ताना
(आलेख)
खेल के मैदान में जब दो खिलाड़ी खेलते हैं ,उनमें से एक की जीत तथा दूसरे की हार निश्चित होती है । किसी भी कारण अगर एक खिलाड़ी घायल हो जाए, उसे खेल से बाहर कर दिया जाता है ।परंतु जिंदगी के मैदान में हार- जीत होती रहती है ।इसमें वही घायल होता है ,जिस पर ताना कसा जाता है ।
वह तीखी बात ,जो हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए, उसे ताना या व्यंग्य कहते हैं ।जब कोई व्यक्ति किसी को ताना देता है, यह दो अक्षरों वाला शब्द उसके दो जहान को हिलाकर रख देता है ।यह कड़वा सच है, इसका सामना सभी को करना पड़ता है ।
दौड़ते हुए रथ का एक पहिया निकलकर अलग हो जाए ,वह रथ वहीं पर चक्कर काटकर रुक जाएगा । इसी प्रकार जब व्यक्ति के मन में कोई बात चुभ जाती है ,उसकी स्थिति भी रथ के निकले पहिये के समान होती हैं । उसके मन में सोच -विचार बार-बार चक्कर लगाते रहते हैं। जैसे हवा सूखे पत्तों को अपने साथ उड़ाकर ले जाती है ,वैसे ही विचार मन को कहीं और ले जाते हैं ।
नदी के बहते हुए पानी की सतह पर, अगर हम रंग करना चाहे ,हमारा प्रयास विफल हो जाएगा, क्योंकि बहते पानी में रंग घुलकर आगे चला जाता है ।इसी प्रकार मन को समझाने का कितना भी प्रयास करें , वह अतीत की यादों में खोया रहता है ।ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने आप पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है । कभी-कभी उसे अपने आप से भी नफरत होने लगती है ।
उड़ते हुए गुब्बारे से अचानक हवा निकल जाए, वह घूमता हुआ नीचे की ओर आता है । इसी प्रकार जब व्यक्ति का मनोबल टूटने लगता है, उसका हृदय भी बिना हवा के गुब्बारे के समान हो जाता है । ऐसे अवसर पर मन की स्थिति कुछ इस प्रकार होती है । जैसे : ----
बसंत में मुरझाए फूल की तरह, सावन में उड़ती धूल की तरह ।
आग से निकलते धुएं की तरह , बिना पानी के कुएं की तरह ।
जहर उगलते हुए सांप की तरह ,उबलते पानी में भाप की तरह ।
भीगे होठों में प्यास की तरह , जंगल में सूखी घास की तरह ।
शेर की डरावनी दहाड़ की तरह , सागर में बर्फीले पहाड़ की तरह ।
कटी हुई बेल की तरह , भूल भुलैया के खेल की तरह ।
पानी की सतह पर रंग की तरह , लोहे की धातु पर जंग की तरह ।
कोयले की उड़ती राख की तरह , सर्दी में फटी पोशाक की तरह ।
आंधी में भड़कती आग की तरह , बुझे हुए चिराग की तरह ।
मिट्टी की सूखी पपड़ी की तरह , जाल में उलझी मकड़ी की तरह ।
कलम से बहती स्याही की तरह , जंग में लड़ते सिपाही की तरह ।
खाल में चुभती सुई की तरह , जलती हुई रुई की तरह ।
भोजन में मिले बाल की तरह , पेड़ पर लटके छाल की तरह ।
बहती नदी में उफान की तरह , बारिश में आए तूफान की तरह ।
भीगी हुई लकड़ी की तरह , फटी हुई ककड़ी की तरह ।
टूटे हुए मीनार की तरह , पत्थर में आई दरार की तरह ।
ग्रहण लगते सूरज की तरह , पानी में डूबे नीरज की तरह ।
घाव पर लगे नमक की तरह , आसमानी बिजली की चमक की तरह ।
रेत में धंसे पांव की तरह । सुनसान हुए गांव की तरह ।
मयूर के टूटे पंख की तरह , कभी न बजने वाले शंख की तरह ।
बिना रंगों की रंगोली की तरह , फीके पानी की होली की तरह ।
पानी में पड़े गत्ते की तरह , फटे ताश के पत्ते की तरह ।
भंवर बनाती हुई झील की तरह , निशाना साधती हुई चील की तरह ।
जाल बनाती हुई रस्सी की तरह , बिना मक्खन के लस्सी की तरह ।
कान में घुसे जल की तरह , बिना छिलके के फल की तरह ।
लहराते हुए सागर की तरह , छलकते हुए गागर की तरह ।
हाथ से निकले तीर की तरह , टेडी़ -मेडी़ लकीर की तरह ।
जल में रहने वाली मछली को कभी-कभी मगरमच्छ का सामना करना पड़ता है । उसी प्रकार जब व्यक्ति घर के आंगन से बाहर निकलता है , उसे भी जमाने की निगाहों का सामना करना पड़ता है । इस दुनिया में वे लोग भी रहते हैं , जिनके पास व्यंग्य- रुपी हथियार हैं । इन हथियारों के प्रभाव से व्यक्ति की आत्मा बंजर हो जाती है , जो मरते दम तक हृदय को तड़पाती रहती है ।
