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Thursday, 24 December 2020

बेटियाँ मासूम, गुनगुनाती गजल हैं (कविता) - डॉ. राकेश चक्र


बेटियाँ मासूम, गुनगुनाती  गजल हैं 

(कविता)
बेटियाँ मासूम ,गुनगुनाती  गजल हैं।
प्रेम का पावन सुहाना फूल कमल हैं ।।
 
देतीं प्यार इतना, ऑंखें भीग जाएँ ।
जीवन पवित्र कर दें ,वो गंगा का जल हैं।।

पर्व की पावन हवाएं, देख अमन-सी।
हैं सुखों की छाँव, आज,यही तो कल हैं।।

बचपना हो गोद लिये घूमें जहाँ में ।
बेटियाँ ही हर सुखों के मीठे पल हैं।।

बेटियाँ, बेटों से बढ़ ,करती दुआएँ।
हैं धरा-आकाश, चंदा का आँचल हैं।।

'चक्र' छाया की  तरह सब बेटियाँ सारी। 
हिम्मत,जोश,होसला भारत का बल हैं।। 
पता: 
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पता: 
डॉ. राकेश चक्र
 मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

-०-

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