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Saturday, 25 April 2020

नफ़रत (कविता) - अमित डोगर

नफ़रत

(कविता)
नफरत ने जीना
सिखा दिया,
नफरत ने जिंदगी पथ पर
चलना सिखा दिया,
नफरत ने सही गलत का
अंतर करना सिखा दिया,
नफरत ने स्वय से प्यार
करना सिखा दिया,
नफरत ने मंजिल को
पाने के लिए
आगे बढ़ना सिखा दिया,
नफरत ने रिश्तो को
निभाना सिखा दिया,
नफरत ने दिव्या ज्ञान को
ग्रहण करना सिखा दिया,
नफरत ने ईश्वर के होने का
एहसास सिखा दिया।
-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

***
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तुम देखोगे लक्ष्य भी पास में है (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


तुम देखोगे लक्ष्य भी पास में है 
(कविता)
जब विचलित हो मन चिंतित भी हो।
जब अनजाने डर से शंकित भी हो।

उस समय आप निर्भीक बनो।
अपने डर से आप स्वयं लड़ो।

एक पल मे ही डर गायब होगा।
चिंतित मन भी फिर खुश होगा।

खुशहाली होगी फिर गांवों में।
हर पिपल बरगद की छांवों में।

ना किसी का तुम उपहास करो।
ना किसी का तुम उपहास बनो।

जो भी करना हैं काम करो।
जग में तुम अपना नाम करो।

तुम बदनामी से डरो सदा।
पथ पर अपने अड़ो सदा।

फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में हैं।
तुम देखोगो लक्ष्य भी पास में हैं।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



***
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कैसा आया नया जमाना (कविता) - रीना गोयल

कैसा आया नया जमाना
(कविता)
माँ की ममता लगे भुलाने ,कैसा आया नया ज़माना ।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।।१।।

बहु ब्याह मैं चाव से लाई,सीख गृहस्थी की सिखलाई ।
शायद कोई कमी रह गयी ,मैं ही उनको कभी न भाई ।
दबी ज़ुबाँ वो पति से कहती ,इनको आता नही निभाना ।।२।।

मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
हाथ पिया ने भी छिटकाया ,चले गए क्यूं तन्हा करके ।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे ,वादे धुआँ -धुआँ सब करके ।
बहुत विवश लेकिन जिन्दा हूँ ,जीने का क्या करूँ बहाना ।।३।।

मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
विनती की दी लाख दुहाई ,दया ज़रा तो मुझ पर खाओ ।
इक कोने में पड़ी रहूंगी ,पकी उम्र में मत ठुकराओ ।
लेकिन बंद किये दर मुझ पर ,मुझको समझा है बेगाना ।।४।।

मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
किस्मत के हैं खेल अनोखे ,आज छिने हैं सभी सहारे ।
उन अपनों ने दिल को तोड़ा ,जिनको कहती आँख के तारे ।
मात-पिता अब लगते गाली ,बदल गया वो दौर पुराना ।।५।।

मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
बीच राह लाचार खड़ी हूँ ,तुम ही सुनलो आन कन्हाई ।
बिदा किया बेटों ने घर से ,दुनियाँ से तुम करो बिदाई ।
अर्ज यही बस तुमसे मेरी ,दर-दर मुझको मत भटकाना ।।६।।

मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

***
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Thursday, 23 April 2020

आग लगाकर चले गए (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

आग लगाकर चले गए
(कविता)
आए थे कुछ लोग, साँस के,
निर्वासन की, बस्ती में,
रुके नहीं संबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

छोटा सा वह शहर,
शांत था, गुमसुम था,
श्वेत वस्त्र से ढँका,
प्राण का कुमकुम था,
आग और कुछ धुआँ, हवा थी,
अभिनंदन की, हस्ती में,
रुके नही आबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

आँसू का अर्णोद,
आँख में सावन था,
ममता का उत्कंठ,
अमत्सर पावन था,
रीति कपाल-क्रिया की, चुप थी,
कर्म-धर्म की, दस्ती में,
रुके नही अनुबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.

