नया साल
(कविता)
नए साल का नया सूर्य यूं किरणें नहीं बिखेरे ।गम के अंधियारें मिट जाएं खुशियां डालें ड़ेरे ।।
सुख सागर में जीवन नौका बढ़े निरंतर आगे ।
गुल्शन गुल्शन फूल खिले गुल रहे न कोई अभागे।।
समृद्धि की अमर बेल फिर जीवन पे छा जाए ।
फिर अभाव की असि न कोई जख्म कभी दे पाए।।
******
नूतन स्वर सुख के फूटे कानों में अमृत घोले ।
जीवन कानन में अवसर के मोर पपीहे बोले ।।
प्यार मिले सागर से गहरा मीत मिले सुखदायी।
दूर रहे तन मन से दर्दों की काली परछाई ।।
इतनी मिले संपदा निशदिन घर छोटा पड़ जाए।
पाँव उठाने से पहले मंजिल चलकर खुद आए ।।
*******
नवगति नवलय अवचेतन मन को कर दें स्पंदित ।
मन वीणा की मधुर रागिनी तन कर दे आल्हादित।।
आराधन करते करते आराध्य बने आराधक ।
फर्क मिटे दोनों में दाता कौन ,कौन हैं याचक ।।
पीकर अमर प्रेम की हाला देह अमर हो जाए ।
जीवन मरण चक्र से जीवन ऊपर हो मुस्काए ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नूतन स्वर सुख के फूटे कानों में अमृत घोले ।
जीवन कानन में अवसर के मोर पपीहे बोले ।।
प्यार मिले सागर से गहरा मीत मिले सुखदायी।
दूर रहे तन मन से दर्दों की काली परछाई ।।
इतनी मिले संपदा निशदिन घर छोटा पड़ जाए।
पाँव उठाने से पहले मंजिल चलकर खुद आए ।।
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नवगति नवलय अवचेतन मन को कर दें स्पंदित ।
मन वीणा की मधुर रागिनी तन कर दे आल्हादित।।
आराधन करते करते आराध्य बने आराधक ।
फर्क मिटे दोनों में दाता कौन ,कौन हैं याचक ।।
पीकर अमर प्रेम की हाला देह अमर हो जाए ।
जीवन मरण चक्र से जीवन ऊपर हो मुस्काए ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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