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Thursday, 24 September 2020

स्व-अनुशासन (कविता) - गोरक्ष जाधव


स्व-अनुशासन 
(कविता) 
हम स्व-अनुशासन भूल गए,
परिश्रम का इतिहास भूल गए,
जिए कैसे,कैसे रहे, यह,
कृति का विज्ञान भूल गए।
हम स्व-अनुशासन भूल गए।

हम छोड़कर स्वधर्म को,
कुकर्मों की सीमाओं में बंध गए,
आकाश का धर्म भूल गए,
मानवता का कर्म भूल गए।
हम स्व-अनुशासन भूल गए।

हमारी स्वार्थ की अनहोनी कुरीतियाँ,
भयावह है मानव की कृतियाँ,
आहार का आचार भूल गए,
प्रकृति का सन्मान भूल गए।
हम स्व-अनुशासन भूल गए।

संयम रखें और संकल्प करें,
नित्य नूतन स्वाध्याय से,
प्रेम-शांति के बुद्ध भूल गए,
सृष्टि का संतुलन भूल गए।
हम स्व-अनुशासन भूल गए।
कब बदलेंगी प्रकृति करवट,


उसकी है यह पहली आहट,
श्रेष्ठत्तम बनने की छोड़ दो चाहत,
हम कठपुतली है,यह सत्य भूल गए।
हम स्व-अनुशासन भूल गए।
-०-
गोरक्ष जाधव 
मंगळवेढा(महाराष्ट्र)

-०-




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