ज्ञान की जगत जननी मां
(कविता)
हे ज्ञान की जगत जननी मां ,
अज्ञानता को मुझसे दूर हटाकर ;
मुझमे ज्ञान संचारित कर दे ।
हाथ फैलाए तेरे आस मे हूं ,
अपनी ज्ञान से मेरी झोली भर दे ।
हे ज्ञान की जगत जननी मां ,
मुझसे कोई व्यक्ति व्यथित ना हो ;
ऐसी ज्ञान में मेरी विनम्रता दे दे ,
मेरी स्वभाव से सभी प्रभावित हो ;
ऐसी कोमलता तू मुझमे भर दे ।
हे मधुर वीणा वादिणी मां ,
अपनी वीणा की तान से ;
मुझमे मधुर संगीत का संचार कर ।
अपनी मधुर वाणी से मुग्ध कर लूँ ,
ऐसी मिठास से मुझे आवाद कर दे ।
सुरेश शर्मा
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