तुलसी ईश्वर का रूप......
( विधा: कविता)
तुलसी मेरे आँगन की
हैं ईश्वर का रूप
इसकी पावन पंखुड़ियां है
गौरा के समरूप
प्रांगण की शोभा में
चार- चाँद लग जाते हैं
हरित मंजरी से न जाने
अनगिनत रोग कट जाते हैं
प्रातः बेला में दर्शन से
मन हर्षित हो जाता है
चरणामृत बनकर उतरे गले से
तो जीवन भव सागर तर जाता है।।
-०-
नेहा शर्मा ©®
अलवर (राजस्थान)
-०-
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