किताबें हमारी सबसे अच्छी मित्र होती है:
डॉ. मंजरी शुक्ला
डॉ. मंजरी शुक्ला
बाल दिवस के अवसर पर विशेष साक्षात्कार
सृजन महोत्सव के मेहमान : बालसाहित्यकार एवं आकाशवाणी की उद्घोषिका
डॉ मंजरी शुक्ला (पानीपत-हरियाणा)
डॉ मंजरी शुक्ला (पानीपत-हरियाणा)
(परिचय: आदरणीय डॉ मंजरी शुक्ला जी जन्म 30 मार्च 1977 को हुआ। आपने बी.ए. एम.ए.अंग्रेजी में, साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी भी हासिल की है। आप मूल का बाल साहित्य लेखन में विशेष रूचि रखती है।कविता, साहित्य, कला व रंगमंच की समीक्षा, अनुवाद, आलेख, स्क्रिप्ट लेखन में भी रुचि रखते हुए निरंतर लेखन कार्य करती आ रही है। आपकी अभी तक जादुई गुब्बारे, फूलों के रंग, जादुई चश्मा सूरज की सर्दी, जुगलबंदी, मिठाई चोर और अन्य कहानियां, आदि हिंदी में कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी स्वीटीज रेनी डे और रिमी एंड यम्मी फूड अंग्रेजी कृतियां प्रकाशित हो चुकी है। आपको वर्ष 2011 में राज्यपाल श्री माता प्रसाद से लेखन हेतु पुरस्कार प्राप्त हुआ है। साथ ही साथ प्रेमचंद साहित्य समारोह, सर्च फाउंडेशन, भारतीय साहित्य संगम, आदि द्वारा विशेष सम्मानित किया गया है। आप स्वतंत्रता सेनानी उनका लाल शास्त्री समिति पुरस्कार, राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड, पंडित हरिप्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार, आदि दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित है। संप्रति आप स्वतंत्र लेखन और आकाशवाणी उद्घोषिका के रूप में कार्यरत है।)
(परिचय: सृजन महोत्सव के संपादक, कवि प्रो.मच्छिंद्र भिसे जी का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में सन १९८५ में हुआ. आपने स्नातकोत्तर पदवी हिंदी विषय में हासिल की हैं. देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रचानाएँ प्रकाशित हो रही हैं।)
(बाल दिवस की पूर्व संध्या में सुप्रसिद्ध बालसाहित्यकार और आकाशवाणी उद्घोषिका डॉ. मंजरी शुक्ला जी का साहित्यकार संपादक प्रो.मच्छिंद्र भिसे जी द्वारा लिये साक्षात्कार के कुछ अंश)
मच्छिंद्र जी: अपने बाल साहित्य लिखना कब और कैसे आरंभ किया?
मंजरी जी: मैं ये मानती हूँ प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही लेखक होता है। हाँ, ये बात अलग है कि उनमें से कुछ लोग भावों को मन में ही लिखते हैं तो कुछ उन्हें लिखकर कागज़ में साकार रूप दे देते हैं । हमारे घर में लिखने- पढ़ने का माहौल हमेशा ही रहा । मुझे याद है कि जब में दसवीं कक्षा में थी तो होशंगाबाद में मैं कहीं जा रही थी तो रविवार का बाज़ार लगा हुआ था, जिसमें चिलचिलाती धूप में एक बूढ़ा आदमी पुराने कपड़े बेचने वाले के पास बैठा था और उससे एक कुर्ते के पैसे कम कराने के लिए मिन्नतें कर रहा था। उसके गिड़गिड़गिड़ाने को सुनकर पता नहीं क्यों मेरा मन बहुत द्रवित हो गया और मेरी आँखें भर आई। उसने एक जेब में हाथ डाला तो दूसरी ओर से उसका हाथ निकल गया । फ़िर उसने दूसरी जेब में हाथ डाला तो उसमें से कुछ चवन्नी के सिक्के निकले, जिन्हें उसने इतनी सावधानीपूर्वक हाथ में पकड़ा था मानों वे हीरे मोती जैसे बहुमूल्य रत्न हो।
