जिंदगी की जंग
(सजल)
(सजल)
जिंदगी की जंग है अब क्या कहूँ,
कोन कितना संग है अब क्या कहूँ|
नफ़रते यूँ खेलकर होली गयी,
जिंदगी बे-रंग है अब क्या कहूँ|
हें खड़े अपने सभी मुंह फेर कर
हाल थोड़ा तंग है अब क्या कहूँ|
मजहबी सारे सियासी हो गये
पाठ पूजा भंग हे अब क्या कहूँ|
गुनगुनाया गीत जो श्रंगार का
हो गया हुड़दंग है अब क्या कहूँ|
आदमी तो है वही उसका मगर
आज बदला ढंग है अब क्या कहूँ|
संत भी पहुंचा हुआ था जो 'मृदुल'
हो गया सारंग है अब क्या कहूँ|
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पता:
मृदुल कुमार सिंह
पता:
मृदुल कुमार सिंह
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