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Sunday 27 October 2019

पांडेय जी औऱ दुनिया रँगरंगीली (कहानी) - डॉ लालित्य ललित

पांडेय जी औऱ दुनिया रँगरंगीली
(कहानी)
विलायती राम पांडेय आज अपने छज्जे पर बैठे हुए ये सोच रहे है कि देश आर्थिक मंदी के लपेटे में है और ये राधेलालजी को क्या हुआ है!
यहाँ राधेलालजी नाम के एक आमजन है जिन्हें समाज में रहते हुए तमाम दुर्व्यवस्थाओं में भी आनंद खोज लेने का तंत्र विज्ञान पता है। इनका मानना है कि बुढ़ापे में जो नजरों से अखरोट तोड़ दें उसका नाम राधेलालजी है कोई रामकिशन पुनिया नहीं।
बात भी सही है।
सुनने में आया है कि रामकिशन पुनिया अभी पचहत्तर पार कर गए और लम्बी पारी खेलने के मूड में है।उनकी पार्टी में राधेलालजी भी थे,पर तय कार्यक्रम के अनुसार उन्होंने झम्मन मियां जो लोकल स्तर पर फोटोग्राफर हायर किये गए थे,उनको राधेलालजी ने पटा लिया।वैसे ये गुण उन्होंने लपकुराम जी से बाल्यावस्था में सीखा था।लपकुराम जी का कहना है कि ज्ञान को प्राप्त करने की न उमर है और न ही सीमा है।कभी भी इसे सीखा जा सकता है।अब ये सीमा नाम पर मत जाइएगा, अन्यथा नया बखेड़ा शुरू हो जाएगा।वैसे बखेड़ा करने का न तो मुझे कोई शौक है न ही रुचि!
अब जब लपकुराम जी ज्ञान बघार रहे थे तो पांडेय जी ने पूछ लिया,"बाय दवे ये रुचि झंडू सिंह गुलिया की पड़ोसन मिस नैना कटारिया की इकलौती संतान है जिसे समाज सेवा करने का शौक है।"
लपकुराम जी ने आंखें तरेर कर कहा, "पांडेय जी आप जहां विद्यार्थी है वहां का मैं संस्थापक हूँ।"
पांडेय जी समझ चुके थे कि दीवाली बेशक बीस दिन दूर है,पर कसम से सुलग गई टाउनशिप में रह रहे लपकुराम जी की। बात का बतंगड़ न बने चेलाराम जी लपकुराम जी को ले गुरुग्राम में अज्ञात से रिजॉर्ट में अंतर्ध्यान हो गए। वैसे भी लपकुराम जी को इस अवस्था में रिजॉर्ट में साधना और मनन करने में मन रमता है।
बहरहाल राधेलालजी को अच्छा लग रहा था कि पहले निशाने पर पांडेय जी के राधेलालजी थे, फिर रामकिशन पुनिया। मगर लट्टू घूम फिर कर लपकुराम जी पर आ गया।चलो अच्छा ही हुआ।
खेर...पांडेय जी का कहना है कि हर व्यक्ति के दिन आते है।
पांडेय जी ने छज्जे पर बैठते ही पांच-सात बादाम मुंह में फांक लिए। कहीं पढ़ा था कि बादाम खाने से दिमाग चलता है। तभी तो उनके मन में विचार आया कि 75 वसन्त देखने के बाद भी रामकिशन पुनिया की हसरतें पूरी तरह से धराशायी नहीं हुई।उनको अभी तक ये लगा रहता है कि ये मिल जाता तो और अच्छा होता।
ये सोचने की बात है कि इच्छा के घड़ा कभी भरता नहीं।आदमी भूत बन कर भी वहीं मंडराता रहता है कि काश! मिल जाता तो मुक्ति हो जाती,तो भैये कान में तेल डालो,बेशक किसी भी कम्पनी का जो नसीब में होगा,वह आपको मिलेगा,उसे कोई छीन नहीं सकता।
दूसरा आजकल पांडेय जी नाराज है स्थानीय निकाय से।जिसे देखो वह अवैध निर्माण में ऐसे हाथ बंटा रहा है जैसे कार सेवा हो औऱ इस तरह के सामाजिक कार्य में एक दूसरे की मदद करने से सभी प्रकार कर पापों से मुक्ति मिलती है।
लोगों ने घर की सीमा से बढ़ कर दरवाजे बाहर निकाल लिए।कुर्सी डाल ली और महाराज जो बरामदा पहले दिखता था वह सिरे से गायब कर दिया।
हमारे यहां कहा जाता है कि आप एक नम्बर के चोर है जिसे देखो वह धड़ल्ले से चोरी करने से बाज नहीं आ रहा है ऐसे कबूतर उड़ा रहा है जैसे देश उसका,दिल्ली उसकी और स्थानीय निकाय उसके बाप का।
पांडेय जी सोचने लगे कि कुछ नहीं होने वाला।लगता है कि अगर श्रीराम प्रभु भी यहाँ होते तो स्थानीय निकाय मोटा जुर्माना उनके नाम भी ठोंक देते।
अंतर्मन कुमार ने कहा कि हम उस देश के वासी है जहां ब्लाइंड लोगों के लाइसेंस भी पैसे लेकर बनवा दिए जाते है।
अभी सोच ही रहे थे कि एक टेलीविजन चैनल पर रिपोर्ट आने लगी कि कैसे एक कर्मी ने नेत्रहीनों के लाइसेंस बनवा दिए। आइये उस रिपोर्ट पर निगाह डालें-
जी, मेरा नाम रामखिलावन है और मेरे साथ कैमरापर्सन मधुबाला है।आइए मैं दिखला रहा हूँ,अंधेर गर्दी का माहौल।जी,हां, आप देख रहे है ये जनकपुरी ऑथोरिटी है जहां लाइसेंस बनाये जाते है।बेशक यहाँ दलाल कम है लेकिन सूचना पट्ट भी न के बराबर है।हर चीज कायदे से चल रही है।ये जो आप देख रहे है सहायक नुमा लोग ये सरकारी महकमे के ही अनाधिकृत लोग है जो बिना चढ़ावे के काम नहीं करते।
जिस नेत्रहीन का लाइसेंस बना है उससे ही पूछ लेते है कि क्या मामला है!
