*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Monday, 16 March 2020

माह फरवरी २०२० की उत्कृष्ट रचनाएँ

सृजन महोत्सव के माह फरवरी २०२० की उत्कृष्ट रचनाएँ 
               आप सभी को बताते हुए हर्ष हो रहा है कि दीपावली के पावन पर्व पर प्रारंभ किए इस पटल पर आज तक दो सौ अस्सी से भी अधिक साहित्यकार एवं उनकी लगभग 800 से भी अधिक रचनाएं प्रकाशित की जा चुकी है. सभी रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में प्रेषित और इस पटल पर प्रकाशित रचनाएं मौलिक एवं स्तरीय है, इसमें कोई दोराय नहीं है. आपको बताते हुए हर्ष हो रहा हैं कि मात्र फरवरी २०२० माह में देश-विदेश से लगभग 115 गद्य तथा पद्य विधाओं की रचनाएं प्रकाशित की जा चुकी है. आप सभी सृजन धर्मियों का बहुत ही अच्छा प्रतिसाद, स्नेह और प्रेम मिल रहा हैं. इसके चलते आज तक लगभग 33,400 से भी अधिक  लोगों ने इस पटल को भेट दी है.
              आज इस पटल के माह फरवरी २०२० के सर्वाधिक पसंदीदा गद्य और पद्य विधा की भारतीय रचनाओं के रचना शिल्पियों सहित विदेशी रचना शिल्पियों के योगदान को ध्यान में रखते हुए प्रति माह एक विदेशी रचनाकार को भी सृजन महोत्सव परिवार की और से सम्मानित किया जा रहा है. वह निम्न हैं -
कलुतर (श्रीलंका) से पटल से निरंतर जुडी
दुल्कान्ती समरसिंह जी की कविता 
'शायरी' पर
'विदेशी सृजन शिल्पी'
सम्मान से 
पटल की ओर से सम्मानित करते हुए तथा
 सम्मान पत्र सपुर्द करते हुए हर्ष हो रहा हैं.
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-०-

पद्य विधा में भारत वर्ष के बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) की 
अलका 'सोनी' जी की रचना '!! पलभर छोटा है !!' पर
'पद्य सृजन शिल्पी' 
सम्मान से 
पटल की ओर से सम्मानित करते हुए तथा
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गद्य विधा में भारत वर्ष के आदिपुर (गुजरात) के
विवेक मेहता जी की कहानी  
'गुंडे' पर
'गद्य सृजन शिल्पी'
सम्मान से 
पटल की ओर से सम्मानित करते हुए तथा
 सम्मान पत्र सपुर्द करते हुए हर्ष हो रहा हैं. 
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दोनों सृजन शिल्पियों का एवं हमारे साथ जुड़े सभी साहित्य कर्मियों का
हार्दिक आभिनंदन !!!



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बेचते हैं (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'

“बेचते हैं"
(कविता)
दामन में जिनके दाग हैं
वो सफेदी बेचते हैं
दवा बनाने वाले
मर्ज बेचते हैं
शराब बेचकर कोई
दूध खरीदता है
कोई दूध बेचकर
शराब खरीदता है
वो सवाल भेजकर
जवाब खरीदते हैं
चेहरा जिनका गमगीन है
वह खुशी बेचते हैं
अधर्म करने वाले
अब फूल बेचते हैं
प्यार के बदले बच्चे
मां-बाप को शूल बेचते हैं
साधु संत प्रवचन के बदले
अब दुर्बचन बेचते हैं
नेताजी सद्भावना भाईचारा
के बदले दंगा बेचते हैं
करते थे पहले जो चोरी
अब ताले बेचते हैं
दुनिया एक बाजार है यहां
हर कोई कुछ न कुछ बेचता है
खरीदना है आपको अगर
तो अच्छा ही खरीदी है
बेचना है आपको भी
तो अच्छाई बेचिए ,अच्छाई बेचिए
तो ऐसा है सब का जुनून
नहीं है कहीं भी सुकून
तो आइए बकौल गांधी जी
हम उनके आदर्शों को अपनाएं
न बुरा बोले न बुरा देखे ना बुरा सुने-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


