अपवित्रा
(कहानी)
(कहानी)
अश्विनी की 12 वीं की परीक्षा समाप्त हो गयी थी।मम्मी ने उससे काफी पहले से वादा कर रखा था कि उसे उसकी जीजी रागिनी के घर रानीखेत भेज देगी ताकि वह 15 दिनों तक खूब घूम-फिर सके और परीक्षा की सारी थकान और बोरियत वहाँ की मौज-मस्ती से दूर कर सके.
पापा ने भी कहा, “भेज दो,टूरिस्ट प्लेस है, घूम आएगी।जरा मन बदल जाएगा.”
बस फिर क्या था. पापा ने अगले ही दिन ट्रेन में बैठा दिया. कुल ३ घंटों का ही तो सफर था. अश्विनी ट्रेन में सवार हुई तो उसका दिल दिमाग सब कुछ मानो हवा में उड़ रहे थे। उसकी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी। वह जल्दी से जल्दी जीजी-जीजा के घर पहुंचना चाहती थी और उनकी नई गृहस्थी देखने के साथ-साथ रानीखेत व आसपास के इलाकों में घूमना-फिरना चाहती थी. इसीस बहाने वह अपने उन फेसबुक ग्रेंड्स को भी इम्प्रेस करना चाहती थी जो आए दिन कहीं न् कहीं घूमने-फिरने जाते और वहाँ से ढेर सारी पिक्स अपनी वाल पर पोस्ट करते थे.
ट्रेन ने भी मानो अश्विनी के दिल की सुन ली थी. बिल्कुल राईट टाइम स्टेशन पर उतार दिया. जीजा अपनी कार लेकर आ गए थे. स्टेशन से बमुश्किल सात-आठ किलोमीटर की दूरी पर घर था.
अश्विनी घर पहुंची तो जीजी का घर देखकर इम्प्रेस हो गयी. छोटा-सा बंगला था. अगल-बगल काफी खुली जगह थी. घर में सारी सुख-सुविधाएँ थीं. जीजा अच्छा कमाता था.
घर से पहली बार निकली अश्विनी को जीजा-जीजी ने खूब घुमाया। १३ दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा था जब अश्विनी काईं घूमने या किसी रेस्तरां में खाना खाने न गयी हो.इस बीच पड़ोस के एक लड़के से भी उसकी दोस्ती हो गयी जो हम उम्र था और फेसबुक के माध्यम से उसे पहले से कुछ-कुछ जानता भी था. इस परिचय के कारण दोनों एक दूसरे से काफी हिलमिल गए थे और ढेर सारी बातें करते रहते थे.
एक दिन जीजा-जीजी किसी रिश्तेदार की गमी में चले गए।अश्विनी को अकेला देख पड़ोसी लड़का बात करने के बहाने अश्विनी के पास घर में आ गया. दोनों बातें करने लगे. फिर वही हो गया जिसका अक्सर डर होता है. लड़का अपनी औकात पर आ गया. उसने जबरदस्ती अश्विनी के शरीर को कुचल दिया. अश्विनी को कुछ समझ में नहीं आया कि वह कैसे रिएक्ट करे. वह बुरी तरह डर भी गयी थी.
जीजा-जीजी शाम तक लौट आए थे।लेकिन अश्विनी तब उनसे कुछ न कह पायी. रात भर भावनाओं के ज्वार में डूबने-तैरने के बाद उसने सुबह साहस करके उसने पड़ोसी की घिनौनी करतूत के बारे में बताया तो जीजी-जीजा सन्नाटे में आ गए। उन्होंने कुछ न कहा.
जीजी को दोपहर में महिला मण्डल की मीटिंग में जाना जरुरी था।
उन्होंने पति से कहा, “आज तुम छुट्टी ले लो. देखा न कल अकेला छोड़ गए तो इसने क्या कर डाला।“
अश्विनी को जीजी की बात पर रोना आ गया. इस हादसे में भला उसका क्या कसूर था, अगर वह खुद के साथ हुए बलात्कार को रोक सकती तो क्या रोकती नहीं? खैर,वह कहती भी क्या? मन ही मन अपमान और दर्द का घूँट पीकर रह गयी.
जीजा की पहरेदारी में उसे छोड़कर जीजी चली गयी।
जीजा अश्विनी के पास बैठकर उससे मीठी-मीठी सहानुभूति की बात करने लगा. उसे दिलासा देने लगा. अश्विनी फ़ूट फूट कर रोने लगी। जीजा ने उसके आंसू पोछते हुए अपने आगोश में ले लिया. अश्विनी को जीजा का यह प्यार पिता की छाँव जैसा महसूस हुआ. लेकिन अगले ही पल उसने महसूस किया की जीजा के हाथ उसकी सुडौल छाती और नरम जाँघों के पास रेंग रहे हैं।
अश्विनी ने कसमसा कर खुद को जीजा से अलग करना चाहा।
बोली, “जीजाजी! ये क्या कर रहे हैं आप?”
