहा है. पूरे वर्ष में साहित्य सृजन महोत्सव पर आपका लेखन प्रकाशित करते हुए साहित्यिक सृजन का आनंद उठाते हुए भारतवर्ष सहित विदेशों तक पहुँचाने का कार्य सृजन महोत्सव पटल ने किया है. इस पटल पर देश सहित विदेशी रचनाकारों का प्यार बहुत मिला और मिल रहा है. इससे हम अभिभूत है. आपका स्नेह और साहित्य सृजन के प्रचार-प्रसार में योगदान मिलता रहेगा, यह विश्वास है.

           आजतक सृजन महोत्सव लगभग ३२५ साहित्यकारों के परिचय सहित १२०० से अधिक साहित्यिक रचनाएँ गद्य एवं पद्य विधा कि प्रकाशित करके बहुत ख़ुशी हो रही है. हम सभी सृजन शिल्पियों का हार्दिक अभिनंदन करते है. साथ ही उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है. भविष्य में भी आपका स्नेह औरप्रेम यूं ही मिलाता रहें.

             आज तक इस पटल को लगभग ५३५०० लोगों ने भेट कर आशीष प्रदान किया है. हम सभी पाठक वर्ग का भी अभिनंदन करते हैं.
          

सृजन महोत्सव पटल की वर्षगाँठ पर इस कार्य को बढ़ावा देने हेतु आपसे निवेदन है कि सृजन महोत्सव पटल पर समय-समय पर प्रकाशित हो रही सृजन महोत्सव पटल की प्रस्तुति, आपकी रचनाओं की प्रस्तुति, सम्मानित प्रमाणपत्र आदि पर अपने अमूल्य अभिमत एवं सुझाव प्रदान कर हमारा हौसला बढाए. साथ ही प्रतिदिन प्रकाशित हो रही रचनाओं के लिंक अपने मित्र, साहित्यकार, हिंदी प्रेमी एवं पठन में रूचि रखने वाले हर व्यक्ति तक पहुँचाने का कष्ट करें.

 
         आप सभी जानते है कि सृजन महोत्सव ब्लॉग की नींव रखने के बाद 'सृजन महोत्सव पत्रिका' का प्रवेशांक भी प्रकाशित हो चूका है. उसकी ई कापी सभी तक व्हाट्सअप, फेसबुक आदि के माध्यम से पहुंचाई है. इस पत्रिका का द्वितीय अंक नवंबर-दिसंबर 2020 है. इस हेतु पूर्व पत्रिका पर अभिमत सुझाव एवं अपनी अप्रकाशित स्तरीय रचनाएँ 25 अक्तूबर 2020 तक भेजकर सहयोग प्रदान करें.!!!

ई-मेल पता - editor.srijanmahotsav@gmail.com

srijanmahotsav@gmail.com


         सृजन महोत्सव ब्लॉग आप सभी का मंच है. इसकी वर्षगाँठ पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएँ एवं बधाइयाँ!!!

भवदीय,
संपादक द्वय


राजकुमार जैन 'राजन' (98281219919)

  

मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' (9730491952)
***

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॥कुछ अनकहे अल्फ़ाज़॥ (कविता) - अवनी शिवांग दवे 'शिवेश्वरी'


॥कुछ अनकहे अल्फ़ाज़॥
(कविता)

कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ आज मेरे होठों पर आए हैं।
ख्वाबों में आते हो तुम, तुम्हारे कई सपने सजाए हैं।

ओ मेरे सपनों के सौदागर,
कहां हो तुम?
बताओ कि हो तुम फरिश्ता या जादूगर?
नशा तुम्हारा ऐसा छाया मुझ पर
मदहोश होकर घूम रही हूं
 नहीं है मुझको दुनिया की फिकर।

तोड़ो तुम भी यह खामोशी
ना जाने छाई कैसी यह मदहोशी?
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ मेरे में बयां कर रही हूं
अब तो मत तड़पाओ बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।

-०-
पता
अवनी शिवांग दवे 'शिवेश्वरी'
वड़ोदरा (गुजरात)

-०-



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"चुनावी गीत" ( व्यंग कविता) - अभियंता प्रिंस कुमार

 

"चुनावी गीत"
(व्यंग्य कविता)

(तर्ज :-आओ बच्चे तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की..... )
आओ बच्चों तुम्हे बतायें,
 शैतानी शैतान की... ।
नेताओं से बहुत दुखी है,
 जनता हिन्दुस्तान की...।।