यादों की वह, योग-
युक्ति, अभिलाषा थी,
जीवन की हर सूक्ति,
मुक्ति परिभाषा थी,
देह छोड़कर गई आत्मा,
अंग-अंग हैं, पस्ती में,
रुके नहीं पदबंध, अरे हाँ !
आग लगाकर चले गए.-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


***
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सत्यमेव जयते (कहानी ) - रेशमा त्रिपाठी

सत्यमेव जयते
(कहानी)
“एक राजनेता जिसकी छवि पूरे समाज में एक आदर्श व्यक्ति के रूप में थी । वहीं एक आम कार्यकर्ता जो यथार्थ में आदर्श जीवन जीता था और उस राजनेता को भगवान की तरह मानता था । एक घटना ने परछाई और धूल में अन्दर बता दिया ...! एक दिन राजनेता की सेक्रेंटरी से उस आम आदमी को उससे प्यार हो जाता हैं कुछ दिनों बाद दोनों शादी कर लेते हैं सब कुछ ठीक रहता हैं। एक दिन एक प्रोजेक्ट के कारण कुछ गाॅ॑वों को खाली करवाना होता हैं वह आम कार्यकर्ता आसानी से यह कार्य करवा सकता था इसलिए राजनेता ने उसकी पत्नी से कहकर गाॅ॑व को खाली करवाने के लिए राजी करवा लिया किन्तु गाॅ॑व के लोग जब अपना– अपना सामान लेकर गाड़ी में बैठ रहे थे तब कुछ लोगों की पोटली नीचे गिर गई और उसमें से नोटों की गड्डियां गिरने लगी उस आम आदमी ने इतना सारा पैंसा देख कर कहा कि तुम लोगों को यह सारे पैसे कहाॅ॑ से मिले तब लोगों ने बताया गाॅ॑व खाली करवाने के लिए उसे मिला हैं आम आदमी गांव वालों को तुरन्त गांव छोड़ने से रोक देता हैं और अपनी पत्नी के पास बात करने चला जाता हैं । दोनों में बहस होने लगती हैं कि यह सब क्यों किया झूठ क्यों बोली वह। इतने में राजनेता वहां आ जाता हैं और वह कहता हैं ये झूठा हस्ताक्षर उसने स्वयं करवाया हैं गांव वालों को पैसें उसने भेजवाया । इससे उसको लाभ होगा सरकार से बहुत पैसे मिलेंगे इस प्रोजेक्ट पर । तुम दोनों आम आदमी के चक्कर में मत पड़ो और मेरा विरोध जो करेगा वह जान से मारा जाएगा उस दिन सेक्रेटरी और आम आदमी दोनों समझ गए यह भगवान के रूप में शैंतान हैं इसलिए राजनेता का सपोर्ट किया सेकेंटरी ने और आम आदमी बहुत देर तक हाथापाई करता रहा और जानबूझकर अंत में जब हार गया तो पत्नी के हाथों से गोली चलवा मर गया । सेक्रेंटरी जेल चली गई और राजनेता भगवान बन जनता को लूटता रहा । किन्तु अन्य ऑफिसर को शक हुआ कि आखिर क्यों ?और कैसे ?कोई राजनेता इतना पाक साफ हो सकता हैं तब तक कुछ दिनों में सीबीआई जांच बैठ गई और उस सेक्रेटरी को तारगेट किया गया सेक्रेटरी ने भी कहानी बना कर परोस दिया । कहानी थी प्रेतआत्मा के रूप में क्योंकि उसे जहां रखा गया था वह कोई पुरानी हवेली थी । वह कहानी बनाने में पूर्णतः सफल रही उसे लोगों ने मेंटल हॉस्पिटल भेज दिया यह समझ कर कि शायद वह डिप्रेशन में पागल हो गई हैं । राजनेता सोच रहा था उसको बचाने के लिए सेकेट्ररीं ने यह सब कुछ किया जानबूझकर किन्तु ..
