माँ तुम ही हो मीत
(कविता)
सिकुड़ गया है गात ठंड से ,चुभे शूल सा शीत ।
सूने सूने वन उपवन सब ,मौन हृदय के गीत ।
रंग धूप का धुआं हुआ है ,गहन हुआ अँधियार ।
सन्नाटा लिपटा तरुवर से ,बर्फ बनी जलधार ।
सुबह खोजती है सूरज को , लगा धूप से आस ।
ओझिल आकृतियां है सारी ,कौन बुलाये पास ।
बीहड़ इस निर्जन जंगल में,मात दिखाए प्रीत ।
सिकुड़ गया है गात ठंड से ,चुभे शूल सा शीत ।।
अपनी साँसों की गर्मी से ,शीत करे माँ दूर ।
ममता के आँचल में छुपकर ,सुख मिलता भरपूर ।
है ममत्व में मात बिचारी ,मौन नैन के बैन ।
कभी धूप के देव जगेंगे ,तब आये कुछ चैन
कठिन हुआ है जीवन जबसे ,बिछड़ गया मनमीत ।
सिकुड़ गया है गात ठंड से ,चुभे शूल सा शीत ।।
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