सृजन महोत्सव
(कविता)
हम - हाथ से हाथ पकड़ लिये हैं
सृजन से सृजन मिलाते हैं
मन से मन
और
दिल से दिल,
पावन पर्व में शामिल कर ।
गंगा जमुना अचिरवती
नदियों के पानी जैसे
हम लोगों में खुशियाँ हैं
स्वर्ग की तरह है ये त्योहार ।।
कविताओं का कंगन है
कमानियाँ तो कंचन हैं
भावनाओं का बंधन है
सुन्दरता का आंगन है ।।
दीपक जलता है चाँद सा
दीपावली की मां जैसा
हर जगह सम्मान हैं ऐसा
टिप टिप गिरती है वर्षा ।।
हम - हाथ से हाथ पकड़ लिये हैं
सृजन से सृजन मिलाते हैं
मन से मन
और
दिल से दिल,
पावन पर्व में शामिल कर ।
गंगा जमुना अचिरवती
नदियों के पानी जैसे
हम लोगों में खुशियाँ हैं
स्वर्ग की तरह है ये त्योहार ।।
कविताओं का कंगन है
कमानियाँ तो कंचन हैं
भावनाओं का बंधन है
सुन्दरता का आंगन है ।।
दीपक जलता है चाँद सा
दीपावली की मां जैसा
हर जगह सम्मान हैं ऐसा
टिप टिप गिरती है वर्षा ।।
No comments:
Post a Comment