अब तक तीन महीने बीत गए थे और अंतिम समय था पति के मौत का इल्जाम कोर्ट में अंतिम समय में चल रहा था राजनेता भी सीबीआई जांच से बाहर ही लगभग निकल चुका था । जो महिला ऑफिसर जांच कर रही थी वह भी निराश हो गई थी । एक दिन अपने बच्चें के साथ पार्क में दौड़ रही थी बच्चें ने एक कहानी सुनाई कहानी खत्म हुई ही थी कि ऑफिसर का तब तक फोन आ गया उसने ध्यान नहीं दिया जब बात खत्म हुई तो उसने अपने चारों ओर देखा वही कहानी सुनाई थी बच्चें ने जो उस पार्क में चीजें थी उन्हीं को जोड़कर ऑफिसर ने अपने बच्चें से कहा बेटा तुमने मुझे बेवकूफ बनाया यह सब यहीं से देखकर तुमने कहानी बनायी बेटा बोला–‘ मां सब कुछ तो आपके सामने ही था अब आपको नहीं दिखाई दिया तो मैं क्या करूं।' यह बात ऑफिसर को सोच में डाल देती हैं वह उस स्थान पर गई जहां पर उसने सेक्रेटरी को पूछताछ के लिए रखा था और उन सभी कड़ियों को जोड़ने लगी अब उसे समझ में आया कि सेक्रेंटरी झूठ नहीं बोल रही थी बल्कि कहानी बनाकर सच बता रही थी लेकिन अब तक समय हो चला था और सेक्रेंटरी ने अपना पूरा ताना-बाना बुन लिया था राजनेता इतने में हस्ताक्षर लेने के लिए प्रोजेक्ट के पैसे का सेक्रेंटरी के पास गया जो कि उसने जान बूझ कर सेक्रेंटरी के नाम पर किया था वह मेंटल हॉस्पिटल में थी इसलिए वह सेक्रेंटरी से अकेले ही मिलने गया दोनों में काफी देर बातचीत हुई और बहस हुई तब सेक्रेटरी ने कहा राजनेता जी– मैंने शैतान को हरा दिया उसकी चाल में अब सुनों मैंने ही अपने गुप्तचर के सहयोग से तुम्हारी सीबीआई जांच बैठवाई, मैंने ही कहानी बनाकर तुम्हारी चोरी/ मारपीट इत्यादि कारनामों का वीडियों बनवाया। आज तुम्हारे सभी आदमी पकड़े जायेंगें मैंने वीडियो क्लिप सीबीआई को भेजवा दिया हैं आज तुम भी मारे जाओंगें और मैं आजाद हो जाऊंगी और तुम्हारे प्रोजेक्ट का पैसा जो मेरे पति के नाम पर तुमने आम लोगों से लूटा हैं ,सरकार से जो लिया हैं वह सब मेरा होगा अब ।राजनेता इतना सब सुनकर तिलमिला उठा और उसने रिवाल्वर निकाली तभी सेक्रेंटरी ने अपने हाथों पर गोली चलवा लिया । गोली कि आवाज सुन पुलिस वाले अन्दर आ जाते हैं क्योंकि सेक्रेटरी लोगों की नजरों में मेंटल हैं इसलिए राजनेता के हाथ में रिवाल्वर देख पुलिस राजनेता पर गोली चला देती हैं एक बार फिर राजनेता ने कोशिश की, कि वह सेक्रेंटरी पर गोली चलाएं उससे पहले ही पुलिस वालों ने गोली मार दिया और राजनेता की मौत हो जाती हैं सेक्रेंटरी धीरे से मुस्कुरा देती हैं सीबीआई को भी अब तक पता चल जाता हैं कि राजनेता ने बड़े-बड़े घपलें कर लोगों को बेवकूफ बनाया हैं और यह भी कि मर्डर सेक्रेंटरी ने नहीं बल्कि उसने जबरन करवाया था । वह आजाद हो गई तब उसने बताया कि अब तक जेल में पहुंचने के बाद जो कुछ भी उसने किया वह सब अपने बचाव में और राजनेता के गुनाहों को उजागर करने के लिए किया । क्योंकि वह लोगों की नजरों में देवता था मेरे लिए भी भगवान हुआ करता था सच जानने से पहले। अब वह अपने पति की तरह वह आम आदमी की सेवा कर भारतीय आदर्श जीवन जीना शुरु कर दिया। उसका पद भी उसे वापस मिल गया । सेक्रेंटरी तो वह राजनेता की थीं किन्तु थी तो आईएएस ऑफिसर जिसने सत्यमेंव जयते शब्द को जिया । किन्तु बोली नहीं । इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि अपने बच्चों को शिक्षित करें साक्षर नहीं क्योंकि बन्दूक की नोंक पर ही शुरू होती हैं राजनीति और जहां राजनीति हो वहां कोई भगवान नहीं हो सकता । किसी ने कहा हैं–‘ बन्दूक की गोली से ज्यादा ताकत कलम की होती हैं ।।'
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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जीवन घर तक (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


