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Thursday 24 December 2020

नववर्ष का है इंतज़ार (कविता) - रानी प्रियंका वल्लरी


बारिश की रूमानी फुहार
(कविता)
नववर्ष का है इंतज़ार मुझको 
अपनो में हो व्यवहार सबको 
महामारी में खिली जो  बगिया 
हो जीवन सफल साकार मुझको


घर आंगन के चारदीवारी पर 
जो टपकते सुंदर  शीतल बुंदे 
धुंध कोहरा का हो जो पहरा 
सर्द हवा खूब भाती मुझको 

ओढ़ रजाई  बैठ मै तो 
बनाती ख्याली पुलाव कुछ तो 
नए साल  कुछ नया कर चलो 
कुछ  चले नया व्यापार सबको 
मन में करो  विचार कुछ तो 


कोहरे की चादर ओढ़  प्रकृति 
सज जाती जब सुंदर दुल्हन बन 
मन आतुर हो जाता है मेरा 
दे दे गरम कॉफी का प्याला मुझको 

बच्चें जो घर में सिकुड़े है 
बन गए हैं वो बेकार घर में 
खुल जाए उनका विद्या मंदिर 
करो उपकार सरकार कुछ तो 

महामारी में कुछ बिखर गया जो 
मिलकर  सिमट सुधा बरसाएगी
मन को ना निराश करो अब तो 
फिर सजेगा सुंदर बाजार सबतो 
नव वर्ष का इंतज़ार है मुझको 


हो गए हैं कुछ अपने जो दूर 
प्रकृति का नियम हैं आना जाना 
 इसको बदल नहीं कोई पाया है 
भले कोई बड़ा विद्वान बना 
पर इसका भेद कहाँ पाया
नव वर्ष का इंतज़ार है मुझको 
-०-
पता: 
रानी प्रियंका वल्लरी
बहादुरगढ (हरियाणा)

-०-

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