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पहेलियाँ - भाग - २ (दोहा पहेली) - महावीर उत्तराँचली

पहेलियाँ - भाग - २
(दोहा पहेली)
अंग-रूप है काँच-का, रंग सभी अनमोल।
आऊँ काम श्रृंगार के, काया मेरी गोल // १२. //

अद्भुत हूँ इक जीव मैं, कोई पूंछ, न बाल।
बैठा करवट ऊँट की, मृग सी भरूँ उछाल // १३. //

बिन खाये सोये पिए, रहता सबके द्वार।
ड्यूटी देता रात-दिन, छुट्टी ना इतवार // १४. //

तनकर बैठा नाक पे, खींचे सबके कान।
उसका वजूद काँच का, देना इसपर ध्यान // १५ //

सर भी उसका पूंछ भी, मगर न उसके पाँव।
फिर भी दिखे नगर-डगर, गली-मुहल्ला-गाँव // १६ //

आ धमके वो पास में, लेकर ख़्वाब अनेक।
दुनिया भर में मित्रवर, शत्रू न उसका एक // १७ //

पूंछ कटे तो जानकी, शीश कटे तो यार।
बीच कटे तो खोपड़ी, नई पज़ल तैयार // १८ //

तेज़ धूप-बारिश खिले, देख छाँव मुरझाय।
अजब-ग़ज़ब वो फूल है, काम सभी के आय // १९ //

गोरा-चिट्टा श्वेत तन, हरी-भरी है पूँछ।
समझ न आये आपके, तो कटवा लो मूँछ // २० //

दरिया है पानी नहीं, नहीं पेड़ पर पात।
दुनिया है धरती नहीं, बड़ी अनोखी बात // २१ //

अन्धा हूँ पर नयन हैं, मुँह रहते मैं मौन।
पैर मगर ना चल सकूँ, यार बता मैं कौन // २२ //-०-
पता: 
महावीर उत्तराँचली
दिल्ली
-०-

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पहेली जवाब 
(12) चूड़ियाँ / (13)मेंढ़क / (14) ताला / (15) ऐनक / (16) साँप / (17) नींद / (18) सियार / (19)छतरी / (20) मूली / (21) मानचित्र (नक़्शा) / (22) गुड्डा

रिसॉर्ट का खेल (व्यंग्य आलेख) - संदीप सृजन

रिसॉर्ट का खेल
(व्यंग्य आलेख)
मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट का खेल अभी चल रही है वह पुरे देश में चर्चा में है। कुछ लोग तो ऐसे है जिन्होंने रिसॉर्ट का नाम ही इससे पहले कभी सुना नहीं था। हॉ इससे पहले फार्म हाऊस प्रयोग राजनीति में होते रहे है। लेकिन अबकि बार मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट प्रयोग हुआ उसके कारण इन रिसॉर्टस् की वैल्यू में बढ़ोतरी हुई है। सिंधिया समर्थकों को बैंगलोर, कांग्रेस समर्थकों को जयपुर, भाजपा समर्थकों को हरियाणा के रिसॉर्ट में ले जाया गया। तो मीडिया में सुबह से लेकर देर रात तक केवल रिसॉर्ट पर ही चर्चा का दौर चल रहा है।