वह तीखी बात ,जो हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए, उसे ताना या व्यंग्य कहते हैं ।जब कोई व्यक्ति किसी को ताना देता है, यह दो अक्षरों वाला शब्द उसके दो जहान को हिलाकर रख देता है ।यह कड़वा सच है, इसका सामना सभी को करना पड़ता है ।
दौड़ते हुए रथ का एक पहिया निकलकर अलग हो जाए ,वह रथ वहीं पर चक्कर काटकर रुक जाएगा । इसी प्रकार जब व्यक्ति के मन में कोई बात चुभ जाती है ,उसकी स्थिति भी रथ के निकले पहिये के समान होती हैं । उसके मन में सोच -विचार बार-बार चक्कर लगाते रहते हैं। जैसे हवा सूखे पत्तों को अपने साथ उड़ाकर ले जाती है ,वैसे ही विचार मन को कहीं और ले जाते हैं ।
नदी के बहते हुए पानी की सतह पर, अगर हम रंग करना चाहे ,हमारा प्रयास विफल हो जाएगा, क्योंकि बहते पानी में रंग घुलकर आगे चला जाता है ।इसी प्रकार मन को समझाने का कितना भी प्रयास करें , वह अतीत की यादों में खोया रहता है ।ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने आप पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है । कभी-कभी उसे अपने आप से भी नफरत होने लगती है ।
उड़ते हुए गुब्बारे से अचानक हवा निकल जाए, वह घूमता हुआ नीचे की ओर आता है । इसी प्रकार जब व्यक्ति का मनोबल टूटने लगता है, उसका हृदय भी बिना हवा के गुब्बारे के समान हो जाता है । ऐसे अवसर पर मन की स्थिति कुछ इस प्रकार होती है । जैसे : ----
बसंत में मुरझाए फूल की तरह, सावन में उड़ती धूल की तरह ।
आग से निकलते धुएं की तरह , बिना पानी के कुएं की तरह ।
जहर उगलते हुए सांप की तरह ,उबलते पानी में भाप की तरह ।
भीगे होठों में प्यास की तरह , जंगल में सूखी घास की तरह ।
शेर की डरावनी दहाड़ की तरह , सागर में बर्फीले पहाड़ की तरह ।
कटी हुई बेल की तरह , भूल भुलैया के खेल की तरह ।
पानी की सतह पर रंग की तरह , लोहे की धातु पर जंग की तरह ।
कोयले की उड़ती राख की तरह , सर्दी में फटी पोशाक की तरह ।
आंधी में भड़कती आग की तरह , बुझे हुए चिराग की तरह ।
मिट्टी की सूखी पपड़ी की तरह , जाल में उलझी मकड़ी की तरह ।
कलम से बहती स्याही की तरह , जंग में लड़ते सिपाही की तरह ।
खाल में चुभती सुई की तरह , जलती हुई रुई की तरह ।
भोजन में मिले बाल की तरह , पेड़ पर लटके छाल की तरह ।
बहती नदी में उफान की तरह , बारिश में आए तूफान की तरह ।
भीगी हुई लकड़ी की तरह , फटी हुई ककड़ी की तरह ।
टूटे हुए मीनार की तरह , पत्थर में आई दरार की तरह ।
ग्रहण लगते सूरज की तरह , पानी में डूबे नीरज की तरह ।
घाव पर लगे नमक की तरह , आसमानी बिजली की चमक की तरह ।
रेत में धंसे पांव की तरह । सुनसान हुए गांव की तरह ।
मयूर के टूटे पंख की तरह , कभी न बजने वाले शंख की तरह ।
बिना रंगों की रंगोली की तरह , फीके पानी की होली की तरह ।
पानी में पड़े गत्ते की तरह , फटे ताश के पत्ते की तरह ।
भंवर बनाती हुई झील की तरह , निशाना साधती हुई चील की तरह ।
जाल बनाती हुई रस्सी की तरह , बिना मक्खन के लस्सी की तरह ।
कान में घुसे जल की तरह , बिना छिलके के फल की तरह ।
लहराते हुए सागर की तरह , छलकते हुए गागर की तरह ।
हाथ से निकले तीर की तरह , टेडी़ -मेडी़ लकीर की तरह ।
जल में रहने वाली मछली को कभी-कभी मगरमच्छ का सामना करना पड़ता है । उसी प्रकार जब व्यक्ति घर के आंगन से बाहर निकलता है , उसे भी जमाने की निगाहों का सामना करना पड़ता है । इस दुनिया में वे लोग भी रहते हैं , जिनके पास व्यंग्य- रुपी हथियार हैं । इन हथियारों के प्रभाव से व्यक्ति की आत्मा बंजर हो जाती है , जो मरते दम तक हृदय को तड़पाती रहती है ।
-०-
बलजीत सिंह
-०-
No comments:
Post a Comment