राधा संग कान्हा होली खेलत
(कविता)
राधा संग कान्हा होली खेलत
सखियां निहारे पेडों की आड़ से
चुनरिया राधा की सरकत जाए ,
रंगों की भीगी-भीगी भार से ।
लाल सुर्ख रंग गालों से टपकत
आभा की लपटे फूटे ललाट से
सखा लिए पिचकारी ढूंढत ,
साथ होली खेलन के फिराक मे ।
गोपियां बचने को छुपत फिरत ,
पेड़ों की झुरमुट और झाड़ में ।
मन मयूर डोल- डोल के झूमत ,
फागुन की मनमोहक बौछार से ।
रंग रस की गगरी जाए छलकत ,
देखो फाल्गुन आए बहार के ।
ढोल मंजीरे डफली पे थिरकत ,
राधा सखियां संग मिलाकर ताल से ।
आज इन्द्रधनुष धरती पे उतरत ,
फगुआ बुलाए अपनी सतरंगी फुहार से ।
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