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Saturday, 26 October 2019

सुन बंधु (कविता) - अमित खरे


सुन बंधु 
(कविता)
सुर से ताल मिलाना बन्धु
वक्त पड़े तो आना बन्धु ।

दुनिया की दुनियादारी में
हवा नही हो जाना बन्धु।

इस दुनिया के तौर तरीके
कदम कदम झुठलाना बन्धु।

हमको तुमको लगा हुआ है
रोग बहुत पुराना बन्धु।

इश्क खता है करते सब हैं
भरते हम जुर्माना बन्धु।

जहाँ दर्द है उसी गली में
अपना ठौर ठिकाना बन्धु।

छोड़ के जाना है इस जग को
क्या खोना क्या पाना बन्धु।

अमृत कुण्ड जहाँ रख्खा है
मारो वहीं निशाना बन्धु।

टूट गए हैं रिश्ते नाते
इनमें नेह भराना बन्धु ।
-०-
अमित खरे
केंद्र संयोजक
पाठक मंच इकाई
सेवड़ा जिला दतिया मध्य प्रदेश
-०-




***
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