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Wednesday, 1 January 2020

नया साल मुबारक हो (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)



नया साल मुबारक हो
(कविता)
हर पल, वक्त, दिन दर्शने वाले
साल दर साल हमें दिखा देते ,
संसार सफर के वर्षों कितने
लोगों के साथ ही गुजर गए ।

दीवार पर लटकते रहे,
घड़ी के साथी भी होते
हर महीने में बदलते हुए,
वर्ष के अंत में धोखा देते।।

हर दिन उत्तम दिन होते,
दिन प्रति दिन, दिन खो जाते
साल के सबकुछ अंत हो जाते ही,
वो दीवार पर ना रहते ।।

एक, दो, तीन कहते, आते
तीस, इकत्तीस गिन, जाते
माह से माह हटा देते
मृत्यु दिसम्बर में होते ।।

और नये साल भी आते
पिछले वर्ष की तरह जाते
अनजाने में नये होते
हम भी बूढ़े हो जातें ।।

तृष्णा, ईर्षया आदि में
क्या है फल इस दुनिया में
दो हजार और बीस में भी,
हम हैं मित्र, दो देशों में ।।।

-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

***
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