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Saturday, 26 October 2019

सादगी (आलेख) - बलजीत सिंह

सादगी
(आलेख)
सड़क में जितने ज्यादा मोड़ होंगे , उस पर चलने में उतनी ही ज्यादा परेशानी होगी । अगर उस सड़क को सीधा कर दिया जाए , उसकी दूरी भी कम होगी और पहुंचने में समय भी कम लगेगा । इसी प्रकार हमारे जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं । अगर हम उतार-चढ़ाव के समय थोड़ा -सा संभल कर चलें , हमारा जीवन पहले की अपेक्षा अच्छा हो सकता है । जीवन को अच्छी तरह से जीने के लिए मनुष्य में सादगी का होना बहुत जरूरी है ।

हमारी सोच एवं व्यवहार में किसी प्रकार के बाह्य दिखावे का न पाया जाना , सादगी या सादापन कहलाता है । जिस मनुष्य में सादगी होती है , उसका वैभव कभी कम नहीं होता ।

चेहरे पर मालिश करने से चमक आ जाती है , परंतु वह चमक कुछ समय बाद फीकी पड़ जाती है । उस चमक को बरकरार रखने के लिए , हमें सबसे पहले अपने शरीर को स्वस्थ रखना पड़ेगा । शरीर से पसीना बहाना पड़ेगा ।उसके बाद चेहरे पर जो चमक आएगी ,वह कभी फीकी नहीं पड़ेगी ।चमक को पैदा किया जा सकता है , उसके लिए किसी बाह्य पदार्थ को चेहरे पर लगाने की आवश्यकता नहीं होती ।

कच्छी ककड़ी को काटकर , उसे अच्छी तरह से साफ करके ,उस पर नमक लगाकर ,जब हम खाते हैं, वह उतनी स्वादिष्ट नहीं लगती , जितनी एक पक्की हुई ककड़ी लगती है । पक्की हुई ककड़ी खाने में स्वादिष्ट होती है , उस पर नमक लगाने की आवश्यकता नहीं होती ,क्योंकि उसकी सादगी में ही उसकी ताजगी होती है ।

अच्छे कपड़े पहनना अच्छी बात है ,परंतु ऐसा भी मत पहनो ,जिसमें अश्लीलता नजर आती हो । जिन वस्त्रों को पहनने से अश्लीलता नजर आती है , उनसे कभी सुंदरता नहीं बढ़ती । सुंदरता तो उन वस्त्रों से बढ़ती है , जो अच्छी तरह से पहने जाते हैं , अच्छी तरह से साफ- सुथरे होते हैं अर्थात् सुंदरता हमेशा सादगी से ही बढ़ती है ।

मकान की दीवारों पर सुंदर-सुंदर तस्वीरें तभी अच्छी लगती है , जब हम उस मकान में सफाई रखते हैं । उन तस्वीरों पर धूल जमने से , उस मकान को कोई सुंदर नहीं कहेगा । जिस मकान में सफाई होती है , उसे ही सुंदर मकान कहा जाता है । सफाई में वह सादगी होती है , जिसके सामने रंग-बिरंगी दीवारें भी फीकी दिखाई देने लगती हैं अर्थात् सादगी सर्वगुण संपन्न होती है ।

सोने के गिलास में पानी का स्वाद वैसा ही होता है , जैसा कांच के गिलास में होता है । यहां पर हमें पानी पीने की इच्छा होती है , गिलास की नहीं । ऐसे समय में हमें गिलास की गुणवत्ता को नहीं देखना , पानी की गुणवत्ता को देखना है । वह पानी कितना शुद्ध है , यह बात हमारे लिए महत्वपूर्ण है । पानी कौन से गिलास में पीते हैं , यह बात महत्वपूर्ण नहीं है ।

गर्मी के मौसम में , किसी छायादार वृक्ष के नीचे बैठने से जो आनंद प्राप्त होता है , वह आनंद किसी वातानुकूलित कमरे में प्राप्त नहीं होता । वृक्ष के नीचे हमेशा ठंडी हवा लगती है , उस हवा में शुद्धता भी होती है । शुद्ध हवा में ताजगी होती है , जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है । इसलिए खुले वातावरण में हमें ताजगी का अनुभव होता है ।

हम जैसा भी हम खाते हैं , हमारा मन वैसा ही हो जाता है । बाजरा , मक्का आदि मोटा अन्न खाने से हमें ताकत मिलती है और नींद भी गहरी आती है । गेहूं , चावल , चना आदि इन सभी अन्नों में पौष्टिक गुण होते हैं । हमें मौसम के अनुकूल सभी अन्न खाने चाहिए । इसी प्रकार सादगी भी सर्वगुण संपन्न होती है , हमें इसके गुणों को अवश्य पहचाना चाहिए ।

भोजन पकाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । इसी प्रकार सादा जीवन व्यतीत करने के लिए , हमारे अंदर ऊर्जा का होना अति आवश्यक है । अतः सादगी ही वह ऊर्जा है ,जो हमारे जीवन को उभार सकती है ।
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बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
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