जीवन घर तक
(ग़ज़ल)
जीवन घर तक, पर सुखकर है ।
कितना प्यारा लगता दर है ।

अब विराम में भी गति लगती,
हर्ष भरा यह आज सफ़र है ।

जीवन लगता एक ग़ज़ल-सा,
खुशियों से लबरेज बहर है ।

शांत रहो,खामोश रहो सब,
अंधकार के बाद सहर है ।

ऊंचा उड़ना नहीं रुकेगा,
कायम मेरा हर इक पर है ।

वीराना भाता है अब तो,
मीठा लगता हर इक सुर है।

रहे बात यह अंतरमन में,
कभी न ठहरा सदा क़हर है ।

'शरद' अभी भी रौनक सारी,
कल मेरा अब से बेहतर है ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

***
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Tuesday, 21 April 2020

आनंद मंगल (कविता ) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


आनंद मंगल
      (कविता )
हे मानव मत कर गरूर !
ज़िन्दगी है क्षण-भंगुर !!
बन सहज व्यवहार कर !
मानवता का मुकुट धर !!
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

ईर्ष्या-द्वेष का त्याग कर,
प्रेम-भाव आत्मसात कर ।
ऊँच-नीच का भेद-भाव छोड़ ,
अहंकार का नाता तोड ।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

दान-पुण्य की गंगा बहा दे ,
सबसे अपनत्व का नाता जोड़ दे ।
दीन-दुखियों की आह सुन ले ।
सत्कर्म का पूण्य बुन ले।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।

छोटे- बड़ों का आदर कर ,
वाणी-विवेक से सादर कर ।
काल-चक्र का सम्मान कर ,
सृष्टि नियंता का अभिवादन कर ।।
वरना पछतावा होगा अंत समय,
बना ले जीवन आनंद-मंगल ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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घंटी ने प्यास बुझाई (लघुकथा) - अर्विना



घंटी ने प्यास बुझाई 
(लघुकथा)
सुबह के समय संन्नाटा इतना गहरा था केवल चिड़ियों ‌‌‌‌का कलरव सुनाई दे रहा था । लेकिन घर की खिड़की पर खड़ी सोच रही थी कि चिड़ियों कि मधुर आवाज भी अब मन को शांत नहीं कर पा रही है । पंद्रह दिन से खिड़कियों से झांकते मासूम चेहरे अब शोर नहीं कर रहे ना ही खाने की फरमाइश । संन्नाटे को चीरती घर में न्यूज की आवाज दिल को रह रह कर दहला जाती है । इधर घर में बूँद पानी नहीं बाहर वायरस का खतरा अभी टला नहीं है।बाहर निकल नहीं सकते ।
प्यास से व्याकुल बच्चों के चेहरे लटक चुके थे ।
कल्पना ! पानी तो बिल्कुल खत्म हो गया अब क्या करें ‌?
जीजी ! जान बचानी हैं तो घर में ही रहो लेकिन कल्पना दूध के बगैर तो बन जायेगी लेकिन पानी के बगैर कैसे......... पानी वाला भी तो नहीं आ रहा पानी के सारे बर्तन खाली हो गये है । 
नल से तो खारी पानी आता है क्या पीये ? 
आस पास के मकानों में कोरोना वायरस के चलते सब लोग अपने गांव चले गए हैं ? 
जीजी घर के पीछे सड़क के किनारे एक झोपड़ी बनी उसके साथ एक छोटा सा खेत है मुझे लगता है वाहां पीनें का पानी मिल सकता है 
चल छत पर चलते हैं यह घंटी ले चलते है बजाने के लिए , कल्पना सुमन जीजी के साथ ऊपर आ गई देखा झोपड़ी के नजदीक एक आदमी बैठा है । कल्पना ने जोर जोर से पीतल की घंटी को बजाना शुरू कर दिया एक कैन को रस्सी की सहायता से छत से नीचे लटका दिया । आदमी ने घंटी की आवाज़ की दिशा में देखा तो कैन को लटका देख समझने में देर नहीं कि और थोड़ा नजदीक पहुंच गया । आदमी को आता देख कल्पना ने पूछा पीने का पानी मिल सकता है । हमारे पास पानी नहीं है आदमी ने सुना तो कुएं की बोरिंग से एक बाल्टी पानी ले आया कल्पना ने एक केन लटका दी थी उसमें आदमी ने पानी भर दिया ।
बहन जी जब जरुरत हो केन लटका कर इसी घंटी को बजा देना इस से वातावरण भी शुद्ध होगा और मैं आवाज सुनकर पानी भर दुंगा ‌। ईश्वर करे यह आपदा की घड़ी जल्द समाप्त हो जाये। वर्ना स्थति भयावह हो सकती है।
-०-
पता:
अर्विना
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
-०-

