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Sunday, 27 October 2019

अपवित्रा (कहानी) - शिखर चंद जैन

अपवित्रा
(कहानी)
अश्विनी की 12 वीं की परीक्षा समाप्त हो गयी थी।मम्मी ने उससे काफी पहले से वादा कर रखा था कि उसे उसकी जीजी रागिनी के घर रानीखेत भेज देगी ताकि वह 15 दिनों तक खूब घूम-फिर सके और परीक्षा की सारी थकान और बोरियत वहाँ की मौज-मस्ती से दूर कर सके.
पापा ने भी कहा, “भेज दो,टूरिस्ट प्लेस है, घूम आएगी।जरा मन बदल जाएगा.”
बस फिर क्या था. पापा ने अगले ही दिन ट्रेन में बैठा दिया. कुल ३ घंटों का ही तो सफर था. अश्विनी ट्रेन में सवार हुई तो उसका दिल दिमाग सब कुछ मानो हवा में उड़ रहे थे। उसकी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी। वह जल्दी से जल्दी जीजी-जीजा के घर पहुंचना चाहती थी और उनकी नई गृहस्थी देखने के साथ-साथ रानीखेत व आसपास के इलाकों में घूमना-फिरना चाहती थी. इसीस बहाने वह अपने उन फेसबुक ग्रेंड्स को भी इम्प्रेस करना चाहती थी जो आए दिन कहीं न् कहीं घूमने-फिरने जाते और वहाँ से ढेर सारी पिक्स अपनी वाल पर पोस्ट करते थे.
ट्रेन ने भी मानो अश्विनी के दिल की सुन ली थी. बिल्कुल राईट टाइम स्टेशन पर उतार दिया. जीजा अपनी कार लेकर आ गए थे. स्टेशन से बमुश्किल सात-आठ किलोमीटर की दूरी पर घर था.
अश्विनी घर पहुंची तो जीजी का घर देखकर इम्प्रेस हो गयी. छोटा-सा बंगला था. अगल-बगल काफी खुली जगह थी. घर में सारी सुख-सुविधाएँ थीं. जीजा अच्छा कमाता था.
घर से पहली बार निकली अश्विनी को जीजा-जीजी ने खूब घुमाया। १३ दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा था जब अश्विनी काईं घूमने या किसी रेस्तरां में खाना खाने न गयी हो.इस बीच पड़ोस के एक लड़के से भी उसकी दोस्ती हो गयी जो हम उम्र था और फेसबुक के माध्यम से उसे पहले से कुछ-कुछ जानता भी था. इस परिचय के कारण दोनों एक दूसरे से काफी हिलमिल गए थे और ढेर सारी बातें करते रहते थे.
एक दिन जीजा-जीजी किसी रिश्तेदार की गमी में चले गए।अश्विनी को अकेला देख पड़ोसी लड़का बात करने के बहाने अश्विनी के पास घर में आ गया. दोनों बातें करने लगे. फिर वही हो गया जिसका अक्सर डर होता है. लड़का अपनी औकात पर आ गया. उसने जबरदस्ती अश्विनी के शरीर को कुचल दिया. अश्विनी को कुछ समझ में नहीं आया कि वह कैसे रिएक्ट करे. वह बुरी तरह डर भी गयी थी.
जीजा-जीजी शाम तक लौट आए थे।लेकिन अश्विनी तब उनसे कुछ न कह पायी. रात भर भावनाओं के ज्वार में डूबने-तैरने के बाद उसने सुबह साहस करके उसने पड़ोसी की घिनौनी करतूत के बारे में बताया तो जीजी-जीजा सन्नाटे में आ गए। उन्होंने कुछ न कहा.
जीजी को दोपहर में महिला मण्डल की मीटिंग में जाना जरुरी था।
उन्होंने पति से कहा, “आज तुम छुट्टी ले लो. देखा न कल अकेला छोड़ गए तो इसने क्या कर डाला।“