जीजा ने किसी मंजे हुए खलनायक जैसी दुष्ट मुस्कान के साथ दांत पीसते हुए कहा , “साली...मेरी प्यारी साली क्यों नखरे दिखा रही है? क्या फर्क पड़ जाएगा. एक और सही. तू तो वैसे भी अपवित्र हो ही चुकी है.”
बलिष्ठ जीजा ने अश्विनी की एक न सुनी. उसे बुरी तरह रौंद डाला. अश्विनी बिसूर-बिसूर कर रोटी रही. लेकिन जीजा को उसके रोने से और भी मजा आ रहा था.
तन और मन से टूट चुकी अश्विनी ने जीजा को सबक सिखाने के मकसद से रात को अलग से जीजी को पूरी बात बताई.
जीजी तो मानो फट पड़ी. बोली, “आशू! तू ही कुलटा है. तूने तो मेरे घर को ही अपवित्र कर दिया. बहन मैं हाथ जोड़ती हूँ. तू कल की ट्रेन से ही निकल!”
सुबह अश्विनी को ट्रेन में बैठा दिया गया. माँ और छोटा भाई स्टेशन पर उसका इंतजार कर रहे थे.
पापा ने भी कहा, “भेज दो,टूरिस्ट प्लेस है, घूम आएगी।जरा मन बदल जाएगा.”
बस फिर क्या था. पापा ने अगले ही दिन ट्रेन में बैठा दिया. कुल ३ घंटों का ही तो सफर था. अश्विनी ट्रेन में सवार हुई तो उसका दिल दिमाग सब कुछ मानो हवा में उड़ रहे थे। उसकी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी। वह जल्दी से जल्दी जीजी-जीजा के घर पहुंचना चाहती थी और उनकी नई गृहस्थी देखने के साथ-साथ रानीखेत व आसपास के इलाकों में घूमना-फिरना चाहती थी. इसीस बहाने वह अपने उन फेसबुक ग्रेंड्स को भी इम्प्रेस करना चाहती थी जो आए दिन कहीं न् कहीं घूमने-फिरने जाते और वहाँ से ढेर सारी पिक्स अपनी वाल पर पोस्ट करते थे.
ट्रेन ने भी मानो अश्विनी के दिल की सुन ली थी. बिल्कुल राईट टाइम स्टेशन पर उतार दिया. जीजा अपनी कार लेकर आ गए थे. स्टेशन से बमुश्किल सात-आठ किलोमीटर की दूरी पर घर था.
अश्विनी घर पहुंची तो जीजी का घर देखकर इम्प्रेस हो गयी. छोटा-सा बंगला था. अगल-बगल काफी खुली जगह थी. घर में सारी सुख-सुविधाएँ थीं. जीजा अच्छा कमाता था.
घर से पहली बार निकली अश्विनी को जीजा-जीजी ने खूब घुमाया। १३ दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा था जब अश्विनी काईं घूमने या किसी रेस्तरां में खाना खाने न गयी हो.इस बीच पड़ोस के एक लड़के से भी उसकी दोस्ती हो गयी जो हम उम्र था और फेसबुक के माध्यम से उसे पहले से कुछ-कुछ जानता भी था. इस परिचय के कारण दोनों एक दूसरे से काफी हिलमिल गए थे और ढेर सारी बातें करते रहते थे.
एक दिन जीजा-जीजी किसी रिश्तेदार की गमी में चले गए।अश्विनी को अकेला देख पड़ोसी लड़का बात करने के बहाने अश्विनी के पास घर में आ गया. दोनों बातें करने लगे. फिर वही हो गया जिसका अक्सर डर होता है. लड़का अपनी औकात पर आ गया. उसने जबरदस्ती अश्विनी के शरीर को कुचल दिया. अश्विनी को कुछ समझ में नहीं आया कि वह कैसे रिएक्ट करे. वह बुरी तरह डर भी गयी थी.
जीजा-जीजी शाम तक लौट आए थे।लेकिन अश्विनी तब उनसे कुछ न कह पायी. रात भर भावनाओं के ज्वार में डूबने-तैरने के बाद उसने सुबह साहस करके उसने पड़ोसी की घिनौनी करतूत के बारे में बताया तो जीजी-जीजा सन्नाटे में आ गए। उन्होंने कुछ न कहा.
जीजी को दोपहर में महिला मण्डल की मीटिंग में जाना जरुरी था।
उन्होंने पति से कहा, “आज तुम छुट्टी ले लो. देखा न कल अकेला छोड़ गए तो इसने क्या कर डाला।“
अश्विनी को जीजी की बात पर रोना आ गया. इस हादसे में भला उसका क्या कसूर था, अगर वह खुद के साथ हुए बलात्कार को रोक सकती तो क्या रोकती नहीं? खैर,वह कहती भी क्या? मन ही मन अपमान और दर्द का घूँट पीकर रह गयी.
