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Thursday, 3 December 2020

हल्दी घाटी-युध्द (कविता) - रामगोपाल राही

 

हल्दी घाटी-युध्द
(कविता)
बिगुल बजे रणभेरी संग में ,
राणा की ललकार उठी |
मुगल सेना  से -टकराने ,
राणा की तलवार उठी ||

रणवीरों  की आवाजों से ,
हल्दीघाटी गूंजी थी |
शाही सेना राणा आगे ,
लगती धूजी धूजी थी ||

एक तरफ महाराणा उनका ,
शौर्य तेज महान था |
सामने सम्राट ,अकबर का ,
गर्व बड़ा अभिमान था ||

युद्ध नगाड़े बजे निरंतर ,
शंख बजे रणभेरी थी |
बुलंन्द हौसले महाराणा के ,
हुई न थोड़ी देरी थी ||

भीषण युद्ध लड़ा था उनने ,
 मरे मुगल दल सेनानी |
छक्के छूटे मुगलों के थे ,
माँग सके ना वो पानी ||

महाराणा की सेना ने   सच ,
नाको चने चबाए थे |
आकुल व्याकुल मुगल सैन्य के ,
पल-पल होश उड़ाए थे ||

भिड़े रुण्ड से रूण्ड मुंड तो ,
कुचले अश्व की टापों से |
धूल धूसरित गगन दिशाएँ ,
धूल अश्व की टापों से ||

हल्दीघाटी युद्ध का समझो ,
खौफनाक वो मंजर था |
खून की नदियाँ बह निकली थी ,
बड़ा भयानक मंजर था ||

महाराणा का भाला भारी ,
उसके वार प्रहार से |
शत्रु मरे अनेकों उनकी 
दूधारी तलवार से ||

ठोकर खाते रुण्ड धड़ों पर , 
 घोड़े दौड़े जाते थे |
घोड़ों की टापू से बिखरे ,
शव छलनी हो जाते थे ||

 सैनिक कम थे पर राणा की ,
 क्षमता में थी कमी नहीं |
लड़ते ही वो  रहे निरंतर ,
गति लड़ने की थमी नहीं ||

हल्दीघाटी पट गयी थी ,
मुगल सैन्य दल लाशों  से |
दिवस  दिशा नभ धूमिल धूमिल ,
धूल अश्व की टापों से ||

मुगल सेना हौसला पस्त ,
पकड़ सकी  न राणा को |
युद्ध में भी छका छका वो ,
 जीत सकी ना राणा को ||

 धैर्य धीरता  और वीरता ,
महाराणा सी कहीं नहीं |
महाराणा के शौर्य तेज सी 
मिलती कोई नजीर नहीं ||

बलशाली महा योद्धा राणा ,
उनके जैसा और नहीं |
इतिहास में उनसे बढ़ के ,
कोई भी सिरमोर नहीं ||

स्वाभिमानी महाराणा की ,
गाथा गौरवशाली है |
शूर वीरता गरिमा उनकी ,
जग में महिमा शाली है ||
-०-
पता
रामगोपाल राही
बूंदी (राजस्थान)
-०-



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