अश्विनी को जीजी की बात पर रोना आ गया. इस हादसे में भला उसका क्या कसूर था, अगर वह खुद के साथ हुए बलात्कार को रोक सकती तो क्या रोकती नहीं? खैर,वह कहती भी क्या? मन ही मन अपमान और दर्द का घूँट पीकर रह गयी.
जीजा की पहरेदारी में उसे छोड़कर जीजी चली गयी।
जीजा अश्विनी के पास बैठकर उससे मीठी-मीठी सहानुभूति की बात करने लगा. उसे दिलासा देने लगा. अश्विनी फ़ूट फूट कर रोने लगी। जीजा ने उसके आंसू पोछते हुए अपने आगोश में ले लिया. अश्विनी को जीजा का यह प्यार पिता की छाँव जैसा महसूस हुआ. लेकिन अगले ही पल उसने महसूस किया की जीजा के हाथ उसकी सुडौल छाती और नरम जाँघों के पास रेंग रहे हैं।
अश्विनी ने कसमसा कर खुद को जीजा से अलग करना चाहा।
बोली, “जीजाजी! ये क्या कर रहे हैं आप?”
जीजा ने किसी मंजे हुए खलनायक जैसी दुष्ट मुस्कान के साथ दांत पीसते हुए कहा , “साली...मेरी प्यारी साली क्यों नखरे दिखा रही है? क्या फर्क पड़ जाएगा. एक और सही. तू तो वैसे भी अपवित्र हो ही चुकी है.”
बलिष्ठ जीजा ने अश्विनी की एक न सुनी. उसे बुरी तरह रौंद डाला. अश्विनी बिसूर-बिसूर कर रोटी रही. लेकिन जीजा को उसके रोने से और भी मजा आ रहा था.
तन और मन से टूट चुकी अश्विनी ने जीजा को सबक सिखाने के मकसद से रात को अलग से जीजी को पूरी बात बताई.
जीजी तो मानो फट पड़ी. बोली, “आशू! तू ही कुलटा है. तूने तो मेरे घर को ही अपवित्र कर दिया. बहन मैं हाथ जोड़ती हूँ. तू कल की ट्रेन से ही निकल!”
सुबह अश्विनी को ट्रेन में बैठा दिया गया. माँ और छोटा भाई स्टेशन पर उसका इंतजार कर रहे थे.
माँ ने अपनी बेटी को गले से लगाकर कहा, “मेरी फूल-सी बच्ची. बहुत याद आती थी तेरी.चल घूम आई तो तेरा भी मन बदल गया और जरा बहल गया.”
अश्विनी दुखी भी थी और डरी हुई भी.उसके मन में विचारों का तूफ़ान उमड़ रहा था. उसने कहना चाहा, मम्मी मन तो दूसरों का बहला लेकिन मेरा मन बदल गया. पुरुषों के लिए मैं तो सिर्फ एक शरीर हूँ.पता नहीं अपवित्र होने के बाद भी मुझे क्यों आगोश में लेना चाहा जीजा ने. वह कहना बहुत कुछ चाहती थी लेकिन डर गयी. कहीं माँ ने भी उसे अपवित्र कह कर घर से निकाल दिया तो?
अब वह मन ही मन चाहती थी कि उसकी जीजी कहीं माँ को न बता दे. उधर जीजी डर रही थी कि जीजा की पोल न खुल जाए. जीजा भड़क गया या अरेस्ट हो गया तो उसकी जिंदगी न उजड़ जाए।
दोनों स्त्रियां अपने अपने डरों को जी रही थीं. और इस राज पर आजीवन पर्दा डाल कर ख़ुशी ख़ुशी जीने लगीं.
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संपर्क 
शिखर चन्द जैन
67/49 स्ट्रैंड रोड, तीसरी मंजिल, कोलकाता - 700007 (पश्चिम बंगाल)
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हिन्दी वर्णमाला के व्यंजनों की गज़ल (गज़ल) - डॉ० अशोक ‘गुलशन’