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Monday, 20 April 2020

साहस (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

साहस
(कविता) 
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा,
अपने संयम, सहनशक्ति को आजमाना होगा।

देश बन गया है असाध्य बीमारी का घर,
स्वयं पर अंकुश लगाकर देश बचाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

देश के हालात बद से बदतर हो रहे हैं,
हम सबको मिलकर अपना फ़र्ज निभाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

इस संकट में हिम्मत से काम लेने का प्रण करें,
अपनी सूझ-बूझ का परचम लहराना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

वीरभूमि है भारत, देशभक्ति से ओतप्रोत है,
अपने भक्ति भाव का साक्ष्य दिखाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

अगर इस जहान में कहीं भी ईश्वर है साथियों,
मानव रूप में उसे धरती पर लाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

-०-






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मौत से लड़ना क्या (कविता) - रूपेश कुमार

मौत से लड़ना क्या
(कविता)
मौत से लड़ना क्या ,
मौत तो एक बहाना है,
जिन्दगी के पन्नों में,
कब क्या हो जाए,
ये न तो मै जानता न तुम,

उल्फत न मिलती ,
जिवन के रुसवाईयो मे,
हर जहा हमे पता होता ,
जिवन के रह्नुमाईयो मे,
मौत से मुड़ना क्या,

आरजू , गुस्त्जू से ,
अनुभूतियाँ नही होती ,
हर रास्तों मे हमे,
कोई खूबियाँ नही मिलती,
क्या जाने कब मौत आ जाए ,

जिन्दगी की डगर पे ,
धूप की छाँव मे,
वर्षा की राहों मे,
मुद्ते बदल देती है,
मौत तो एक आकांक्षा है ,

मौत से लड़ना,
मौत तो एक बहाना है ,
जिवन की राहो मे,
यमदूत से डरना क्या,
दोस्त बना लेना है!
-०-
पता:
रूपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार
-०-


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आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग २ ) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

आखिर वह कौन थी?

