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Wednesday 16 December 2020

जिंदगी की जंग (ग़ज़ल) - मृदुल कुमार सिंह

 

जिंदगी  की  जंग
(सजल)
जिंदगी  की  जंग है अब क्या कहूँ, 
कोन कितना संग है अब क्या कहूँ|

नफ़रते  यूँ   खेलकर   होली   गयी, 
जिंदगी  बे-रंग  है  अब  क्या  कहूँ|

हें  खड़े  अपने  सभी  मुंह फेर कर
हाल  थोड़ा  तंग है  अब  क्या कहूँ|

मजहबी   सारे   सियासी   हो  गये
पाठ  पूजा  भंग  हे  अब क्या कहूँ|

गुनगुनाया   गीत   जो   श्रंगार  का
हो गया  हुड़दंग है  अब  क्या कहूँ|

आदमी  तो  है  वही  उसका  मगर
आज  बदला ढंग है अब क्या कहूँ| 

संत भी पहुंचा  हुआ था जो 'मृदुल'
हो  गया सारंग  है  अब  क्या कहूँ|
-०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
अलीगढ़ (अलीगढ़) 

-०-


***
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