हिन्दी वर्णमाला के व्यंजनों की गज़ल
(ग़ज़ल)

भी किसी के साथ भूलकर मत अन्याय करें,
ण्डित रहे न कोई सबको एकाकार करें|

लत-सही का ज्ञान रहे हम इतना ध्यान रखें,
ड़ी-घड़ी हम कदम बढ़ाकर मंजिल पार करें|

से भी रखें वास्ता यह भी अक्षर प्यारा,
लो चलें जग से दुष्टों का हम नाश करें|

लें  किसी को नहीं और धोखे से दूर रहें,
ले प्यार का दीपक उर में यह प्रयास करें|

गड़ा-झंझट से अब हम सब कोसों दूर रहें,
से प्रेरित होकर दुःख में भी परिहास करें|

न –टन करती घड़ी हमेशा आगे बढ़ा करे,
ण्डक लगे नहीं हम इसका भी उपचार करें|

ली – पान - तम्बाकू का हम सेवन नहीं करें,
ककर रखें अन्न-जल हम सब इतना ख्याल करें|

से हो परहेज नहीं यह अक्षर पावन-प्यारा,
पन हृदय कि दूर करें हम मन भी शान्त करें|

कन भूलकर मेहनत से अब मिलकर काम करें,
र्द सभी का हरें दुखी का दुःख में साथ करें|

र्म यही कहता है सबका हम सत्कार करें,
हीं कभी भी रोयें खुशियों का भण्डार भरें|

रशुराम बन करके जीवन का उद्धार करें,
ल की इच्छा रखें नहीं हम केवल काम करें|

न्धु समझकर सबको सबसे सद्व्यवहार करें,
क्ति-भाव से सब धर्मों का हम सम्मान करें|

न के सारे भेद मिटाकर सबसे प्यार करें,
हाँ सभी हैं एक’ मन्त्र का हम उच्चार करें |

हे न कोई दुश्मन मन में ऐसा भाव रहे,
गन और मेहनत से हम सब सारे काम करें|

क्त कभी बेकार न जाये यह प्रयास करें,
हर-गाँव में ज्ञान-दीप से हम प्रकाश करें|

से है षटकोण न भूलें यह भी याद करें,
भी रहें मिल जुलकर समता का हम पाठ करें|

म अपने भारत का मिल करके सम्मान करें,
क्षमा करें छोटों को अग्रज पर अभिमान करें|

त्र पढ़ करके तीन लोक तक जन कल्याण करें,
ज्ञ से ज्ञान बाँटकर जग में हम उपकार करें|
-०-
संपर्क 
डॉ० अशोक ‘गुलशन’
बहराइच (उत्तरप्रदेश)
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Saturday, 26 October 2019

एक ग़ज़ल देश की मुहब्बत के नाम (ग़ज़ल) - श्रीमती पूनम शिंदे



एक ग़ज़ल देश की मुहब्बत के नाम
(ग़ज़ल)


करो तुम मुहब्बत वतन के लिए
जाँ भी देंगे कभी तो वतन के लिए
हो जरूरत अगर देश को यदि तेरी
पेश कर दे तू सर को वतन के लिये

इसकी अस्मत से खेले कभी गर कोई
इसकी रक्षा में हरदम रहो लैश तुम

मेरा पैग़ाम हर हिन्दू मुसलमा से है
आगे डटकर रहो देश की खातिर तुम

मशवरा एक है नौजवानों मेरा
तुम मुहब्बत करो देश पर तुम मरो

कर्ज़ सारा है हम पर पड़ा देश का
तुम उतारो इसे फ़र्ज़ पूरा करो

इसकी आँचल में पलकर हुए हो बड़े
आबरू का भी जिम्मा तुम्हीं पर ही है

दुश्मनों से बचाना है इस मुल्क को
देशभक्ति का जिम्मा तुम्हीं पर ही है

जब तलक है जवानी करेंगे वफ़ा
अब तिरंगे को लेकर बढ़ेंगे सदा

देश का है ये जन्नत सदा काश्मीर
इसकी वांदी में लहरे तिरंगा
-०-
श्रीमती पूनम दीपक शिंदे
मुंबई (महाराष्ट्र)

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सेहतमाना (कविता) - डा. नीना छिब्बर


