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Saturday, 26 October 2019

असलियत बता.. (कविता) - सुनिल बावणे 'निल'


असलियत बता..
(कविता)
खुद को जानने पहचानने
आईना देखता हूॅ रोज मै...
कोई खोट तो नहीं आयी नियत में
उपरी परत छोड, अंदर झॉककर देखता हूँ मैं ... ।

बोलता हूँ आईने को, चेहरा छोड
मेरे अंदर की खोट दिखा मुझे...
कमी दिखती है, मेरे अंदर इन्सानियत की,
तो, अपने सामने से भगा मुझे... ।

गली कुचें से गुजरता हूँ बदनाम,
संभलकर चलता हूँ राह पर...
असलियत बयां करता हूॅ मेरी सामने पे,
नही लगने दिया दाग दामन पर... ।

कोशिश में लगे रहते है, मैला करने की वो,
जो पाक दामन नही देख सकते...
बिकॉऊ नही होती है, हर चिज यहॉ,
हमें वो नही खरिद सकते... ।

गुजरते वक्त खुलते है दरवाजे उनके,
ईशारे बुलाते है मुझे...
पलभर मिलता हूॅ उनके खुशी के कारण,
बातें होती है ऑखों में ऑखें डालकर
तो हात जोडकर बिदा करते हैं मुझे... ।

घमंड नही भरोसा है अपने काबीलियत पर,
हालातों ने जीना सिखाया है मुझे...
बनावट शक्ल मत दिखा आईने तू,
हूँ जैसा वैसा ही बनकर रहना है मुझे... ।
-०-
सुनिल बावणे  'निल'
मु. पो. बल्लारपुर, ता. बल्लारपुर, जिल्हा :- चंद्रपुर ४४२९०१ (महाराष्ट्र)
-०-
***
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