अंकुर
ये अंकुर तो फूटेंगे
दबे हैं सालों से जो शोले
कभी तो आखिर फूटेंगे
निरधन सह के जिये ही जा रहा
देख अमीरो की अय्याशी
कभी तो होगा ,सोचता बैठा
मेरा भी इक बँगला शाही
जिन बच्चो का शोषण होता
घृणा का अंकुर पनप रहा होगा
हमारा भी इक दिन आयेगा
जब इन सबका सफाया होगा
रोती बिलखती मासुम बेटियाँ
किसके दम पर धीरज धारे
मजबूत हो रही एक एक मिलके
बदले का अंकुर एैसे फूटे
देश मे बदहाली अव्यवस्था
भ्रष्टाचार आतंक अपहरण
कभी तो इक पौधा पनपेगा
असर तो दिखायेगा अंकूरण
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