सेहतमाना
(कविता)
हर किताब, हर धर्म, हर सुविचार
हर काल का यह अक्षुण सत्य है
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है "
जीवन का सकरात्मक पहलू,हर काल का सच
परखा ,जाना ,माना जीवन में सबने।
रोगहीन रहने के लिए ,समय बचाते हैं कामों से
सुबह अगर ड़ेस्क वर्क में उलझा है तो
तब संध्या को दौड़ की पौशाक पहन कर
कानों में मधुर संगीत की स्वरलहरी लगा
तेज चलते,दौड़ते, व्यायाम करते
दिखते हैं हर आयु, वर्ग एवं क्षेत्र के लोग ।।
अपनी काया को चुस्त -दुरुस्त रखने को
निभाते हैं हर कीमत पर खुद से किया वायदा
नहीं दिखेंगे यहाँ बेड़ोल पेट,थुलथुल बाँहें, पैर
आकार ,सौंदर्य, एवं शक्ति की त्रिवेणी
दिखता है चारों ओर नजरभर यही दृश्य
जानते हैं सब स्वास्थ्य ही जीवन है।
जी तोड़ मेहनत के लिए ,जी तोड़ हाड़ चाहिए
शुद्ध हवा-पानी, हरियाली शरीर की चाहत है।
हर धर्म,, हर किताब ,हर सुविचार जो कहता है
यह शहर उसे अपने खून में बसाता है ।
शरीरी मशीन को गति से चलाने के लिए
भीतरी सौंदर्य को तन पर लाने के लिए
प्रकृति का सानिध्य जरूरी है।
अपनों के बीच हसने हसाने के लिए
औषधियों से दुश्मनी निभाने के लिए
"सेहतनामा" को धर्म समझ अपनाता है शहर ।
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डा. नीना छिब्बर
17/653, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड़, जोधपुर 342008

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सफेद मोजा (बाल कहानी) - डॉ.विमला भंडारी

सफेद मोजा
(बाल कहानी)
इदम ने जिद्द पकड़ ली थी। उसे तो बस वही सफेद मोजा चाहिए था। महावीर को भी आदत थी स्कूल से आकर जूत मोजे इधर उधर खोलकर कर रख देना। तब उसकी अम्मा तत्काल ही जूते में मोजे को ठूँस कर ऊपर अलमारी में रख कर बंद कर देती। भरपूर कोशिश की बाद कक्कू कबूतर अपने बेटे इदम के लिए वह मोजा उठाकर नहीं दे पा रही थी।

1 दिन की बात है। महावीर के यहां मेहमान आए हुए थे। माँ रसोई में लगी हुई थी। अपनी आदत के अनुसार जूते मोजे निकालकर महावीर ने इधर-उधर पटक दिए।

इदम की नजर तो इस मौके की तलाश में ही थी। उसने मां कक्कू कबूतरी से उस सफेद मोजे की फिर से मांग की और कहा- “वह देखो मां सफेद मोजा, वह बिल्कुल हमारे नीचे ही रखा हुआ है। लाकर मुझे दे दो ना!”

कक्कू कबूतरी ने गर्दन निकालकर झुककर देखा एक सफेद मोजा ठीक रोशनदान के नीचे गिरा हुआ है नजर आया। वह फर्र से उडी़ और अपनी चोंच में दबाकर मोजा उठा लायी।

खुश होते इदम ने मोजे को अपनी चोंच में सहलाया। अपने नरम पंख उस पर घुमाया। उसका आनंद लिया और फिर घोंसले में बिछा दिया। घोंसले के तिनकों पर बिछाकर इदम खुश हो गया।

रात मजे से गुजरी। सुबह जब इदम सो कर उठा तो घर में शोर शराबा हो रहा था। सफेद मोजे को ढूंढा जा रहा था।

“तुमसे कितनी बार कहा, अपनी चीज संभाल कर रखा करो पर तुम सुनते नहीं। तुम्हारी आदत ही खराब है। स्कूल से आते ही सब फैलाकर इधर-उधर पटक देते हो।“

“अम्मा देर हो रही है।“ रूआंसा होता महावीर कह रहा था।

अम्मा इधर उधर एक सफेद मोजा हाथ में लिए दूसरे जोडीदार को ढूंढ रही थी। इधर इदम आराम से मौजे पर लेटा हुआ सुस्ता रहा था।

कक्कू कबूतर ने दया दिखाते हुए कहा- “लाओ बेटा! अब यह मोजा फिर से महावीर को दे देते हैं। उसके स्कूल की देर हो रही है। उसे स्कूल में डांट पडेगी।“

