ऊपर चढ़ पाया
(नववर्ष गीत)
ये वर्ष तो पूरा बीत चुका ,
कभी सोचा हमने क्या पाया ।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
नित घिरे रहे प्रपंचों में ,
इतना भी तनिक न ध्यान दिया ।।
अभिमुखित रहे पतन की ओर ,
फिरभी क्यों अभिमान किया ।।
हुआ मानवता का जब चीरहरण,
कोई हलधर अनुज न बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
धर्म जाति विद्वेष भाषा में,
पड़कर हम सब भूल गए ।।
हम भूल गए उस गौरव को ,
जिसकी खातिर वो झूल गए।।
क्यों सरफरोशी पाने को ,
कोई सुखदेव भगत ना बन पाया।।
जहाँ पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
हर तरफ है आतंक छाया हुआ,
हर तरफ है विशाद आया हुआ ।।
है कोई जो इसका प्रतिकार करें ,
है कोई जो इसका संहार करें ।।
सोने की लंका दहन को क्यों ,
कोई पवन पुत्र ना बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया ।।
विश्वास किया था सबने जिसपर,
क्यों उसने ये घात किया।।
इतने ऊंचे पद का बोलो ,
क्यों उसने अपमान किया।।
धन लोलुपता बढ़ने लगी जब ,
कोई धर्मराज ना बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
आओ एक दीप जलाएं हम ,
अंतर्मन से तम को हटाए हम।।
चहुँ ओर बसे खुशहाली और ,
कोई अनहोनी ना पाए हम ।।
क्या कुछ कष्टों के आने पर ,
कभी ध्रुव लक्ष्य से डिग पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
ये वर्ष तो पूरा बीत चुका ,
कभी सोचा हमने क्या पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया ।।-०-
पता:कभी सोचा हमने क्या पाया ।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
नित घिरे रहे प्रपंचों में ,
इतना भी तनिक न ध्यान दिया ।।
अभिमुखित रहे पतन की ओर ,
फिरभी क्यों अभिमान किया ।।
हुआ मानवता का जब चीरहरण,
कोई हलधर अनुज न बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
धर्म जाति विद्वेष भाषा में,
पड़कर हम सब भूल गए ।।
हम भूल गए उस गौरव को ,
जिसकी खातिर वो झूल गए।।
क्यों सरफरोशी पाने को ,
कोई सुखदेव भगत ना बन पाया।।
जहाँ पिछले वर्ष खड़े थे हम,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
हर तरफ है आतंक छाया हुआ,
हर तरफ है विशाद आया हुआ ।।
है कोई जो इसका प्रतिकार करें ,
है कोई जो इसका संहार करें ।।
सोने की लंका दहन को क्यों ,
कोई पवन पुत्र ना बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया ।।
विश्वास किया था सबने जिसपर,
क्यों उसने ये घात किया।।
इतने ऊंचे पद का बोलो ,
क्यों उसने अपमान किया।।
धन लोलुपता बढ़ने लगी जब ,
कोई धर्मराज ना बन पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
आओ एक दीप जलाएं हम ,
अंतर्मन से तम को हटाए हम।।
चहुँ ओर बसे खुशहाली और ,
कोई अनहोनी ना पाए हम ।।
क्या कुछ कष्टों के आने पर ,
कभी ध्रुव लक्ष्य से डिग पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया।।
ये वर्ष तो पूरा बीत चुका ,
कभी सोचा हमने क्या पाया ।।
जहां पिछले वर्ष खड़े थे हम ,
एक पग भी ऊपर चढ़ पाया ।।-०-
राजीव कपिल
हरिद्वार (उत्तराखंड)
-०-
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