(यात्रा वृत्तांत - भाग २ )
क्रमशः २० मार्च २०२० से आगे ...
मैं जैसे तैसे नीचे उतर रहा था, रास्ते की कठिनाइयाँ बढ़ती जा रही थी, रास्ते कीचड़ तथा फिसलन भरे थे, 
रास्ते में इक्के दुकाने फंसे बदनसीब यात्री ही दिखाई दे रहे थे, उस फिसलन युक्त रास्तों पर मैं कइकइ बार फिसला गिरा, लेकिन चोट कभी नही लगी, ऐसा लगता जैसे कोई अदृश्य ताकत मुझे संभाल रही हो, यह तो अवश्य माँ की ही कृपा रही होगी। जिसने मुझे बार बार संरक्षण दिया, लेकिन उसी समय घटित एक घटना ने मेरे मन को झकझोर दिया। 
बार बार कीचड़ में फिसलने से मैंने अपने पांवों के जूते उतार फेंके थे नंगे पांव ही नीचे बढ़ चला था, उबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्ते, तथा बर्फीले बारिस से भीगनें से मेरे पांवों के घुटने कमर तथा पंजों में सूजन जकड़न हो गई थी रास्ता चला नही जा रहा था। फिर भी जै माता दी नाम के सहारे विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते अपनी मंजिल तय करता जा रहा था। कि अचानक से मैंने जो दृश्य देखा उसने मुझे भीतर तक हिला दिया, 
शायद ये विपरीत परिस्थि में मां द्वारा मेरे हृदय की परीक्षा थी, 
मैंने देखा कि जंहा मैं खड़ा था, वहा से लगभग बीस पच्चीस सीढियाँ उपर आठ से दश वर्षीय बालक जोर जोर से रो रहा था, उसकी करूण आवाज ने मेरे पैरों को थाम लिया था, और मैं पीछे लौटने पर मजबूर था मैं अपने दिल की आवाज की अनसुनी नही कर पाया, और वापस चल कर बच्चे के पास जा पहुचा था, मैंने देखा बच्चा भीगे होने के कारण ठंढ से थर थर कांप रहा था, हवा के तीव्र वेग एवम् सरसराहट से भयभीत हो रो रहा था। उन विपरीत परिस्थितियों में ही मैं समझ पाया था कि एक माँ और बाप के दिल में अपनी औलादों के प्रति कितना गहराप्रेम छुपा होता है, उसके माँ बाप अपना भींगा कम्बल तथा शाल निचोड़ कर उसे ही बच्चे को ओढ़ा कर उसकी प्राण रक्षा का प्रयास कर रहे थे, जब कि वे खुद ही ठंढ जाड़े थरथरा रहे थे। 
मैंने उनके नजदीक पहुँच उनसे बच्चे के रोने का कारण जानना चाहा तथा उनकी मदद की पेशकश की तो उन्होंने विनम्रता पूर्वक इन्कार कर दिया, तथा बतायाकि अंकल जी यह बच्चा, हवा के वेग से डर कर रो रहा है, आप जाइये आप तो खुद ही परेशान है, माँ की कृपा रही तो इसे कुछ भी नही होगा, 
उस विपरीत परिस्थितियों में भी माँ के प्रति एसी अगाध श्रद्धा देख मेरा मन करूणा से भर आया। आंखें छलक उठी, मैंने मन ही मन उनके जोश जज्बे विश्वास एवम् भरोसे को सिर झुका कर नमन किया, और चल पड़ा बोझिल कदमों से नीचे की ओर, ईस घटना के द्वारा संभवतः माँ ने मेरे हृदय के मानवीय संवेदना की गहराई की परीक्षा ली होगी।
-०-
क्रमशः ........... २० मई २०२० (आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग ३ )
 -०-
पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

-०-

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Sunday, 19 April 2020

★ सब कुछ ठीक हो जाएगा★ (कविता) - अमन न्याती

★ सब कुछ ठीक हो जाएगा★
(कविता)
चार दिवारी घर की तुम्हारी,
हाथो पर थोड़ा साबुन और पानी,
मुँह पर कपड़े की रखवाली,
वरदान ज़िंदगी का दे जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
अकेलेपन को गले लगा लेना,
अपनों से दूरी बना लेना,
हाथ मिलाना नही किसी से,
बस खुद को गले लगा लेना,
फिर तुम्हे ना वो छू पाएगा ,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
कुछ समय की बात है बस,
सफर दुनिया का टाल देना,
फिर भी जरूरी लगता है कुछ,
अपने अंदर ही झांक लेना,
रास्ता मंजिल का मिल ही जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
इम्तिहाँ है ये हम इंसानो की,
इंसानियत थोड़ी दिखा देना,
पका रहे हो पकवान घरो में,
दो रोटी ज्यादा पका लेना,
गर लगा रहा कोई गुहार मदद की,
दुआए उसकी पा लेना,
इतना भी ना कर सको तो ,
कर्तव्य इतना निभा देना,
ढाल बन कर बचा रहे जो,
दिल पर रखकर हाथो को अपने,
बस बात उनकी मान लेना,
फीकी पड़ी ये दुनिया में रंग फिर से भर जाएगा,
तुम निश्चिंत रहो, तुम सतर्क रहो,
सब कुछ ठीक हो जाएगा।।
-०-
पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

-०-

***
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प्रकृति और नव वर्ष (कविता) - अनामिका रोहिल्ला

प्रकृति और नव वर्ष
(कविता)
प्रकृति का दोहन
ना करें,इंसान
वरना भुगतने
पड़ेंगे भयानक परिणाम

प्रकृति जब संतुलन
बनाती है,
तो कोरोना वायरस
रूपी कोहराम
मचाती है।

यह असंतुलन
इंसानों पर
पहले भी ,पड़ा था
जब प्रकृति ने
बुलबुल चक्रवात,
अमेजन की भीषण आग,
केदारनाथ में बादल फटना,
ग्रेटा थन बर्ग का यूएनओ में रुदन
संकेत दिए बारी-बारी
अब तो सुधर जा मनुज
अब है,
तेरी बारी

