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Thursday, 24 December 2020

मधुरिम परिणय (कविता) - अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'

  

मधुरिम परिणय
 (कविता)

"मधुरिम परिणय की बेला पर आमंत्रण स्वीकार करो।

गौरी-गणपतिगण साक्षी हैंब

गठबंधन स्वीकार करो।।


मेंहदी लगे हुए हाथों को उस दिन पहली बार छुआ,

जीवन के सत्संकल्पों का सेंदुर बन श्रृंगार हुआ।

दो वंशों के सम्बन्धों पर जीवन आज निसार करो।।

मधुरिम परिणय,,,,


मैं माँ की गुदड़ी का लालन तुम पापा की रानी हो,

मेरी यात्रा की सहगामी मेरी अमर कहानी हो।

अब सुख दुःख के पार निकल कर  जीवन का व्यवहार करो।।

मधुरिम परिणय,,,


तेरे स्वप्न नहीं जैसा मैं और न सुन्दर काया है,

भीतर एक तपोवन करके यह सब मैंने पाया है।

पूज्य देहरी पर्णकुटी की दीपक बन उजियार करो।।

मधुरिम,,


बिन दहेज के दूल्हन के पग घर आएँ यह कर डाला,

इस समाज को राह दिखाती सदा रहेगी वरमाला।

सुविधाभोगी मत करना मन पीढ़ी में संस्कार भरो।।

मधुरिम,,,


नियत समय की सरल सीढ़ियों पर हमने दो दीप धरे,

हे प्रभु इनकी रक्षा करना चाहे जितने मेघ घिरे।

हम जब बूढ़े हो जाएँगे सोचो संव्यवहार करो।।

मधुरिम परिणय की बेला पर आमंत्रण स्वीकार करो।।

-०-
पता 
अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'
गया (बिहार) 


-०-



***
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