मेरे पास भी उस समय पैसे नहीं थे कि मैं उसकी कुछ मदद कर पाती इसलिए बेबस सी आगे बढ़ गई पर वो बूढ़े आदमी के फटे कुर्ते के छेद और हाथों में चवन्नी मैं कभी भूल नहीं सकी और फ़िर मैंने उस पर एक कविता लिखी कि "उसके हाथों की चवन्नियां उसके कुर्ते में आकर पैबंद की तरह लग गईं हैं...अब आगे तो मुझे याद नहीं है पर यह कविता नई- दुनिया में छपी थी और मुझे इस पर ईनाम भी मिला था। पर इसके बाद मैंने कई साल कुछ नहीं लिखा जबकि मन में आता था कि जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे कह रही हो लिखने के लिए। फ़िर मैंने साईं बाबा से आशीर्वाद लेकर मैंने नंदन में एक कहानी प्रतियोगिता में एक कहानी भेजी और उसके बारे मैं ये सोचकर भूल गई कि कौन सा ईनाम मुझे ही मिलना है। जब महीने भर बाद अचानक नंदन का नया अंक पलट रही थी तो देखा कि उसमें मुझे पुरस्कार मिला था बस फ़िर क्या था, इस बात ने मुझे इतनी ख़ुशी दी कि मुझे लगा कि मैं भी लिख सकती हूँ और लोगो को पसंद आ सकता है। हाँ, वैसे ये बात सच है कि प्रेरणा तो ईश्वर ही देता हैं । जब तक मन से कोई विचार नहीं आये तो मुझे लगता हैं कि शायद ही कोई लिख पाता हो। पर मेरे लेखन में मेरी माँ के अलावा मेरे पति और मेरी बेटी का भी बहुत सहयोग रहा। उन दोनों ने हमेशा मुझे बेहतर लिखने के लिए प्रेरित किया जिससे मुझे लगा कि मैं इस कार्य में निरंतर प्रयासरत रहकर बेहतर साहित्य का सृजन कर सकूँ।
मच्छिंद्र जी: अपने बाल साहित्य विपुल मात्रा में लिखा है आप बाल साहित्य बच्चों तक पहुंचाने के लिए कौन से प्रयास करती हैं?
मंजरी जी: मेरे आस पास जो बच्चे है उन्हें मैं कहानियां सुनाती हूँ और जिन्हें वे बड़े चाव से सुनते भी है। अपनी कहानी सुनाने के बाद मैं उनसे कहानी कहने के लिए कहती हूँ और फ़िर वो अपने दोस्तों से लेकर अपने पेड़ और पौधे तक की कहानियाँ तुरंत मन से बना देते है। मुझे लगता है कि बच्चों में कल्पनाशीलता तो होती ही है पर हम उन्हें थोड़ा सा प्रोत्साहन देकर, थोड़ी सी सही दिशा देकर उनकी सोच को बहुत विकसित कर सकते है। बच्चों को भी उपहार में पुस्तकें देना भी मुझे बेहद पसंद है। मुझे लगता है कि जब तक हमें बच्चे के अंदर पढ़ने की उत्सुकता नहीं पैदा करेंगे तो वह किताबों की तरफ़ से उदासीन होता चला जाएगा और वीडियो गेम में अपना समय व्यतीत करेगा। इंटरनेट पर भी कई जगह मैं अपनी कहानियाँ लगाती रहती हूँ ताकि बच्चे उन्हें पढ़ सके। चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मेरी कोशिश रहती है कि बच्चा पढ़ने में रूचि ले।
मच्छिंद्र जी: नव बाल साहित्यकारों को बाल साहित्य लिखते समय उनका दृष्टिकोण अथवा सृजना की कौन सी दृष्टि होनी चाहिए?
मंजरी जी: मुझे लगता है जो भी बच्चों के लिए लिखे तो सबसे पहले वह खुद एक बच्चा बन जाए। अगर हम अपनी उम्र के हिसाब से सोचते हुए बच्चों के बारें में लिखेंगे तो शायद वह बाल मन को कभी नहीं छू पायेगा। कई लोग मुझसे मिलते है जो कहते है कि कहानियों में जानवर नहीं होना चाहिए, परियाँ नहीं होनी चाहिए, जादू नहीं होना चाहिए तो मुझे ये समझ में नहीं आता है कि तो फ़िर कहानी में बचा क्या।
नैतिक शिक्षा की किताब तो विद्द्यालयों में भी चलती है। क्या सब लोग मिलकर बच्चों को हर जगह पढ़ाएँगे? बड़ों के साहित्य में तो ये बात समझ में आती है कि समाज में जो हो रहा है उस पर लिखा जाता है पर बच्चों को हर समय और हर वक़्त अगर ज्ञान दिया जाए तो वह पढ़ने की बात तो बहुत दूर की है सुनने से ही भाग खड़ा होगा। .
