माँ और मैं
(कविता)
मेरे सर पे दुवाओं का घना साया है।ख़ुदा जन्नत से धरती पे उतर आया है।।
फ़कीरी में मुझे पैदा किया, पाला भी।
अमीरी में लगा मुँह - पेट पे, ताला भी।।
रखा हूँ पाल, घर में शौक से कुत्ते, पर।
हुआ छोटा बहुत माँ के लिए, मेरा घर।।
छलकती आँख के आँसू, छुपा जाती है।
फटे आँचल में भरकर के, दुवा लाती है।।
अवध, माँ इश्क है, रूह है, करिश्माई है।
कहाँ कब लेखनी, माँ को समझ पायी है!
-०-
डॉ अवधेश कुमार अवध
गुवाहाटी(असम)
डॉ अवधेश कुमार अवध
गुवाहाटी(असम)
-०-
No comments:
Post a Comment