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Sunday, 19 April 2020

★ सब कुछ ठीक हो जाएगा★ (कविता) - अमन न्याती

★ सब कुछ ठीक हो जाएगा★
(कविता)
चार दिवारी घर की तुम्हारी,
हाथो पर थोड़ा साबुन और पानी,
मुँह पर कपड़े की रखवाली,
वरदान ज़िंदगी का दे जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
अकेलेपन को गले लगा लेना,
अपनों से दूरी बना लेना,
हाथ मिलाना नही किसी से,
बस खुद को गले लगा लेना,
फिर तुम्हे ना वो छू पाएगा ,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
कुछ समय की बात है बस,
सफर दुनिया का टाल देना,
फिर भी जरूरी लगता है कुछ,
अपने अंदर ही झांक लेना,
रास्ता मंजिल का मिल ही जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
इम्तिहाँ है ये हम इंसानो की,
इंसानियत थोड़ी दिखा देना,
पका रहे हो पकवान घरो में,
दो रोटी ज्यादा पका लेना,
गर लगा रहा कोई गुहार मदद की,
दुआए उसकी पा लेना,
इतना भी ना कर सको तो ,
कर्तव्य इतना निभा देना,
ढाल बन कर बचा रहे जो,
दिल पर रखकर हाथो को अपने,
बस बात उनकी मान लेना,
फीकी पड़ी ये दुनिया में रंग फिर से भर जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
-०-
पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

-०-

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प्रकृति और नव वर्ष (कविता) - अनामिका रोहिल्ला

प्रकृति और नव वर्ष
(कविता)
प्रकृति का दोहन
ना करें,इंसान
वरना भुगतने
पड़ेंगे भयानक परिणाम

प्रकृति जब संतुलन
बनाती है,
तो कोरोना वायरस
रूपी कोहराम
मचाती है।

यह असंतुलन
इंसानों पर
पहले भी ,पड़ा था
जब प्रकृति ने
बुलबुल चक्रवात,
अमेजन की भीषण आग,
केदारनाथ में बादल फटना,
ग्रेटा थन बर्ग का यूएनओ में रुदन
संकेत दिए बारी-बारी
अब तो सुधर जा मनुज
अब है,
तेरी बारी

आओ इस
नव वर्ष पर
संकल्प करें,
कि प्रकृति के प्रति,
कृतज्ञता का भाव धरे
उसे सवार कर
उसका नित,
आभार प्रकट करें।
-०-
पता:
अनामिका रोहिल्ला
दिल्ली 
-०-

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मानवता (कविता) - श्रीमती राखी सिंह


मानवता

(कविता)
माँ का मानव पुतला, अब बदल गया तो,
देख मानवता ने भी चोला,अपना बदल लिया l
आज दिखे सभी लगे है, खुदगर्जी में तो
लगे है सबने जग से नाता, जैसे तोड़ लिया ll

बीवी बच्चों में उसका परिवार बना,
मातपिता को बोझा समझ लिया l
लाल बाल का पोषण है प्रधान बना ,
जनक बना कंगाली का आटा गिला ll

नासमझी में जिम्मेदारी ना वो समझा,
मर्यादा संस्कार मानवता को वो जैसे भूल गया l
दोनों को वृद्धाश्रम लेज़ा कर पहुंचाया,
बचपन कर प्यार जैसे वह भूल गया ll

नाता,रिस्ता, सम्म्मान व अपनापन, 
दिल से न जाने कहाँ छूमंतर सा दिखा l
विकशनशील बन रहा जहाँ आज पर,
मानवता धूमिल तार तार होता दिखा ll

आज समाज में समर्पण,आदर अनुशासन विहीन दिखे नाता
व्यस्त, तनाव में दिखते पर खुश होने का है चोला पहने
कहने को रिश्ते है पर पैसे मतलब का है नाता
नाजाने दिखावट का मुखड़ा आज की पीढ़ी है क्यों पहने
-०-
पता:
श्रीमती राखी सिंह
मुंबई (महाराष्ट्र)


-०-

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Saturday, 18 April 2020

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका (कविता) - दीपिका कटरे

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका
(कविता)
काश ! अगर मैं
तेरे इंसानियत के पीछे छिपेे,
हैवान को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं आज तेरी हैवानियत का
शिकार न हो पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिल में छिपी हुई ,
दरिंदगी को पहचान पाती।
तो शायद,
मैं तुझ जैसे दरिंदे से ,
अपनी लाज को बचा पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिलों-दिमाग में चल रहे,
षड़्यंत्र को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं तेरे घिनोने षड़्यंत्र के खेल का
मुहरा न बन पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे चेहरे के पीछे,
छिपे नकाब को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं अपने चेहरे के नकाब को
बेनकाब न होने देती।

काश ! अगर मैं
तेरी असलियत को पहचान पाती।
तो यूँ ,अकेले में बैठकर आँखों से
अनगिनत आँसू न बहा रही होती।

काश ! अगर खुदा तुने,
देश की बहन - बेटियों की,
दर्द भरी रोने की, चिल्लाने की,
सिसकने की, आवाज सुनी होती।
तो शायद आज निर्भया,प्रियंका,
जैसी देश की बेटियाँ,
धरती माता को लिपटकर रोते हुए,
अपनी मृत्यु को न अपनाती।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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आओ, ऐसे दीप जलाएँ (कविता) - अशोक 'आनन'


आओ, ऐसे दीप जलाएँ 
(कविता)
आओ , ऐसे दीप जलाएं -
पी जो जाएं उर का तम ।

माटी के दीयों के बदले -
उर में प्रेम के दीप जलाएं ।
तम को गले लगाकर हम -
आओ , दीप - पर्व मनाएं ।

दर पर उनके दीप जलाएं -
छाया हो जहां गहरा तम ।

सड़कों पर ही बुझ न जाएं -
टिमटिमाकर जीवन - दीप ।
पानी जैसे इस जीवन को -
अमूल्य बना दें बनकर सीप ।

अपनी रोटी उन्हें खिलाएं -
भूख़ से तोड़ रहे जो दम ।

कैद करके रखी जिन्होंने -
रोशनी अपने महलों में ।
कुचल रहे हैं जो पैरों से -
नाज़ुक कलियां चकलों में ।

तनिक तरस न उन पर खाएं -
बनें दरिंदे जो पीकर रम ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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