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Saturday, 26 October 2019

दीवाली का सच्चा आनंद (कहानी) – डा.देशबन्धु ‘शाहजहाँपुरी’

दीवाली का सच्चा आनंद
(कहानी)
जैसे-जैसे दीवाली का त्यौहार पास आता जा रहा था, वैसे-वैसे सुनील, अजय और सुमन का उत्साह बढ़ता जा रहा था | हर बार की तरह इस बार भी तीनो भाई-बहन को पिताजी ने अपने मनपसंद कपड़े बनवाने और आतिशबाजी वगैरह खरीदने के लिए प्रत्येक को एक हजार रूपए दिए थे | सुमन और सुनील कक्षा 10 के छात्र थे | दीवाली के एक माह पहले ही सुनील और अजय ने अपनी-अपनी पसंद के कपड़े खरीद लिए थे | सुमन को नए कपड़े सिलवाने का बहुत शौक था | हर बार जैसे ही पिताजी रुपए देते, सुमन सबसे पहले अपने लिए कपड़े खरीद लेती थी | लेकिन इस बार न जाने क्यों उसने दीवाली के मात्र 15 दिन रह जाने के बावजूद अपने लिए कपड़े नहीं खरीदे | सभी लोग आश्चर्यचकित थे | किसी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि हर बार सबसे पहले कपड़े खरीदने वाली सुमन ने इस बार कपड़े क्यों नहीं खरीदे | सुनील और अजय तो सोच रहे थे कि शायद इस बात सुमन ने कोई नई मनपसंद चीज खरीदने की योजना बनाई है |

दीवाली का दिन आने में अब मात्र 8 दिन शेष थे | शाम को सभी लोग लान में बैठकर चाय पी रहे थे | तभी किसी ने दस्तक दी | सुमन ने उठकर दरवाज़ा खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गई | सामने उसकी सहेली आरती खड़ी थी | उसके चेहरे पर उदासी झलक रही थी |

“क्या हुआ आरती ? तू इस समय....? मां की तबीयत तो ठीक है ना...?”, सुमन एक ही सांस में सब पूछ बैठी |

“मां की तबीयत बहुत खराब है सुमन..! डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लिखा है | लेकिन यह बहुत महंगा है | मेरे पास.....|”कहते-कहते आरती की जुबान लड़खड़ाने लगी | उसकी आंखों में आंसू भर आए थे |

“रोती क्यों है पगली...! तू चिंता मत कर ! सब ठीक हो जाएगा |” सुमन उसे ढाढस बंधाती हुई अंदर ले गई | आरती को ड्राइंग रूम में बैठाकर वह सीधे लान में पहुंचकर अपने पिताजी से बोली, “पिताजी आप मुझे हर माह दो सौ रूपए जेब खर्च देते हैं ना ? मैं चाहती हूं कि आप अगले माह की जेब खर्च भी मुझे अभी दे दीजिए |”

“क्यों ? अभी रुपए की क्या जरूरत आ पड़ी ? तुमने तो इस बार कपड़े भी नहीं बनवाए | वे रुपए भी तो तुम्हारे पास होंगे |” पिताजी ने पूछा |

यह बात सुनकर सुमन ने कहा, “पिताजी, मेरी एक सहेली है, आरती | इस संसार में उसकी केवल मां है, जो लोगों के कपड़े वगैरह सील कर अपना और आरती का गुजारा करती है | कुछ सप्ताह पहले उनकी तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई | इससे आरती की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ा | एक दिन वह जब स्कूल आई तो बहुत उदास थी | मैंने जब उससे इसका कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी | आरती ने परीक्षा का फॉर्म भी नहीं भरा था, क्योंकि उसके पास फीस जमा करने के लिए रुपए नहीं थे | उसकी यह दास्तान सुनकर मैंने सोचा कि कपड़े तो मैं बाद में भी बनवा सकती हूं, लेकिन यदि आरती ने फार्म नहीं भरा तो उसका एक साल खराब हो जाएगा | इसीलिए मैंने कपड़े बनवाने के लिए मिले अपने रुपयों में से आरती की फीस जमा कर दी और बाकी बचे रुपए उसकी मां की दवाई वगैरह के लिए उसे दे दिए |” यह कहकर सुमन कुछ क्षण के लिए रुक गई |

सभी लोग उसकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे |

“क्या उसकी मां की तबीयत ठीक हो गई ?” पापा ने तुरंत पूछा |

“हां, उनकी तबीयत ठीक हो गई थी | लेकिन उन्होंने कमजोरी की हालत में ही सिलाई का काम पुनः शुरू कर दिया | इसका बुरा प्रभाव उनके कमजोर शरीर पर पड़ा | इसलिए उनकी तबीयत फिर खराब हो गई | डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लिखा है, जो बहुत महंगा है | आरती के पास इस समय इतने रुपए नहीं हैं कि वह इतना महंगा इंजेक्शन खरीद सके | इसलिए वह मेरे पास आई है |” यह कहकर सुमन ने आरती द्वारा दिया हुआ इंजेक्शन वाला पर्चा अपने पिताजी की ओर बढ़ा दिया |

सुमन के इस त्याग की कहानी सुनकर माँ और पिताजी बहुत प्रसन्न हुए | मां को न जाने क्या सूझा, वह तुरंत कुर्सी से उठीं और सुमन का मस्तक चूम कर बोलीं, “मुझे तुमसे यही आशा थी मेरी बिटिया |”

पिताजी और सुमन, आरती के साथ उसी समय बाजार से इंजेक्शन और कुछ फल खरीद कर उसके घर गए | कुछ देर बाद इंजेक्शन और दवा के प्रभाव से आरती की मां के स्वास्थ्य में कुछ सुधार आया |

अब हर शाम सुमन अपने पिताजी के साथ आरती के घर जाती थी | कुछ दिनों के बाद आरती की मां की तबीयत बिल्कुल ठीक हो गई |

दीवाली के दिन जब शाम को पिताजी बाजार से घर आए तो उनके हाथ में दो पैकेट थे | उन्होंने दोनों पैकेट सुमन को देकर कहा, ‘बिटिया, देख में क्या लाया हूं ?”

सुमन ने जैसे ही एक पैकेट खोला, वह मारे खुशी के उछल पड़ी | उसमें दो सुंदर फ्राकें थीं | दूसरे पैकेट में ढेर सारे इको फ्रेंडली पटाखे थे |

“एक फ्रॉक आरती के लिए है न पिताजी...?”सुमन ने पूछा |

“हां, तेरी प्यारी सहेली को भुलाया जा सकता है भला ?”पिताजी ने हंसकर कहा|

“ओह पिताजी, आप कितने अच्छे हैं.?”यह कहकर सुमन फ्राक और आतिशबाजी का पैकेट लेकर आरती के घर की ओर दौड़ पड़ी | इस समय दीवाली मनाने का सच्चा आनंद उसे मिल रहा था |
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डा.देशबन्धु ‘शाहजहाँपुरी’
आनन्दपुरम कालोनी,(बीबीजई चौराहा)
निकट जय जय राम आटा चक्की ,
शाहजहाँपुर(उ0प्र0)242001
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