आओ इस
नव वर्ष पर
संकल्प करें,
कि प्रकृति के प्रति,
कृतज्ञता का भाव धरे
उसे सवार कर
उसका नित,
आभार प्रकट करें।
-०-
पता:
अनामिका रोहिल्ला
दिल्ली 
-०-

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मानवता (कविता) - श्रीमती राखी सिंह


मानवता

(कविता)
माँ का मानव पुतला, अब बदल गया तो,
देख मानवता ने भी चोला,अपना बदल लिया l
आज दिखे सभी लगे है, खुदगर्जी में तो
लगे है सबने जग से नाता, जैसे तोड़ लिया ll

बीवी बच्चों में उसका परिवार बना,
मातपिता को बोझा समझ लिया l
लाल बाल का पोषण है प्रधान बना ,
जनक बना कंगाली का आटा गिला ll

नासमझी में जिम्मेदारी ना वो समझा,
मर्यादा संस्कार मानवता को वो जैसे भूल गया l
दोनों को वृद्धाश्रम लेज़ा कर पहुंचाया,
बचपन कर प्यार जैसे वह भूल गया ll

नाता,रिस्ता, सम्म्मान व अपनापन, 
दिल से न जाने कहाँ छूमंतर सा दिखा l
विकशनशील बन रहा जहाँ आज पर,
मानवता धूमिल तार तार होता दिखा ll

आज समाज में समर्पण,आदर अनुशासन विहीन दिखे नाता
व्यस्त, तनाव में दिखते पर खुश होने का है चोला पहने
कहने को रिश्ते है पर पैसे मतलब का है नाता
नाजाने दिखावट का मुखड़ा आज की पीढ़ी है क्यों पहने
-०-
पता:
श्रीमती राखी सिंह
मुंबई (महाराष्ट्र)


-०-

***
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Saturday, 18 April 2020

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका (कविता) - दीपिका कटरे

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका
(कविता)
काश ! अगर मैं
तेरे इंसानियत के पीछे छिपेे,
हैवान को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं आज तेरी हैवानियत का
शिकार न हो पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिल में छिपी हुई ,
दरिंदगी को पहचान पाती।
तो शायद,
मैं तुझ जैसे दरिंदे से ,
अपनी लाज को बचा पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिलों-दिमाग में चल रहे,
षड़्यंत्र को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं तेरे घिनोने षड़्यंत्र के खेल का
मुहरा न बन पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे चेहरे के पीछे,
छिपे नकाब को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं अपने चेहरे के नकाब को
बेनकाब न होने देती।

काश ! अगर मैं
तेरी असलियत को पहचान पाती।
तो यूँ ,अकेले में बैठकर आँखों से
अनगिनत आँसू न बहा रही होती।

काश ! अगर खुदा तुने,
देश की बहन - बेटियों की,
दर्द भरी रोने की, चिल्लाने की,
सिसकने की, आवाज सुनी होती।
तो शायद आज निर्भया,प्रियंका,
जैसी देश की बेटियाँ,
धरती माता को लिपटकर रोते हुए,
अपनी मृत्यु को न अपनाती।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

***
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आओ, ऐसे दीप जलाएँ (कविता) - अशोक 'आनन'


आओ, ऐसे दीप जलाएँ 
(कविता)
आओ , ऐसे दीप जलाएं -
पी जो जाएं उर का तम ।

माटी के दीयों के बदले -
उर में प्रेम के दीप जलाएं ।
तम को गले लगाकर हम -
आओ , दीप - पर्व मनाएं ।

दर पर उनके दीप जलाएं -
छाया हो जहां गहरा तम ।

सड़कों पर ही बुझ न जाएं -
टिमटिमाकर जीवन - दीप ।
पानी जैसे इस जीवन को -
अमूल्य बना दें बनकर सीप ।

अपनी रोटी उन्हें खिलाएं -
भूख़ से तोड़ रहे जो दम ।

कैद करके रखी जिन्होंने -
रोशनी अपने महलों में ।
कुचल रहे हैं जो पैरों से -
नाज़ुक कलियां चकलों में ।

तनिक तरस न उन पर खाएं -
बनें दरिंदे जो पीकर रम ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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