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Saturday, 26 October 2019

हस्ताक्षर हैं पिता (मुक्तक कविता ) - डॉ लता अग्रवाल


हस्ताक्षर हैं पिता
(मुक्तक कविता )
चली आती थीं
सायकिल पर
होकर सवार
खुशियाँ,
शाम ढले
नन्हें-नन्हें उपहारों में
संग पिता के
घर का उत्सव थे पिता |

संघर्षों के
आसमान में
बरसती बिजलियों से
लेते लोहा
ऐसी अभेद दीवार थे पिता |

चिंताओं के कुहरे से
पार ले जाते
अनिश्चय के भँवर में
हिचकोले लेती
नाव के कुशल पतवार थे पिता |

चहकते रहते थे रिश्ते
महकती थी
उनसे प्रेम की खुशबू
सम्बन्धों के लिये
ऐसी कुनकुनी धूप थे पिता |

जिन्दगी की
कड़ी धूप में
नहला देते
अपने स्नेह की
शीतल छाँह से
ऐसे विशाल बरगद थे पिता |

घर -भर को
नया अर्थ देते
जिन्दगी के
रंगमंच के
अहम किरदार थे पिता ।

हर परीक्षा में
हमारी
सफलता -असफलता की
रिपोर्ट कार्ड के
महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे पिता |

आज
उत्सव के अभाव में
गहरा सन्नाटा है घर में
चहुँ ओर
कड़कती हैं बिजलियाँ |
जीवन नैया
फसी है भंवर में
कुनकुनी धूप के अभाव में
दीमक खा गई
रिश्तों को
एक अहम किरदार के बिना
सूना है
जीवन का रंगमंच
सफलता – असफलता के
प्रमाणपत्र
बेमानी है
एक अदद हस्ताक्षर के
बिना ।
-0-


निवास -
डॉ लता अग्रवाल
73 यश विला भवानी धाम फेस - 1 , नरेला शन्करी . भोपाल - 462041


***
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