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Saturday, 26 October 2019

चेहरे की हँसी (ग़ज़ल) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"

चेहरे की हँसी
(ग़ज़ल)

चेहरे की हँसी नकाब-सी लगती है।
आँखें तेरी लाजवाब-सी लगती है।

तुम्हें पाने की जिद्द थी हमें ता-उम्र,
उछलती तरंग सैलाब-सी लगती है।

पलकों से बह रहे हैं अश्कों की बूंदे,
तेरे बिन जिन्दगी खराब-सी लगती है।

उलझी पहेली जिन्दगी की इसकदर,
जिन्दगी खाली किताब-सी लगती है।

वफा के बदले बेवफाई मिली हमें,
लिखे अल्फाज बेहिसाब-सी लगती है।

मन के बाग में अब खिल रही है कलियां,
धड़कन मिलने को बेताब-सी लगती है।

तुम मिल जाओ तो पा लिया सारा जहाँ,
दिल मिलना पंखुरी गुलाब सी लगती है।
-०-
सुमन अग्रवाल "सागरिका" 
11, विश्वकर्मा एन्क्लेव एक्सटेंशन शास्त्रीपुरम रोड़ आगरा, 282007
-०-



***
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