"बताइए आप क्या नाम है? ये लाइसेंस बनवा कर क्या हासिल करना चाहते हैं!"
तभी पिंटू सिंह मुरैना ने कहा, "बाहर निकलिए,आप लोग। देखिए यहाँ के अधिकारी कैमरा देख कर बौखलाए गए है।इनसे ही जान लेते है कि सर बताइए जनता जानना चाहती है।"
"देखिए बात कुछ भी नहीं है।ये नेत्रहीन मेरे पास आये और कहने लगे कि हम देख नहीं सकते क्या आप यादगार के तौर पर हमारा लाइसेंस बनवा सकते है!"
"इनके साथ एक गैरसरकारी संस्था के प्रतिनिधि भी है जिनकी पहल पर हमारे विभाग ने यह कार्रवाई की और पांच लोगों के लाइसेंस बनाए गए। मैं  समझता हूँ कि यह मामला कोई ब्रेकिंग न्यूज जैसा नहीं है जिसे आप नाहक तूल देने की कोशिश कर रहे है।"
इसमें जरूर किसी राजनैतिक दल की साजिश है,सिक्योरिटी इनको बाहर करो,काम में बाधा डाल रहे है।सिक्योरिटी को हरकत में आता देख मधुबाला और रामखेलावन वहां से रफूचक्कर हो गए।
मधुबाला ने कहा, "सर जी! इस तरह की रिपोर्टिंग में बड़े पंगे है।इससे अच्छे तो वे लोग है जो घरों में बैठ कर एन्जॉय कर रहे है।"
रामखेलावन ने मधुबाला की आंखों में देखा और कहा, "चलो प्रेस क्लब।हम भी एन्जॉय कर लेते है।"
कुछ देर में मधुबाला ने मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया।उसका कहना है कि एन्जॉय करना हो तो दुनिया से कट कर ही एन्जॉय करने में आनंद आता है।
उधर विलायती राम पांडेय सोच रहे है कि ये दोनों रिपोर्टर कहाँ गोल हो गए!
उन्होंने चैनल हेड देविका गजोधऱ से बात की और मिस गजोधऱ ने दोनों को सर्विस से रिमूव कर दिया औऱ एक भी मौका नहीं दिया।ये अलग तरह का मौका था जब एस्टेब्लिशमेंट ने रिमूवल का आर्डर वाट्सप व एसएमएस से भेजा हो।
पांडेय जी भी ग़जब के इंसान है जब अपनी पर आ जाते है तो देखते नहीं कि कल क्या होगा! अभी वे अपने छज्जे पर बैठे है सोच रहे है कि सड़कों पर सड़क नहीं है! गाड़ियां रेंग रही है।आर्थिक मंदी के दौर में व्यापार बुरी तरह से कमर तोड़ रहा है।व्याजदर घट गई है।बड़े आसामियों का बेड़ा पार हो रहा है।उधर एक रिपोर्ट में बड़े व्यापारियों ने भी आशंका व्यक्त की है जब छोटे और मंझोले लोग सामान नहीं खरीदेंगे तो पैसा बाहर नहीं आएगा।उत्पादन लगातार हो रहा है।आखिर हर व्यापार की लिमिट होती है।बड़ा टेड़ा सवाल है।आखिर देश किस और करवट लेगा!
तभी रामप्यारी ने कहा, " लो स्वामी, आपकी अदरक वाली चाय।"
चाय पीते ही पांडेय जी का दिमाग चलने लगा।सोचने लगे कि देश कहाँ जा रहा है!सड़कें कहाँ जा रही है!लोग कहाँ बड़े जा रहे हैं।कापसहेड़ा की सड़क पर सुबह या शाम खड़े हो जाओ तो लगेगा कि दिल्ली खाली हो रही है!
कई बार तो लगता है कि सब पड़ोसी मुल्क में तो नहीं जा रहे कि भैया आये रहे है टमाटर खरीदने,क्या समझे!
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संपर्क
डॉ लालित्य ललित
संपादक
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
नई दिल्ली-110070
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