“नहीं मां, अब यह मोजा मेरा है। मैं नहीं दूंगा।“ कहता हुआ इदम ठुनक गया। अब तो कभी पेंसिल, कभी कोई खिलौना, कभी कुछ, कभी कुछ आंगन में बिखरी हुई चीजों को अपनी मां को कह कर मंगवा लेता और उन्हें अपने घोंसले के आस पास रख लेता। वह महावीर की चीजों से खेलने लगा।

इधर महावीर की अम्मा इस बात को लेकर परेशान होती रही कि वह सब चीजें संभाल कर रखती हैं फिर भी महावीर की चीजें समय से मिलती नहीं। महावीर कई चीजें ढूंढ रहा था- उसकी खिलौने वाली चकरी भी नहीं मिल रही थी। वह मां से पूछता। मां यही कहती, “बेटे तुम खेलने के बाद अपनी चीजें उठाकर वापिस उसकी जगह क्यों नहीं रखते हो? देखो तुम्हारे खिलौने भरने के लिए मैंने तुम्हें पूरी टोकरी दे रखी है। तुम जिस खिलोने से जहां खेलते हो उसे वहीं छोड़ देते हो। होमवर्क करते ही किताब कॉपी तो उठा कर ले लेते हो पर पेंसिल, रबर वही आंगन में या टेबिल पर छोड़ देते हो।“

“हमारे घर में ही तो पडी थी। कोई बाहर तो नहीं डाल कर आया। फिर वह घर से कैसे गुम हो जाती है?” एक दिन तो हद ही हो गई महावीर की सबसे पसंद की लाल रंग की पैनड्राइव गुम हो गई। पेनड्राइव में लाल रंग का धागा लगा हुआ था। सुनहरा चमकीला धागा और सुंदर सी पेनड्राइव इदम को बहुत पसंद आई। अब तो उसके बिना कहे उसकी कक्कू मां उसे खेल खिलौने लाकर देने लगी।

चीजें कहां चली जाती है, किसी को समझ में नहीं आ रहा था। इधर इदम के भी पंख थोडे बडे हो गए थे। पंख फड़फड़ाने लगा और कुछ-कुछ उड़ना सीखने लगा। कभी ऊपर तो कभी नीचे खेलने में उसका मन लगने लगा। अब वह मां कबूतरी से महावीर की चीजों को लाने की जिद भी नहीं करता। महावीर ने भी अपनी आदतें सुधार ली थी। वह अपनी कई प्यारी चीजें खो चुका था। लाल रंग की पैनड्राइव खोने के बाद तो उसने अपनी चीजों को इधर-उधर रखना बिल्कुल ही छोड़ दिया था क्योंकि वैसी लाल रंग की पैंनड्राइव तो अब दुबारा बाजार में भी उसे नहीं मिली।

एक दिन इदम अपनी मां के साथ घौंसले को छोड़कर हमेशा के लिए उड़ गया। जब घर की सफाई होने लगी तो रोशनदान के खाली हुए कबूतर की घौंसले को हटाया जाने लगा। घौंसले के साथ महावीर की पुरानी गुम चीजें सब मिल गई। जिसे देखकर महावीर खुश हो गया।

“अब समझ आया मेरी चीजें कहां जाती थी। यह रहा मेरा एक मोजा। आहा! लाल चकरी। न मालूम कितनी सारी चीजें मुझे वापस मिल रही है….. और यह रही मेरी प्यारी पेनड्राइव। यह भी मुझे मिल गई। इन कबूतरों के घौंसले में तो मुझे अपना खोया हुआ खजाना दुबारा मिल गया। अब जो आए कबूतर तो मैं इन्हें देख लूंगा। अब मुझे पता चल गया है कि मेरी चीजें कबूतर ने हीं चुराई थी।“

“तुम्हारी लापरवाही के कारण गायब हुई थी तुम्हारी चीजें। अब दुबारा भी आ जाए तो तुम सुधर चुके हो। तुम अपनी सभी चीज व्यवस्थित रखोगे तो कुछ नहीं गुम होगा।“

कहते हुए अम्मा हँस पडी तो महावीर भी मुस्कुराने लगा।
-०-
डॉ. विमला भंडारी
भंडारी सदन, पैलेस रोड,
सलूंबर जि. उदयपुर  313027
(राजस्थान)




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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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