(दोहे)
दीवाली का अर्थ है , खुशियां रहें समीप ।
आलोकित हो जगत सब,जलें ज्ञान के दीप ।।-1
दीवाली के दिन हुआ, जगमग आँगन द्वार ।
घर-घर में दीपक जले, लुटा प्यार ही प्यार ।।-2
रंग-बिरंगी रोशनी, खुशियां करें किलोर ।
पंचमुखी दीपक जलें, घर में चारों ओर ।।-3
मिट जाये आतंक सब,रहे न अत्याचार ।
भी हमें अच्छा लगे, दीपों का त्यौहार ।।-4
किया निमंत्रण प्रेम का, दीपों ने स्वीकार ।
दीवाली के दिन किया, रजनी का शृंगार ।।-5
दीप जले थे रात भर ,करते रहे प्रकाश ।
दूर - दूर मावस रही, सारी रात उदास ।।-6
आलोकित हो जगत सब,जलें ज्ञान के दीप ।।-1
दीवाली के दिन हुआ, जगमग आँगन द्वार ।
घर-घर में दीपक जले, लुटा प्यार ही प्यार ।।-2
रंग-बिरंगी रोशनी, खुशियां करें किलोर ।
पंचमुखी दीपक जलें, घर में चारों ओर ।।-3
मिट जाये आतंक सब,रहे न अत्याचार ।
भी हमें अच्छा लगे, दीपों का त्यौहार ।।-4
किया निमंत्रण प्रेम का, दीपों ने स्वीकार ।
दीवाली के दिन किया, रजनी का शृंगार ।।-5
दीप जले थे रात भर ,करते रहे प्रकाश ।
दूर - दूर मावस रही, सारी रात उदास ।।-6
घर-घर में दीपक जले, तरह-तरह के रंग ।
गगन धरा पर आ गया, लेकर तारे संग ।।-7
घी के दीपक अब कहाँ, मँहगाई की मार ।
शहर-गाँव घर मोम के, दीपक जलें हजार ।।-8
साफ सफाई हर तरफ, स्वच्छ हुए घर द्वार ।
रोगों से लड़ता मिला , दीपों का त्यौहार ।।-9
इस मतवाली नींद से,जाग जिंदगी जाग ।
बाहर तेरे रोशनी , अंदर बुझा चिराग ।।-10
तेज पटाखे फुलझड़ी,धूं-धूं चले अनार ।
हवा विषैली कर गया, दीपों का त्यौहार ।।-11
तेज पटाखे, फुलझड़ी,मीठा,खील ,अनार ।
माँग-माँग कर सो गए, पूजा,अजय कुमार ।।-12
दीपक ज्योती ज्ञान की,- --हरे तिमिर अज्ञान ।
पढ़ी लिखी जो बालिकी, घर-वर की पहचान ।।-13
गगन धरा पर आ गया, लेकर तारे संग ।।-7
घी के दीपक अब कहाँ, मँहगाई की मार ।
शहर-गाँव घर मोम के, दीपक जलें हजार ।।-8
साफ सफाई हर तरफ, स्वच्छ हुए घर द्वार ।
रोगों से लड़ता मिला , दीपों का त्यौहार ।।-9
इस मतवाली नींद से,जाग जिंदगी जाग ।
बाहर तेरे रोशनी , अंदर बुझा चिराग ।।-10
तेज पटाखे फुलझड़ी,धूं-धूं चले अनार ।
हवा विषैली कर गया, दीपों का त्यौहार ।।-11
तेज पटाखे, फुलझड़ी,मीठा,खील ,अनार ।
माँग-माँग कर सो गए, पूजा,अजय कुमार ।।-12
दीपक ज्योती ज्ञान की,- --हरे तिमिर अज्ञान ।
पढ़ी लिखी जो बालिकी, घर-वर की पहचान ।।-13
घर-घर आती स्वच्छता,सुखी रहें परिवार ।
जाती घर से गन्दगी , आते जब त्यौहार ।।-14
शमा जली करती रही, तूफ़ां से संघर्ष ।
भगा तिमिर रोशन हुआ,दीपक का उत्कर्ष ।।-15
-०-
शिव कुमार 'दीपक'
बहरदोई,सादाबाद, हाथरस (उ०प्र०)पिन-281307
-०-
जाती घर से गन्दगी , आते जब त्यौहार ।।-14
शमा जली करती रही, तूफ़ां से संघर्ष ।
भगा तिमिर रोशन हुआ,दीपक का उत्कर्ष ।।-15
-०-
शिव कुमार 'दीपक'
बहरदोई,सादाबाद, हाथरस (उ०प्र०)पिन-281307
-०-
अतिसुन्दर दोहे। बधाई दीपक जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय ।
Deleteबहुत सुन्दर दोहा श्री ..बहुत ही सटीक दोहे
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय ।
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