आओ , मिलकर दीप जलाएँ
(पद्य: कविता)आओ , मिलकर दीप जलाएँ।
अंधकार को दूर भगाएँ ।।
नन्हे नन्हे दीप हमारे
क्या सूरज से कुछ कम होंगे ,
सारी अड़चन मिट जायेंगी
एक साथ जब हम सब होंगे ,
आओ , साहस से भर जाएँ।
आओ , मिलकर दीप जलाएँ।
हमसे कभी नहीं जीतेगी
अंधकार की काली सत्ता ,
यदि हम सभी ठान लें मन में
हम ही जीतेंगे अलबत्ता ,
चलो , जीत के पर्व मनाएँ ।
आओ , मिलकर दीप जलाएँ ।।
कुछ भी कठिन नहीं होता है
यदि प्रयास हो सच्चे अपने ,
जिसने किया , उसी ने पाया ,
सच हो जाते सारे सपने ,
फिर फिर सुन्दर स्वप्न सजाएँ ।
आओ , मिलकर दीप जलाएँ ।।
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला ©®
बंगला संख्या-99 ,
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड- 307026 (राजस्थान)
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बहुत सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई ।
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