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Tuesday, 10 March 2020

हे भारत के वीर शहीदों (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


हे भारत के वीर शहीदों
(कविता)
हे भारत के वीर शहीदों नमन् मेरा स्वीकार करों।
चरणों में तुम्हारे अर्पित है ये श्रध्दा सुमन स्वीकार करों।

जब भी सीमा पर मुश्किल आई माँ ने तुम्हें पुकारा है।
हो भारत माँ के गौरव तुम तुमसे ये वतन हमारा है।

जिन गीदड़ों ने छुप कर तुम सिंहों पर था वार किया।
भारत के सिंहों ने उनकों घर में घुसकर मार दिया।

पर कसक कुछ रही अधूरी कुछ आतंकी जिन्दा है।
हमको माफ करना वीरों हम बहुत शर्मिन्दा है।

उन बचे हुए दुष्टों को भी जल्दी ही सबक सिखाएँगे।
साँसे छिनेगे उनकी हम जहन्नुम तक पहुँचाएँगे।

उन सबको तो मारेंगे पर तुमको कैसे पायेंगे।
माँ बहन और भाभी को बोलों कैसे समझायेंगे।

छोटी गुड़िया पूछेगी की चाचू पापा कहाँ गये।
बोलों तो हे भाई मेरे उसको क्या बतलायेंगे।

माँ तो सारा दिन रोती है पापा छुप कर रोते हैं।
ये छोटे छोटे बच्चे भी तो पूरी रात न सोते हैं।

देख के भाभी की हालत कुछ कहां नहीं अब जाता है।
मुन्ना का पापा पापा कह के रोना सहा नहीं अब जाता है।

पर दिल पर पत्थर रख कर मुझको सब कुछ सहना पड़ता है।
घरवालों की खुशी की खातिर बस चुप रहना पड़ता है।

जब एकान्त मे होता हूँ तो आँसू छलक ही जातें हैं।
तेरे साथ बिताएं जो पल बहुत याद अब आते हैं।

हे पुलवामा के वीरों अब तुमको ये बचन हमारा हैं।
किसी को न हम भूलेंगे हर कोई हमको प्यारा है।

चौदह फरवरी की तारीख इतिहास में लिख्खी जायेगी।
वेलेंटाइन डे से नहीं शहीदों से जानी जाएगी।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



***
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