सफेद मोजा
(बाल कहानी)
इदम ने जिद्द पकड़ ली थी। उसे तो बस वही सफेद मोजा चाहिए था। महावीर को भी आदत थी स्कूल से आकर जूत मोजे इधर उधर खोलकर कर रख देना। तब उसकी अम्मा तत्काल ही जूते में मोजे को ठूँस कर ऊपर अलमारी में रख कर बंद कर देती। भरपूर कोशिश की बाद कक्कू कबूतर अपने बेटे इदम के लिए वह मोजा उठाकर नहीं दे पा रही थी। 1 दिन की बात है। महावीर के यहां मेहमान आए हुए थे। माँ रसोई में लगी हुई थी। अपनी आदत के अनुसार जूते मोजे निकालकर महावीर ने इधर-उधर पटक दिए।
इदम की नजर तो इस मौके की तलाश में ही थी। उसने मां कक्कू कबूतरी से उस सफेद मोजे की फिर से मांग की और कहा- “वह देखो मां सफेद मोजा, वह बिल्कुल हमारे नीचे ही रखा हुआ है। लाकर मुझे दे दो ना!”
कक्कू कबूतरी ने गर्दन निकालकर झुककर देखा एक सफेद मोजा ठीक रोशनदान के नीचे गिरा हुआ है नजर आया। वह फर्र से उडी़ और अपनी चोंच में दबाकर मोजा उठा लायी।
खुश होते इदम ने मोजे को अपनी चोंच में सहलाया। अपने नरम पंख उस पर घुमाया। उसका आनंद लिया और फिर घोंसले में बिछा दिया। घोंसले के तिनकों पर बिछाकर इदम खुश हो गया।
रात मजे से गुजरी। सुबह जब इदम सो कर उठा तो घर में शोर शराबा हो रहा था। सफेद मोजे को ढूंढा जा रहा था।
“तुमसे कितनी बार कहा, अपनी चीज संभाल कर रखा करो पर तुम सुनते नहीं। तुम्हारी आदत ही खराब है। स्कूल से आते ही सब फैलाकर इधर-उधर पटक देते हो।“
“अम्मा देर हो रही है।“ रूआंसा होता महावीर कह रहा था।
अम्मा इधर उधर एक सफेद मोजा हाथ में लिए दूसरे जोडीदार को ढूंढ रही थी। इधर इदम आराम से मौजे पर लेटा हुआ सुस्ता रहा था।
कक्कू कबूतर ने दया दिखाते हुए कहा- “लाओ बेटा! अब यह मोजा फिर से महावीर को दे देते हैं। उसके स्कूल की देर हो रही है। उसे स्कूल में डांट पडेगी।“
“नहीं मां, अब यह मोजा मेरा है। मैं नहीं दूंगा।“ कहता हुआ इदम ठुनक गया। अब तो कभी पेंसिल, कभी कोई खिलौना, कभी कुछ, कभी कुछ आंगन में बिखरी हुई चीजों को अपनी मां को कह कर मंगवा लेता और उन्हें अपने घोंसले के आस पास रख लेता। वह महावीर की चीजों से खेलने लगा।
इधर महावीर की अम्मा इस बात को लेकर परेशान होती रही कि वह सब चीजें संभाल कर रखती हैं फिर भी महावीर की चीजें समय से मिलती नहीं। महावीर कई चीजें ढूंढ रहा था- उसकी खिलौने वाली चकरी भी नहीं मिल रही थी। वह मां से पूछता। मां यही कहती, “बेटे तुम खेलने के बाद अपनी चीजें उठाकर वापिस उसकी जगह क्यों नहीं रखते हो? देखो तुम्हारे खिलौने भरने के लिए मैंने तुम्हें पूरी टोकरी दे रखी है। तुम जिस खिलोने से जहां खेलते हो उसे वहीं छोड़ देते हो। होमवर्क करते ही किताब कॉपी तो उठा कर ले लेते हो पर पेंसिल, रबर वही आंगन में या टेबिल पर छोड़ देते हो।“
“हमारे घर में ही तो पडी थी। कोई बाहर तो नहीं डाल कर आया। फिर वह घर से कैसे गुम हो जाती है?” एक दिन तो हद ही हो गई महावीर की सबसे पसंद की लाल रंग की पैनड्राइव गुम हो गई। पेनड्राइव में लाल रंग का धागा लगा हुआ था। सुनहरा चमकीला धागा और सुंदर सी पेनड्राइव इदम को बहुत पसंद आई। अब तो उसके बिना कहे उसकी कक्कू मां उसे खेल खिलौने लाकर देने लगी।
चीजें कहां चली जाती है, किसी को समझ में नहीं आ रहा था। इधर इदम के भी पंख थोडे बडे हो गए थे। पंख फड़फड़ाने लगा और कुछ-कुछ उड़ना सीखने लगा। कभी ऊपर तो कभी नीचे खेलने में उसका मन लगने लगा। अब वह मां कबूतरी से महावीर की चीजों को लाने की जिद भी नहीं करता। महावीर ने भी अपनी आदतें सुधार ली थी। वह अपनी कई प्यारी चीजें खो चुका था। लाल रंग की पैनड्राइव खोने के बाद तो उसने अपनी चीजों को इधर-उधर रखना बिल्कुल ही छोड़ दिया था क्योंकि वैसी लाल रंग की पैंनड्राइव तो अब दुबारा बाजार में भी उसे नहीं मिली।
एक दिन इदम अपनी मां के साथ घौंसले को छोड़कर हमेशा के लिए उड़ गया। जब घर की सफाई होने लगी तो रोशनदान के खाली हुए कबूतर की घौंसले को हटाया जाने लगा। घौंसले के साथ महावीर की पुरानी गुम चीजें सब मिल गई। जिसे देखकर महावीर खुश हो गया।
“अब समझ आया मेरी चीजें कहां जाती थी। यह रहा मेरा एक मोजा। आहा! लाल चकरी। न मालूम कितनी सारी चीजें मुझे वापस मिल रही है….. और यह रही मेरी प्यारी पेनड्राइव। यह भी मुझे मिल गई। इन कबूतरों के घौंसले में तो मुझे अपना खोया हुआ खजाना दुबारा मिल गया। अब जो आए कबूतर तो मैं इन्हें देख लूंगा। अब मुझे पता चल गया है कि मेरी चीजें कबूतर ने हीं चुराई थी।“
“तुम्हारी लापरवाही के कारण गायब हुई थी तुम्हारी चीजें। अब दुबारा भी आ जाए तो तुम सुधर चुके हो। तुम अपनी सभी चीज व्यवस्थित रखोगे तो कुछ नहीं गुम होगा।“
कहते हुए अम्मा हँस पडी तो महावीर भी मुस्कुराने लगा।
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डॉ. विमला भंडारी
भंडारी सदन, पैलेस रोड,
सलूंबर जि. उदयपुर 313027
(राजस्थान)
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