असली दीवाली
(लघुकथा)
दीवाली का दिन है ,पर राकेश उदास है ।उसकी यादों में वह पिछले साल का वाकया घूम गया,जब पत्नी और मां के बीच झगड़ा होने ,और पत्नी की ज़िद के कारण वह मां को वृध्दाश्रम छोड़कर आ गया था ।पर आज वह पश्चाताप और आत्मग्लानि की अग्नि में जल रहा था ।उसे कुछ भी नहीं सुहा रहा था ।वह बचपन में पहुंच गया । पिता की उसके बचपन में ही मौत के बाद मां ने परेशानियां सहकर किस तरह से उसको पाला था,रह-रहकर उसे याद आ रहा था ।यह सब सोच-सोचकर वह दुखी हो रहा था ।वह गुमसुम बैठा था ।
तभी पत्नी राशि ने आकर कहा-"ज़ल्दी तैयार हो जाओ,हमें बाज़ार चलकर पूजा का सामान लाना है ।"
"नहीं ,मेरा मन नहीं है,तुम टैक्सी से जाकर ले आओ ।" राकेश ने उदासी के साथ जवाब दिया ।
"अरे,आप कैसी बात करते हैं ।दीवाली तभी फलेगी जब हम ख़ुद जाकर पूजा का सामान लाएंगे,और मन से पूजा करेंगे ।" पत्नी ने कहा,तो वह मन ही मन भुनभुना कर रह गया ।वह कहना चाहता था कि इस घर की असली मालकिन मां को घर से भगाकर अब वह पूजा फलने का ज्ञान मत दो ,अब कुछ नहीं होने वाला ।पर वह कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं कर पाया ,और चुपचाप तैयार होकर कार निकालकर गेट के बाहर जाकर राशि का इंतज़ार करने लगा ।
रास्ते में राशि ने उससे यहां-वहां की बहुत बातें कीं,पर राकेश ने कोई रुचि नहीं ली ।राशि उसे निर्देशित भी करती जा रही थी कि कार को बांये लो-दांये लो,सीधे ले चलो ।वह यंत्रवत् पत्नी के आदेश का पालन करता जा रहा था ,और जैसे ही पत्नी ने कहा कि हां कार इसी बिल्डिंग के सामने रोक दो,वैसे ही उसकी तंद्रा भंग हुई ।उसने देखा कि यह तो वही आश्रम है जहां वह मां को एक साल पहले छोड़ गया था।
वह आश्चर्य से पत्नी की ओर देखते हुए बोला-" यह तुम कहां ले आईं ,हम तो पूजा का सामान लेने निकले थे ?"
"हां,मैंने सही कहा था ।हम यहां पूजा का सामान लेने ही आए हैं ।जब घर में मां होंगी,तभी पूजा पूरी भी होगी,और फलेगी भी ।भला,मां से बड़ा पूजा का सामान क्या होगा ?------क्या ,हम पिछले साल की ग़ल्ती नहीं सुधार सकते ?"
कुछ रुककर राशि फिर बोली कि,"आशा,है तुम मुझे माफ कर दोगे ,और मां तो माफ कर ही देगीं।" राशि ने पति के आश्चर्य को दूर करते हुए कहा ।
मां को लेकर लौटते समय तक शाम होने लगी थी,लोग दीये जलाने लगे थे,रोशनियां जगमगाने लगी थीं, राकेश को लग रहा था कि उसकी असली दीवाली तो अब मनेगी ।राशि भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी ।
-०-डॉ.नीलम खरे
व्दारा- प्रो.शरद नारायण खरे,
मंडला (मध्यप्रदेश)
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