जीजा की पहरेदारी में उसे छोड़कर जीजी चली गयी।
जीजा अश्विनी के पास बैठकर उससे मीठी-मीठी सहानुभूति की बात करने लगा. उसे दिलासा देने लगा. अश्विनी फ़ूट फूट कर रोने लगी। जीजा ने उसके आंसू पोछते हुए अपने आगोश में ले लिया. अश्विनी को जीजा का यह प्यार पिता की छाँव जैसा महसूस हुआ. लेकिन अगले ही पल उसने महसूस किया की जीजा के हाथ उसकी सुडौल छाती और नरम जाँघों के पास रेंग रहे हैं।
अश्विनी ने कसमसा कर खुद को जीजा से अलग करना चाहा।
बोली, “जीजाजी! ये क्या कर रहे हैं आप?”
जीजा ने किसी मंजे हुए खलनायक जैसी दुष्ट मुस्कान के साथ दांत पीसते हुए कहा , “साली...मेरी प्यारी साली क्यों नखरे दिखा रही है? क्या फर्क पड़ जाएगा. एक और सही. तू तो वैसे भी अपवित्र हो ही चुकी है.”
बलिष्ठ जीजा ने अश्विनी की एक न सुनी. उसे बुरी तरह रौंद डाला. अश्विनी बिसूर-बिसूर कर रोटी रही. लेकिन जीजा को उसके रोने से और भी मजा आ रहा था.
तन और मन से टूट चुकी अश्विनी ने जीजा को सबक सिखाने के मकसद से रात को अलग से जीजी को पूरी बात बताई.
जीजी तो मानो फट पड़ी. बोली, “आशू! तू ही कुलटा है. तूने तो मेरे घर को ही अपवित्र कर दिया. बहन मैं हाथ जोड़ती हूँ. तू कल की ट्रेन से ही निकल!”
सुबह अश्विनी को ट्रेन में बैठा दिया गया. माँ और छोटा भाई स्टेशन पर उसका इंतजार कर रहे थे.
माँ ने अपनी बेटी को गले से लगाकर कहा, “मेरी फूल-सी बच्ची. बहुत याद आती थी तेरी.चल घूम आई तो तेरा भी मन बदल गया और जरा बहल गया.”
अश्विनी दुखी भी थी और डरी हुई भी.उसके मन में विचारों का तूफ़ान उमड़ रहा था. उसने कहना चाहा, मम्मी मन तो दूसरों का बहला लेकिन मेरा मन बदल गया. पुरुषों के लिए मैं तो सिर्फ एक शरीर हूँ.पता नहीं अपवित्र होने के बाद भी मुझे क्यों आगोश में लेना चाहा जीजा ने. वह कहना बहुत कुछ चाहती थी लेकिन डर गयी. कहीं माँ ने भी उसे अपवित्र कह कर घर से निकाल दिया तो?
अब वह मन ही मन चाहती थी कि उसकी जीजी कहीं माँ को न बता दे. उधर जीजी डर रही थी कि जीजा की पोल न खुल जाए. जीजा भड़क गया या अरेस्ट हो गया तो उसकी जिंदगी न उजड़ जाए।
दोनों स्त्रियां अपने अपने डरों को जी रही थीं. और इस राज पर आजीवन पर्दा डाल कर ख़ुशी ख़ुशी जीने लगीं.
अश्विनी दुखी भी थी और डरी हुई भी.उसके मन में विचारों का तूफ़ान उमड़ रहा था. उसने कहना चाहा, मम्मी मन तो दूसरों का बहला लेकिन मेरा मन बदल गया. पुरुषों के लिए मैं तो सिर्फ एक शरीर हूँ.पता नहीं अपवित्र होने के बाद भी मुझे क्यों आगोश में लेना चाहा जीजा ने. वह कहना बहुत कुछ चाहती थी लेकिन डर गयी. कहीं माँ ने भी उसे अपवित्र कह कर घर से निकाल दिया तो?
अब वह मन ही मन चाहती थी कि उसकी जीजी कहीं माँ को न बता दे. उधर जीजी डर रही थी कि जीजा की पोल न खुल जाए. जीजा भड़क गया या अरेस्ट हो गया तो उसकी जिंदगी न उजड़ जाए।
दोनों स्त्रियां अपने अपने डरों को जी रही थीं. और इस राज पर आजीवन पर्दा डाल कर ख़ुशी ख़ुशी जीने लगीं.
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शिखर चन्द जैन
शिखर चन्द जैन
समाज में रिश्तों का एक घिनौना रूप को उजागर करती कथा ।
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