मेरी भी चाहत
(ग़ज़ल)
मेरी भी चाहत थी देखूँ कभी नज़ारा ज़न्नत का,
बिखरीं यादें टूटे सपने हाल हुआ यह चाहत का।
जिस इज़्ज़त में बदनामी हो क्या करना उस इज़्ज़त का,
मजबूरी में काम न दे तो क्या मतलब उस बरक़त का।
जो माँगो वह मिले नहीं तो लाभ भला क्या मन्नत का,
गलती करने पर भी माफ़ी ये है असर मुरव्वत का।
रोने वाले रोया करते हँसने वाले हँसते हैं,
इस दुनिया में देखो कैसा खेल अजब है क़ुदरत का।
आँसू- पीड़ा- ग़म- तन्हाई - उलझन- टूटन- बेताबी,
जिस रिश्ते में पेंच बहुत हो रिश्ता वही मुहब्बत का।
करने पर भी मिले नहीं तो समझो किस्मत खोटी है,
बिना किये ही दे दे सब यह काम है केवल किस्मत का।
प्यास अनबुझी भूख अधूरी पेट-पीठ का पता नहीं,
कपड़े-लत्ते फ़टे-पुराने यही नतीज़ा ग़ुरबत का।
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वाह! सुन्दर अरि सुन्दर रचना है।
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