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Saturday, 4 January 2020

तुम्हारी याद का हरदम (ग़ज़ल) - अमित खरे

तुम्हारी याद का हरदम
(ग़ज़ल)
तुम्हारी याद का हरदम खजाना साथ रहता है
फकत तुम ही नहीं रहते जमाना साथ रहता है

तमन्ना तो वह भी रखता है हमारे पास आने की
मगर मजबूरियाँ कुछ हैं बहाना साथ रहता है

मजा आता है अक्सर उठने में और मनाने में
किसी के रूठने में भी मनाना साथ रहता है
हुए हम बेवजह बदनाम उनसे दिल लगाकर के
वह आते हैं कभी मिलने तो जाना साथ रहता है

उसी की जिंदगी कटती 'अमित 'दुख दर्द में देखी
किसी की जिंदगी में जब बेगाना साथ रहता है
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




***
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1 comment:

  1. सुन्दर गजल के लिये आदेणीय आँप को बहुत बहुत बधाई और धन्है।

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