बड़े-बड़े नेता शामिल हैं,
 घोटालों की थाली में ।
सूटकेश भर के चलते हैं,
 अपने यहाँ दलाली में ।।

देश-धर्म की नहीं है चिंता,
 चिन्ता निज सन्तान की ।
नेताओं से बहुत दुखी है,
 जनता हिन्दुस्तान की...।।

चोर-लुटेरे भी अब देखो,
 सांसद और विधायक हैं।
सुरा-सुन्दरी के प्रेमी ये,
 सचमुच के खलनायक हैं ।।

जनता के आवंटित धन को,
 आधा मंत्री खाते हैं ।
बाकी में अफसर ठेकेदार,
 मिलकर मौज उड़ाते हैं ।।

लूट खसोट मचा रखी है,
 सरकारी अनुदान की ।
नेताओं से बहुत दुखी है,
 जनता हिन्दुस्तान की...।।

थर्ड क्लास अफसर बन जाता,
फर्स्ट क्लास चपरासी है,
होशियार बच्चों के मन में,
 छायी आज उदासी है।।

गंवार सारे मंत्री बन गये,
 मेधावी आज खलासी है।
आओ बच्चों तुम्हें दिखायें,
 शैतानी शैतान की...।।

नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की.... |
-०-

पता
अभियंता प्रिंस कुमार
सोनदीपी, बेगूसराय (बिहार)

-०-



***
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*दर्द-ए-दिल* (ग़ज़ल) - माताचरण मिश्र



*दर्द-ए-दिल*
(ग़ज़ल )
मैं तो  झुकता  रहा  चोट  खाता  रहा
उठ रहे दर्द को फिर भी सहता  रहा

गम बयाँ ना किया खुद समेटे रहा
बिन हँसी के भी खुद ही मैं हँसता रहा

थी ये  कोशिश अकेले ही  लड़ता  रहूँ
जीतकर भी  मैं फिर  हार सहता  रहा

उनसे मिलकर व्यथित मेरा मन हो गया
फिर भी हँस कर के उनको हँसाता रहा

वक्त ने भर  दिया घाव दिल के  मेरे
जिस  वक्त  ने  दर्द- ए- दिल था  दिया

जिसको हर पल बुलाता रहा मैं सदा
उसने पलभर में रिश्ते को ठुकरा दिया

फरेब भरी दुनिया से ना करना तू उम्मीद
जो काँटों भरी सौगात लेकर के आई थी

छला गया अपनों से जमाने में सदा
जिनके लिए लहू को बहाए थे हमने
 
मैंने  हर  वार पर  सर  झुकाए  हुए
अपने  दिल पे  सदा वार  सहता रहा-०-

पता
माताचरण मिश्र
मुंबई (महाराष्ट्र)

-०-



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Sunday, 25 October 2020

रावण के दश मुख नहीं थे (आलेख) - डाॅ. महेंद्रकुमार जैन ‘मनुज’

 

 

