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Thursday, 3 December 2020

इंसानियत (लघु एकांकी) - डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'

 

इंसानियत
(लघु एकांकी)
दामू: कहाँ जा रहे हो भाई ? 
शंकर : बाजार  जा रहा हूँ ।
दामू : अरे वाह !
क्या खरीदने  जा रहे हो भाई ?
शंकर :कुछ ज्यादा नहीं, 
बस थोड़ा ही ...
 दामू:  तुम  जिस दिशा की ओर चल पड़े हो,वहाँ तो आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है ।
और ये क्या तुम्हारा  थैला तो पूरी तरह से भरा हुआ लग रहा है ।
शंकर: चलो  ठीक है, आता हूँ।मुझे विलंब हो रहा है ।
प्रतिबंधित क्षेत्र में खरीददारी और भरे हुए थैले के साथ ,
चलो चलकर देखते हैं ।
(दामू मन ही मन कहता है)
शंकर :साहब, 
मुझे देर तो नहीं हुई, 
क्षमा करना ।
आज नाश्ते में आलू पोहा बनाया है ना ।
आलू के उबलने में देरी हो गई ।
साहब : अरे भाई, 
आप रोज हम सुरक्षा कर्मीयों को मुफ्त में  चाय नाश्ता दे रहे हो, 
और उपर से क्षमा याचना कर रहे हो ।
शंकरा  :साहब ,
आप भी तो अपने परिवार से दूर हम लोगों की सुरक्षा हेतु दिन रात इस विराने से बाजार में ठहरे हो।
(शंकर और साहब के संभाषण के बीच दामू आ जाता है, तभी एक सुरक्षाकर्मी जोर से दामू को डंडा दे मारता है ।)
शंकर: (जोर से चिल्लाते हुए) साहब मैं इसे जानता हूँ, मत मारीए इसे ।
साहब: क्यों आए हो यहाँ ?
दामू:(अपनी टांगों को सहलाते हुए) साहब मैं ये देखने आया था कि शंकर इस विराने से  बाजार में क्या खरीदने आया था ।
साहब: देख लिया तुमनें, 
क्या खरीदने आया था ?
दामू: हाँ साहब  देख लिया कि
भरा हुआ थैला , बाजार में खाली कर ,
शंकर ने ऐसी अनमोल चीज खरीदी है जिसका कोई मूल्य नहीं हो सकता  ।
साहब: कौनसी चीज है वो।
दामू: साहब इंसानियत, इंसानियत है वह चीज ।
-०-
डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'
अकोला (महाराष्ट्र)
-०-

***
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