मानव हूँ
(कविता)
मानव हूँ मानवता की बात करुँगा,
एक बार नहीं मैं तो दिन-रात करुँगा |
बैर मेरा तम भरी काली रातों से -
मैं उज्ज्वल प्रकाश की बात करुँगा ||
भेदभाव, आडंबर का हो विनाश,
फैले जग में सत्य ज्ञान प्रकाश |
भारत बने हमारा विश्वगुरु -
अज्ञान-अंधेरे का हो सर्वनाश ||
ओउम ध्वजा फहराये घर-घर,
ज्ञान-यज्ञ, वेदकथा हो हर-घर |
ये जग ही स्वर्ग बन जायेगा -
मिट जायेगा हर आसुरी ड़र ||
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उ. प्र.
-०-
एक बार नहीं मैं तो दिन-रात करुँगा |
बैर मेरा तम भरी काली रातों से -
मैं उज्ज्वल प्रकाश की बात करुँगा ||
भेदभाव, आडंबर का हो विनाश,
फैले जग में सत्य ज्ञान प्रकाश |
भारत बने हमारा विश्वगुरु -
अज्ञान-अंधेरे का हो सर्वनाश ||
ओउम ध्वजा फहराये घर-घर,
ज्ञान-यज्ञ, वेदकथा हो हर-घर |
ये जग ही स्वर्ग बन जायेगा -
मिट जायेगा हर आसुरी ड़र ||
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उ. प्र.
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