पिछले कुछ सालों से रिसॉर्ट का नाम जिस तरह से हमारे देश की राजनीति में स्थापित हुआ है। उससे लगता है कि ये स्थान देश के बड़े शहरों में किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। रिसॉर्ट अब राजनीति के केन्द्र बन गये है। जिसके पास भी थोड़ा रसूख है और बीस-पच्चीस एकड़ जमीन है वो सबसे पहले अपने फार्महाऊस को रिसॉर्ट बनना चाहता है। चाहे भी क्यों नहीं आखिर एक न एक दिन उनका रिसॉर्ट भी राजनीति का महातीर्थ बन सकता है और प्रदेश या देश की सरकार बदलने में अहम योगदान दे सकता है। और भविष्य में ऐतिहासिक स्थल का दर्जा पा कर लोक पर्यटन का अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक बन सकता है। कोरोना जैसा अन्तर्राष्ट्रीय वायरस भी रिसॉर्ट राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। टॉप पर रहने वाला कोरोना परोक्ष में चला गया।

रिसॉर्ट से जब भी राजनीति के प्यादों के कम-ज्यादा होने के नये आंकड़े आते है तो देश-विदेश का मिडिया बड़े चटखारे लेकर आंकड़ों का कम रिसॉर्ट के बाहर से उसकी भव्यता का बखान ज्यादा करता है, कईं बार समझ ही नहीं पाते है कि हम समाचार देख रहे है या रिसॉर्ट का विज्ञापन। न्यूज़ रिपोर्टर इस रिसॉर्ट महातीर्थ की बार-बार महिमा बता कर आपके और मेरे जैसा सामान्य आदमी पर पारिवारिक दबाव बनवाकर जीवन में एक बार यहॉ की यात्रा को मजबूर कर देता है। घर के लोग भी एक स्वर में इस महातीर्थ की यात्रा यह सोच कर करने को आतुर रहते है कि मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा धरती का स्वर्ग तो ये रिसॉर्ट ही है, आओ यही देख ले। और अपने मन को तृप्त कर ले।

वैसे सामान्य जन की तो औकात ही क्या जो यहॉ की सैर करे, यदा-कदा ब्याह-शादी में मेहमान बन कर गये होंगे या जीवन में 1-2 बार अपने निजी खर्च पर बच्चों और पत्नी की जिद के सामने कसमसाते हुए गये होंगे। लेकिन जो लोग विधायक और सांसद बनते है उनको तो अपने कार्यकाल के दौरान इस दिव्य जगह जाने का सुख स्वतः ही मिलने लगा है और हफ्तों मजा लेने का देव दुर्लभ मौका पार्टी के खर्च पर ही मिल जाता है। वो भी वीआईपी आवभगत के साथ। बिना घरवाली या घरवाले के घर से बेहतर माहौल वाले ये तीर्थ स्थान वैसे तो इन नेताओं के लिए बंदीघर है, लेकिन जब नरक में भी अप्सराएँ सोमरस का पान कराए तो उस स्थान को भी सामान्यजन स्वर्ग से कम नहीं मानेगे। रिसॉर्ट वैसे भी धरती पर स्वर्ग जैसा आनंद लेने के लिए बनाए गये है। और सब जानते है की स्वर्ग जाने के लिए मरना जरुरी है । मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता। इन रिसॉर्ट में कैद हुए विधायक जानते है कि वे स्वर्ग में है या नरक में और रिसॉर्ट मुक्त होने के बाद वे पुण्य फल बांटेंगे या पाप का प्रसाद ये तो भविष्य ही बताएगा।
-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
-०-



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* बेटियाँ * (कविता) - अलका 'सोनी'

* बेटियाँ *
(कविता)
कोयल की कूक कभी
मयूरों की नर्तन होती
हैं बेटियां

रेशमी डोर सी लिपटी
मीठी सी उलझन होती
हैं बेटियां

खुद आगे बढ़ती जाती
कमजोर कहां होती
हैं बेटियां

घुंघरू की रुनझुन सी
बजकर घर को खनकाती
हैं बेटियां

माता-पिता के संसार को
महकाती, हरसिंगार- सी होती
हैं बेटियां

लाड़ भी करती ,ज़िद पर भी आती
मनाओ गर तो मान जाती
हैं बेटियां।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

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सृजन रचानाएँ

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हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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