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Wednesday, 16 December 2020

वादा-ए-वफ़ा (ग़ज़ल) - अलका मित्तल

  

वादा-ए-वफ़ा
(ग़ज़ल)
वादा-ए-वफ़ा निभाने का जमाना नहीं रहा,
चाँद तारे तोड़कर लाने का जमाना नहीं रहा।

सिमटकर वक्त की चादर भी छोटी हो गई,
अब मिलने और मिलाने का जमाना नहीं रहा।

दोस्ती के मायने भी अब पहले से कहाँ रहे?
इक दूजे पे जाँ लुटाने का जमाना नहीं रहा।

कुछ मसअले हल हो जाते थे आपस में भी,
दूसरों के काम आने का अब जमाना नहीं रहा।

दूर कहाँ होते थे कभी जो दिल के क़रीब थे,
अब रूठे हुओ को मनाने का जमाना नहीं रहा।

हर कोई अब अपने में ही मशगूल हो गया,
अपनो का साथ पाने का जमाना नहीं रहा।

रूह तक जुड़े होते थे कभी दिलों के अहसास,
अब दिलों में बस जाने का जमाना नहीं रहा।
-०-

पता:
अलका मित्तल
मेरठ (उत्तरप्रदेश)

-०-

***
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1 comment:

  1. वाह! हार्दिक बधाई है आदरणीय !

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