मच्छिंद्र जी: आकाशवाणी की उद्घोषक के रूप में कार्यरत है तो हम जानना चाहते हैं आकाशवाणी के माध्यम से आप कौन से उपक्रम बालक उम्र के लिए चलाती हैं?
मंजरी जी: आकाशवाणी में बच्चों के लिए उनकी उम्र के हिसाब से कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। वर्तमान में मैं आकाशवाणी कुरुक्षेत्र में उद्घोषक के रूप में कार्यरत हूँ और हमारे केंद्र से हर रविवार सवेरे नौ बजकर तीस मिनट पर "बाल सभा" का प्रसारण होता है जिसमें नन्हें मुन्ने बच्चे ढेर सारी बातें करते हुए कविता, कहानी, पहेली या फ़िर चुटकुले, जो भी वे सुनाना चाहते है सुनाते है।
मच्छिंद्र जी: आज के बालक किस प्रकार का साहित्य पढ़ने में रुचि रखते हैं?
मंजरी जी: आज के बच्चे इंटरनेट के कारण बेहद समझदार हो गए है। वे मनोरंजन के साथ साथ आसपास की होनेवाली घटनाओं को भी कहानियों के रूप में पढ़ना पसँद करते है। ये बच्चे जानते है कि अब चाँद सिर्फ़ चंदा मामा ही नहीं है बल्कि एक ग्रह है और लोग जहाँ पर जा रहे है। मंगल ग्रह जो केवल कहानियों और किस्सों में था अब तस्वीर के साथ दिखाई दे रहा है। इसलिए बाल साहित्य के लेखक को बाल-मनोविज्ञान की पूरी समझ एवं जानकारी होनी चाहिए तभी वह बच्चों के अनुरूप साहित्य सृजन कर सकता है। हम जानते है कि पहले घर में बच्चों को संस्कार देने में दादा, दादी,चाचा, चाची इन सभी रिश्तों की बेहद महत्वपूर्ण भूमिकाएं हुआ करती थी पर दुर्भाग्य से बाद के काल में परिवार परंपरा छिन्न भिन्न हुई और देखते ही देखते संयुक्त परिवार समाप्त हो गए है। इसलिए आज के बच्चे को यदि संस्कार देने के काम में बाल साहित्यकारों की भूमिका भी बहुत ज़रूरी है ताकि वे बच्चों के चरित्र निर्माण के साथ साथ उनका मनोरंजन भी कर सके।
मच्छिंद्र जी: आज बाल दिवस के अवसर पर आप बाल साहित्यकार होने के नाते अपने साथी बाल साहित्यकार एवं बाल साहित्य के पाठकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?
मंजरी जी: बाल दिवस के अवसर पर एक बात तो मैं जरूर कहना चाहूंगी कि किताबें हमारी सबसे अच्छी मित्र होती है ये बात सिर्फ़ हमें शब्दों तक ही सीमित नहीं रखनी है बल्कि सभी बाल पाठकों तक पहुँचानी है। ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को जितनी हो सके उतनी अच्छी पुस्तकों के नाम बताकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करे और अपने सामर्थ्य अनुसार बच्चों को पुस्तकें पढ़ने के लिए दे। हम उन्हें बताएं कि पुस्तकें सच्चे अर्थों में हमारी मित्र है। देश विदेश की जानकारियाँ, पर्व, लोक कथाएँ, कहानियाँ, कवितायें, लेख, संस्मरण और महापुरुषों की आत्म कथाएं पढ़ने के बाद जितनी सुखद अनुभूति होती है वो किसी वीडियो गेम पर घंटों अपना समय बर्बाद करके कभी नहीं हो सकती है। कई तरह की बीमारियाँ तो बच्चों को वीडियो गेम खेलने से ही हो रही है। इसलिए अपनी कल्पनाशीलता को जीवित रखने के लिए पुस्तकों से अच्छा मित्र कोई नहीं हो सकता है।
मच्छिंद्र जी: आदरणीया डॉ. मंजरी शुक्ला जी, आज आप हमारे सृजन महोत्सव के मंच पर अपने विचारों को व्यक्त किया और हमारे लिए अपना अमूल्य समय प्रदान करके हमें उपकृत किया इसलिए मैं सृजन महोत्सव परिवार की ओर से आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूँ और आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। आपका हार्दिक आभार! धन्यवाद!!!
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