महात्मा के महात्मा
(आलेख)
रामायण का कथानक बहुत प्रसिद्ध है लेकिन यह कथानक और इसके पात्रों के नाम अलग अलग धर्मों ही नहीं लेखकों के अनुसार भी कुछ परिवर्तित हैं। जैन परम्परा में भी रामायण कई आचार्यों द्वारा लिखी गई है। राम यशोरसायन, जैन रामायण, पहुम चरिउ और पद्मपुराण आदि। इनमें पद्मपुराण अधिक प्रसिद्ध है। पद्म नाम रामचन्द्र जी का है इसलिए उनके पौराणिक कथानक को पद्मपुराण नाम दिया गया है। जैन साहित्य में त्रेषठ शलाका महापुरुषों के जीवन चरित्रों का वर्णन होता है। 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 नारायण एवं 9 प्रतिनारायण ये सब मिलकर 63 हुए। जो त्रिषष्ठि शलाकापुरुष कहलाते हैं। पद्मपुराण के अनुसार राम आठवें बलभद्र थें, लक्ष्मण आठवें नारायण और रावण आठवें प्रतिनारायण थे। प्रतिनारायण अत्यन्त बलशाली व बुद्धिमान विवेकी सम्राट होता है, वह अपने बल से तीन पृथ्वी को जीतकर अर्द्धचक्रवर्ती सम्राट बनता है और बहुत लम्बे समय तक सुखों का भोग करता हुआ निराबाध राज्य करता है। उसके 18 हजार रानियां होती हैं और 16 हजार मुकुटबद्ध राजा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
ऐसे प्रतिनारायण को अपने बड़े भाई बलभद्र के सहयोग से जीतकर नरायण अर्द्धचक्रवर्ती सम्राट बनता है। नारायण की भी प्रतिनारायण से अधिक विभूति होती है। यह सब डाॅ. शुद्धात्मप्रभा ने अपनी पुस्तक राम कहानी में विसतार से लिखा है।
जैन मान्यतानुसार रावण राक्षस वंशी था, उसके दश सिर नहीं थे, एक ही था। किन्तु उसका नाम दशानन था। इसका भी अलग प्रसंग है। रत्नश्रवा के यहां बालक के जन्म के समय कई विचित्र घटनायें हुईं। बहुत पहले मेघवाहन के लिए राक्षसों के इन्द्र भीम ने जो हार दिया था, हजार नागकुमार जिसकी रक्षा करते थे, जो बहुत कांतिमान था और राक्षसों के भय से इसे किसी ने नहीं पहना था। ऐसे हार को उस बालक ने अनायास ही हाथ से खींच लिया। बालक को मुट्ठी में हार लिये देख माता घबड़ा गई, उसने बालक के पिता को बुलाया, पिता ने यह दृश्य देखकर कहा यह अवश्य ही कोई महापुरुष होगा। माता ने निर्भय होकर वह हार उस बालक को पहना दिया। उस हार में जो बड़े बड़े स्वच्छ रत्न लगे हुए थे उनमें असली मुख के सिवाय नौ मुख और भी प्रतिबिम्बित हो रहे थे इसलिए उस बालक का नाम दशानन रखा गया।
जैन मान्यता के पद्मपुराण के अनुसार दशानन का रावण नाम कैलाश पर्वत उठाते समय की घटना के कारण पड़ा था। मान्यतानुसार दिग्विजय के समय रावण बालि से युद्ध के लिए तत्पर हो गया था, इस घटना से बाली ने दिगम्बरी दीक्षा ले ली। एक बार रावण नित्यलोक की रत्नावली कन्या से विवाह करके सपरिवार आकाशमार्ग से लोट रहा था। मार्ग में कैलाश पर्वत के ऊपर उसका विमान रुक गया। अपने मंत्री से कैलाश पर्वत पर बाली मुनि तपस्या कर रहे हैं यह सूचना पाकर क्रोधित हो दशानन ने अपने विद्याबल से बाली सहित कैलाश पर्वत उखाड़कर समुद्र में फेकना चाहा। पर्वत उठाया ही था कि बाली मुनि ने सोचा ऐसे तो इस पर बने अनेक जिनालय नष्ट हो जायेंगे और वन्दना करने वाले मनुष्य व अनेक प्राणी मर जायेंगे। उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत के मस्तक को दवा दिया, इससे दशानन अत्यंत व्याकुल होकर चिल्लाने लगा। क्योंकि उसका शरीर कैलाश पर्वत से दबने लगा था। करुण चीत्कार की रव के कारण तब से वह दशानन रावण के नाम से जाना जाने लगा। रावण की पत्नी मन्दोदरी की अनुनय पर बाली मुनि ने अपना अंगूठा शिथिल किया। बाल्मीकि रामायण के अनुसार शिवजी ने अपना अंगूठा दवाया था। शेष घटना लगभग समान है।
रावण में अनेक गुण होते हुए भी वह सीता पर मोहित हो गया और सीता का हरण कर लिया। किन्तु  उसका यह नियम था कि जब तक कोई स्त्री स्वयं नहीं चाहेगी तब तक वह उसे छुएगा भी नहीं। इसलिए उसने सीता को अनेक प्रलोभन दिये, बहुत समझाया पर सीता ने तो अन्न-जल भी त्याग दिया था। उल्लेख आता है कि बाद में रावण के परिणाम बदल गये थे, उसने सीता को वापिस करना चाहा किन्तु उसका बलशाली होने का अभिमान आड़े आ गया था और उसने कहा में राम को जीतने के बाद ही उन्हें सीता वापिस करूॅंगा। और वह युद्ध में राम के हाथों मारा गया। जैन ग्रंथानुसार नारायण के द्वारा ही प्रतिनाराण मारा जाता है, इस नियमानुसार राम के सहयोग से लक्ष्मण के द्वारा रावण मारा गया।  
-०-
पता:
डाॅ. महेंद्रकुमार जैन ‘मनुज’
इंदौर (मध्यप्रदेश)

 

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