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Saturday 4 January 2020

◆ धुंध◆ (कहानी) - अलका 'सोनी'

◆ धुंध◆
(कहानी)
दूसरे बच्चों की तरह मिनी भी चाहती थी कि वह भी बाहर घूमे-फिरे म त्यौहारों में लगने वाले मेलों का जी -भर आनंद ले। लेकिन उसकी मां उसे कहीं भी नहीं जाने देती थी। कहीं बाहर जाना भी पड़े तो कार के शीशे चढ़ाकर जाते थे वो लोग। मिनी चाहती थी कि कार के शीशे खोलकर वह बाहर हो रही बरसात का आनंद अपनी हथेली पर पड़ती बूंदों की ठंडक से महसूस करे। जब मेले लगे तो अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती करे। परन्तु ऐसा उसे करने नहीं मिलता था और वो मन मसोस के रह जाती थी। एक दिन उसका बाल सुलभ मन विद्रोह कर बैठा और उसने ज़िद पकड़ ली कि वो मेले में जाएगी तो बस जाएगी। उसके माता-पिता उसे कितना समझाये लेकिन वो नहीं मानी। अन्ततः सभी मेला जाने की तैयारी करने लगे।
उधर उसकी मां अपने पर्स में " मास्क " और जरूरी दवा रखने लगी। वो किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत लग रही थी। सभी मेले में पहुंचे।
वहाँ चारो तरफ मौजूद भीड़, तेज़ परफ्यूम की गंध, पुराने तेल में पकते पकवान, लोगों के पैरों से उड़ती हुई धूल और जगह-जगह फेंके पॉलीथिन के बैग देख उनका मन खिन्न हुआ जा रहा था। मिनी को उसकी मां ने मास्क लगाने को कहा, लेकिन मेले देखने की ख़ुशी में वो अनदेखा करती रही अपनी मां को। थोड़ी देर में वो सब मेले के मुख्य भाग में पहुंचे। अंदर की तरफ, और ज़्यादा भीड़, और ज़्यादा गन्दगी थी। इस प्रदूषण का मिनी पर बुरा प्रभाव पड़ना शुरू हो गया और वह खाँसने लगी।धीरे - धीरे उसकी खांसी बढ़ने लगी, चेहरा लाल हो गया। जब तक वह मास्क पहनती, उसे उल्टी आना शुरू हो गई। आनन-फानन में उसके पिता उसे गाड़ी में लेकर हॉस्पिटल ले जाने लगे।
पूरा शहर मेले की खुमारी में था और वे उसे लेकर मेले की विपरीत दिशा में शहर के बड़े हॉस्पिटल की ओर जा रहे थे। जाते -जाते रात के 2 बज चुके थे। इमरजेंसी में मिनी को एडमिट कराना पड़ा। अंदर उसका इलाज हो रहा था और बाहर आकाश में धूल की एक परत सी जमती जा रही थी। जो अपनी मटमैली धुंध में शहर को लील रही थी।-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

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1 comment:

  1. कहानी को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार....💐💐

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