अंत में मैं आया!
(आत्मकथा)
नागेश सू. शेवाळकर
११०, वर्धमान वाटिका फेज ०१, क्रांतिवीरनगर, लेन ०२,
होटल जय मल्हार के पास, थेरगांव, पुणे (महाराष्ट्र)
'हां! अंत में मैं आया। मै भारत पहुँच चुका हूँ! तीव्र विरोध, टीका होने के बावजूद, मैं आखिरकार सेवा करने के लिए पहुँचा हूँ। कितनी आलोचना, कितनी बदनामी, कितने आरोप हुए, मुझे भारत मे आने से रोकने के लिए भाषा का नीचला स्तर आजमाया गया। चर्चा, बहस, झगड़े हुए। सभागृह बंद कर दिए गए, सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए गए। परदेश मे ... अपनेही देश मे मुझ पर झूठे आरोप लगाये गये, लेकिन मैं नही हारा, नही पिछे हटा, बल्कि बड़े आत्मविश्वास, साहस, फुर्ती से, हठपूर्वक, ईर्ष्या से आया हूँ। भारतीय नागरिकों कि रक्षा हेतु, भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए, उन सीमाओं का विस्तार करने के लिए, सभी दुश्मनों को पस्त करने के लिए, भारत की ओर वक्र दृष्टी से देखने वालों की आँखे निकालने के लिए, भारत की ओर बम फेंकने वालों के हाथ उखाडने के लिए, दुश्मन के विमानों, हेलीकॉप्टरों को नष्ट करने और भारतीय सीमा में प्रवेश करने वाले दुश्मनों को नष्ट करने के लिए तो मेरा आगमन हुआ है। मैं यहाँ भारतीय दुश्मनों कों पानी पिलाने आया हूँ, जिससे देश में प्रवेश कर रहे आतंकवादी निर्दोष नागरिकों को पीड़ित ना करे, उन्हे कोई आतंकीत ना किए। ... हाँ! मैं राफेल हूँ, राफेल! मैं भारतीयों के गौरव को खतरे में डालनेवालोंकों नष्ट करने का प्रयास करूंगा, ताकि भारतीयों की शान, सन्मान को बढ़ावा मिले। भारतीयों, मैं हूं ना, किसी से भी डरो मत। अब घबराने का समय है, दुश्मनों का! हाँ! भारतमाता के देशी-विदेशी दुश्मनों को अब डर लगने लगेगा! मुझे पता है, मेरे आने की खबरसे, मेरी खरीद की सभी औपचारिकताएं पूरी कि जा रही थी, तब से भारत मे रहनेवाले मेरे विरोधियोंने सर पटकाना, चिल्लाना शुरु किया था। आरोप क्या थे, तो मेरी खरेदारी मे घोटाला हुआ है, भ्रष्टाचार हुआ है। अगर मेरे नाम पर किसी ने पैसा खाया है, तो सीधे सुप्रीम कोर्ट में सबूत क्यों नहीं दाखिल किए गए? वे कहते हैं, ' खुले आसमान मे तीर चलाना!' कुछ इस तरह का वातावरण विपक्ष में था। लेकिन अंत में, 'दूध का दूध, पानी का पानी हो ही गया!' मेरे प्रशंसकों ने जीत हासिल की। मैं अपने देश भारत में, एक सुजलाम सुफलाम देश में, एक ऐसा देश जो विविधता और एकता का प्रतीक है, एक संस्कृति प्रिय देश में पहुँचा हूँ। भारतीयों की संस्कृति उच्च गुणवत्ता की संस्कृति है, हजारों वर्षों की परंपरा है। भारतीय रक्षामंत्री खुद फ्रांस में आए। उन्होंने भारतीय पारंपरिक रूप से फ्रांस में मेरी पूजा कि। उस समय मेरी भावनाएं उमड पडी, मेरी आँखे भर आयी थी। कितना आनंदित हो गया था मै! हजारों सालों से, भारत में 'शस्त्रपूजा' करने की परंपरा है। विजयदशमी के दिन, प्रभु रामचंद्र, पांडव जैसे महान नेताओं द्वारा शस्त्रोंकी पूजा कि परंपरा शुरू कि थी। देश के संरक्षण मे बडी निर्णायक भूमिका निभानेवाले, देशवासियों की रक्षा करने वाले हथियारों की पूजा ... कितनी खुशी का अवसर, उन हथियारों के लिए गर्व का क्षण! हथियारों के बारे में भावनाओं को व्यक्त करने की एक अनोखी परंपरा है! मुझे बडी खुशी हुई। भारतीयों की रक्षा के लिए तैयार हूँ मैं। भारतीय रक्षा का एक प्रभावी हथियार हूं! भारत