(मुक्तक स्वगीत)
मुझसे ही मेरी छिड़ गई है जंग आज,
खुद से ही हो गई हूँ भयभीत आज।
खुद से नजरे चुरा के देखा जो आईना आज,
अनगिनत सवालों से घिर गई खुद ही आज।
क्या ये सवाल देगें मुझे बिते वर्षों का जवाब,
या रह जाएगा दामन मेरा जैसे कोई कोरी किताब।
कह रहे अधर मेरे ,देखे आस नेत्र घनेरे।
चुप्पी तोड़ो, कुछ तो बोलो ,
खिल उठो पुष्प बन ,
महका दो आंगन आज ।
ना भाऐ बादल का रंग,
तो उड़ाओ तुम इन पर गुलाल,
आतुर हैं थिरकने संग तुम्हारे,
तुम्हारी परछाई आज ।
कर दो रोशन अमावस को,
न छिपे कोई सितारा आज।
जो छेड़ दी है जंग खुद से,
तो बन जाओ वीरांगणा आज,
तो बन जाओ वीरांगणा आज ।
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रामकुमारी करनाहके 'अलबेली'
नायर्स एसेन्स इंटरनैशनल्स स्कुल,
नागपुर (महाराष्ट्र)
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