के संरक्षण खजाने में शीर्ष हथियारों में से मै हूँ एक! रक्षा मंत्री फ्रांस आए और मेरी पूजा की, और मुझे बडे सम्मान से भारत ले आए। भारतीयों, मुझे आपपर गर्व है। लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता है कि मेरे पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी, मेरा विरोध करते करते भारत के प्रधानमंत्रीजी को भी भ्रष्टाचार में खिंच लाऐं। मैं नहीं आ सकू इसलिए सभी हथियार, शस्त्रों का उपयोग किया गया, विभिन्न स्थानों पर हार गए, यहां तक कि चुनाव में मुझे एक मुद्दा बनाया गया। चुनावों मे कडी हार मिलने के बाद भी मेरे विरोधी जमीन पर नही आए। जगह -जगह उन्हें राफेलही दिख रहा है। परंपरागत रूप से, मेरी पूजा, मेरा स्वागत, मेरी प्रशंसा मेरे भारतीय विरोधियों की आँखों में समायी नही जा रही है। उनके शरीर का खून खौल रहा है। उनकी आँखे क्रोध से लाल हो रही है। रक्षा मंत्रीजी की आलोचना की जा रही है। मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि रक्षा मंत्री और उनकी सरकार की आलोचना करने वाले हमेशा दोहरी भूमिका क्यों निभाते हैं? मुझे पता है, ये वही आलोचक है, जो चुनाव के समय देश के धर्मस्थल की सीढ़ियाँ चढ़ जाते हैं। माथा टेकते है, मन्नतें माँगते है। फिर भी उन्हें मेरी पूजा क्यों अच्छी नही लगी ? हर कोई अपने राजनीतिक जीवन मे किसी भी कार्य की शुरुआत दौरान पूजा, अभिषेक, यज्ञ क्यों करते हैं? हर किसी के घर के दरवाजे पर नींबू मिर्च क्यों लगवाते है? नये वाहनों की पूजा क्यों करते है? यह अगर एक रीती है तो मेरी पूजा भी एक परंपरा नही है तो फिर क्या है? अगर रक्षा मंत्री देश के लिए खरीदे गए वाहन की पूजा करते हैं, तो इन्हें मिर्च क्यों लगती है ? क्यों चिढ़ जाते हैं? मेरे प्रशंसकों की आलोचना करना शर्मनाक है। अगर रक्षामंत्रीजी भगवान, धर्म, परंपराओं, रीति-रिवाजों का पालन कर रहे हैं तो गलत क्या कर रहे हैं? जब मुझे भारत ला जा रहा था, तो रक्षामंत्री ने मेरे शरीरपर, भारतीय संस्कृति के प्रतीक 'ओम' का चिन्ह निकाला था, मानो उन्होंने मुझे अपने और करोडो देशवासियों के दिल के साथ जोड़ लिया है, ऐसीही मेरी भावना हुई थी। सच कहा जाए, तो मुझे उस पवित्र चिन्ह को अपने सीने पर पाकर बहुत खुशी हुई। मै खुशीसे गदगद हुआ। यह ऐसा क्षण था जैसे मुझे सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया हो। भारतीय दुश्मनों को और अधिक तेजी से, अधिक मजबूती से निपटाने का वादा करते हुए, उच्चतम परंपरा, अनोखी संस्कृती के धरतीपर मैने पाँव रखा है। क्योंकि मुझे पवित्र ओम के साथ सम्मानित करने के बाद, भारत में जो चर्चाएँ हुई वे सारी व्यर्थ, निरर्थक, फिजुल है। लेकिन सच कहूँ तो मैं एक पल के लिए बहुत घबरा गया था। मैं बहुत बहादुर हूं, मजबूत हूं, लेकिन मैंने यह भी सोचा कि अगर यह आखिर क्या हो रहा है? फ्रांस से भारत यात्रा के दरम्यान, जब मैंने ओम शब्द की खोज की, तो मैंने पाया कि ओम शब्द बहुत ही प्रिय है, जो भारतीयों के दिल में स्थित है। ओम का अर्थ है क्षमता, ओम का अर्थ है बारीकी से काम करना, ओम हमेशा सक्रिय होता है, और ओम का अर्थ होता है भाग्यशाली! ओम का अर्थ है पवित्र! ओम का अर्थ है सकारात्मक भाव! ओम का अर्थ है कभी भी पिछे न हटनेवाला, सदा आगे बढनेवाला! प्रिय भारतीयों, मैं आपकी रक्षा करने में सक्षम हूं, मैं आपकी और देश की रक्षा करने के लिए दृढ़ हूं, मैं आपकी सेवा में हमेशा सक्रिय रहूंगा, मैं सकारात्मक भावना से काम करूंगा। मुझे आपकी सेवा करने का अवसर मिला है। ओम यह बहुत ही पवित्र शब्द है। रक्षामंत्रीजी ने मुझे 'ओम' यह अत्यंत पावन, पवित्र सम्मान, सर्वोच्च पुरस्कार बहाल किया है, ऐसा मेरा मानना है। ओम यह शब्द मै मेरे ह्रदय मे संभालके रखुंगा, जो हर परिस्थिती मे मुझे उच्चतम कार्य के लिए प्रेरित करेगा। ओम की उपस्थिति मेरे लिए प्रेरणादायक, ज्ञानवर्धक, प्रेरक होगी।
प्यारे भारतीयों, दशहरे के दिन मेरी पूजा करके आपने मेरा दिल जीत लिया है, लेकिन मुझे यह एहसास भी है कि मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। मेरा कर्तव्य मुझे प्रेरित कर रहा है, असाधारण उपलब्धियों के लिए प्रेरित कर रहा है। मैं केवल और केवल भारतीयों की रक्षा करूंगा। अगर दुश्मन किसी भी तरह से भारत की ओर आ रहा है, तो मैं उसकी गर्दन निचोड़ने में सक्षम हूं। आपने, आपके प्रधान मंत्री और आपकी सरकार ने पिछले कुछ वर्षोंसे कडी से कडी आलोचना सहन करके मुझे भारत लाने का जो सफल प्रयास किया है, उस से मेरा आप सभी के प्रती आदर बढ गया है। मुझे भी एक प्रकार की ऊर्जा, उत्साह मिला है। मेरे आने के साथ देश और विदेश में भारतीय विरोधक होश में आ जायेंगे, उनके पैर जमीन पर आने की उम्मीद है। इसलिए डरो मत, भारतीयों, किसी भी धमकी से भयभीत न हों क्योंकि कोई भी आक्रमकता, धमकीसे डरना नहीं है, मैं हूं, मैं हूं! वास्तव में, भारत हथियारों के क्षेत्र मे, रक्षा के मामले में पहले से ही बहुत मजबूत, आत्मनिर्भर है। पिछले कई युद्धों में, भारतीयों ने दुनिया को अपनी बहादुरी दिखाई है। दुश्मन को परास्त किया है, पराजित किया है। मैं उन सभी हथियारों, मिसाइलों और अन्य सभी सुरक्षात्मक चीजों के साथ देश की रक्षा करना अपना भाग्य मानता हूं। बहादुर भारतीय सैनिक ... वाह! उनकी बहादुरी, साहस, हिंमत, देशभक्ति को सलाम! इन शूरवीरों को मेरी हार्दिक बधाई! मुझे इन सैनिकों के साथ काम करने, दुश्मन पर टूट पडने और उन्हें खत्म करने पर भी गर्व होगा। वह पल मेरे लिए गौरवशाली होगा।
एक बात मुझे पता है कि आपके विश्वास, आपके स्वागत ने मेरी जिम्मेदारी बढ़ा दी है, और मुझे जैसे हजारों हाथियों की ताकत मिली है। अब मैं पीछे नहीं हटूंगा, मेरी यात्रा शुरू हो गई है। मैं सामने से भारतमाता की ओर आने वाले हथियारों, बमगोले और मिसाइलों से नहीं डरूंगा, लेकिन जैसे ही वे भारत मां की ओर आना शुरु करेंगे या आने की तैयारी कर रहे होंगे, मैं उन सभी को मौके पर ही नष्ट कर सकता हूं। मेरी गति से आश्वस्त रहिए। प्रति घंटे दो हजार पांच सौ किलोमीटर की औसत गति से, और एक मिनट में, मैं साठ हजार फीट की ऊंचाई पर यात्रा कर सकता हूं। शायद आपके प्यार और विश्वास के कारण, यह गति भी बढ़ सकती है। मैं सैकड़ों किलोमीटर तक की मिसाइलें देख सकता हूं, और उन्हे नष्ट भी कर सकता हूँ। आज एशिया में केवल भारत के पास ऐसी क्षमता का होना मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है।
देश के दुश्मनों
मुझे पहचानों
मैं आया.. मै आया।
मैं हूं ... राफेल! राफेल!! राफेल!!! '
-0-नागेश सू. शेवाळकर
११०, वर्धमान वाटिका फेज ०१, क्रांतिवीरनगर, लेन ०२,
होटल जय मल्हार के पास, थेरगांव, पुणे (महाराष्ट्र)
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