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Monday, 30 November 2020

मेरी चिंता छोड़ (लघुकथा) - डॉ. अलका पाण्डेय

 

मेरी चिंता छोड़
(लघुकथा)
राकेश बच्चा ज़रा ये एप्प डाऊन कैसे करते है ...बता दे ...
माँ में काम कर रहा हूँ थोड़ी देर में बताता हूँ । 
ठीक है बेटा अच्छा ये बता आजकल मोबाइल में बोल कर टाइप करते है वो कैसे करते है .
माँ बहुत आसान है जहां आप टाइप करती है वहीं माइक जैसा चिंन्ह है उसको दबाकर बोलोगी तो टाइप हो जायेगा ..
अरे यह तो बड़ा आसान है माँ बच्चों जैसे ख़ुश हो कर टाइप करने का मज़ा लेने लगी ..
कुछ देर में बेटा फ़ोटो को खुबसूरत बनाने वाला “एप “ कौन सा है ?
माँ पागल कर दोगी आप को भी बहुत शौक़ चराया है मोबाईल फ़ेस बुक का ...
कहाँ है काम कर रहा हूँ थोड़ी देर में बता दूँगा पहले भी बताया था पर आप बार बार पूछती रहती हो तंग आ गया हूँ आपके इन सारे चोचलो से ..
क्या करोगी यह सब सींख कर कभी “केंडीक्रस” गेम् खेलना सिखाओ कभी एप डाऊन लोड करो सारा दिन मोबाईल में लगी रहती हो , भगवान का भजन करा करो तुम भी शांत रहोगी व घर में भी शांती रहेगी ...
माँ दुखी हो कर बोली बेटा तुम्हें यह बोलना मैंने ही सिखाया है तुम छोटे थे एक ही सवाल दस दस बार करते थे मैं ख़ुश हो हो कर जवाब देती थी,कभी खीजीं नहीं न नाराज़ हुई ...
बेटा मैं वह सब नही करती तो आज तुम इतना कुछ नहीं कर पाते “
मेने चंद जानकारी क्या मागी तुम मुझे उल्टा सिधा बोलने लगे मत भूलो मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम मेरे बच्चे मेरा अंश ..,
माँ रोते हुये अपने कमरे बंद हो कर रोने लगी क्या पूछा जो यह इतना बोलने लगा ..अब तो मैं सब सिख कर ही रहूँगी ...
क्या समझता है अपने आप को गुगल बाबा की मददत ले लूँगी
और माँ गुगल में सर्च करने लगी
राकेश को अपनी गलती का एहसास हुआ वह माँ को आवाज़ देने लगा माँ आओ बताता हूँ .
माँ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो राकेश को लगा बात बिगड़ गई है माँ नाराज़ हो गई है ..
वह प्यार से माँ खोल न दरवाजा   
मैं अब बताता हूँ नाराज़ मत हो
मैंने बस यू ही कह दिया प्लीज़ माँ देख मैं रो दूँगा ।
माँ बहार आती है और कहती है
बेटा तेरा बेटा होगा जब इस तरह से वो तुम्हें जवाब देगा , तब तुम्हें समझ आयेगी ...
माँ बाप बच्चों से क्या चाहते एक छोटी सी मदद माँगने पर सुनना पड़े तो उन्हें अपनी ही परवरिश पर शंक होने लगता है की वो कहाँ ग़लत थे ,
ला बता क्या पूछ रही थी
कुछ नहीं मुझे पता चल गया है कैसे करना है..
जब तुझे बड़ा कर इतना बोलना सिखा सकती हूँ तो यह सब भी कर सकतीलहूं ..जा टेंशन मत ले अपना काम कर मेरी चिंता छोड़ ......
मै तेरा माँ हूँ और माँ ही रहूँगी तु मेरा बेटा है और रहेगा .. 
-०-
स्थाई पता
डॉ. अलका पाण्डेय
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
-०-

***
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कल फिर (कविता) - हेमराज सिंह

 

कल फिर
(कविता)
कल फिर 
खिलेगी धूप
झाँकती सी लगेगी दरो दीवारों से
प्राची से फूटता भिन्नसार,
       बढ़ेगा धीरे-धीरे
        धरा से मिलने।

कल फिर
चहकेगी चिड़ियाँ पहली ही किरण के साथ।
बाहर निकल नीड़ से
        आशा और विश्वास के पंख फैला
        उड़ने खुले गगन में।

कल फिर
खिलेगे कुसुम खोल कर 
गाँठे अपनी,
पूरब की और मुँह किये
         फैलाते सौरभ,
           महकेगी धरा फिर से।

कल फिर 
कलरव की मधुर ध्वनियां सुनाई पड़ेगी।
खगवृंद,हरते से लगेगे वेदना
         एक दूजे की,
        भूल कर पुरानी कटुता।
 

कल फिर 
झूकेगे वृक्ष फलों के बोझ से,
टहनियों तक लदे,
     बाँटने अपना मधु रस,
     हर पंथी को।
 

कल फिर
बहेगी सरिता कल कल निर्मल सी
अविराम,अविरल,
       बुझाने को पिपासा
       तोड़कर तटबंध ईर्ष्या के।

कल फिर
सजेगी चौपाल,
घर के बाहर के पीपल के नीचे
पूछने को हाल चाल पास पड़ोस का,
       उड़ाकर धुआँ कपट का
       चिलम भर।

कल फिर
लहलहायगी फसलें भावों की
अपनत्व की धूप पा
     भर कर प्रेम के क्षीर से।
      फिर से।

कल फिर
बढेगे हाथ उस ओर 
देने सहारा 
     लडखड़ाते पैरों को,
      हटाकर बैसाखियाँ बनावटी ।

कल फिर 
मिटेगा अँधेरा दिलों से
जलेगे दीये मिट्टी के
     हर घर की चौखट पर
      एक बार फिर से।
-०-
पता:
हेमराज सिंह
कोटा (राजस्थान)

-०-

***
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फायदे (लघुकथा) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

 

फायदे
(लघुकथा)
सार्वजनिक पार्क में योगराज 'अनुलोम-विलोम', 'कपाल-भाति',व 'सूर्य नमस्कार प्राणायाम' करके उठा ही  था कि उसके पास दस वर्षीय बालक आदित्य आया। नमस्कार करके उसने पूछा, "अंकल जी ! मैं आपके सामने वाली बेंच पर बैठा आपको प्राणायाम करते हुए देख रहा था। प्राणायाम  करने से क्या लाभ हैं तथा इनके करने की विधि क्या है? क्या आप मुझे ये प्राणायाम करना सिखा सकते हैं ?"
क्यों नहीं बेटे ? यदि तुम्हारी इच्छा है तो मैं तुम्हें अवश्य सिखाऊँगा,पर पहले तुमअपना नाम बताओ, कहाँ रहते हो ,किसके साथ पार्क में सैर करने के लिए आए हो ? ये तो बताओ ।"
"ठीक है अंकल जी' मेरा नाम आदित्य है। हमारा घर पास में ही है। मैं अपनी मम्मी के साथ पार्क में प्रति दिन सैर करने के लिए आता हूँ।वहाँ सामने देखो मम्मी बेंच पर बैठी हुई हमें बातें करते हुए देख रही है। मैं उनसे पूछ कर ही आपके पास आया हूँ।"
"बहुत अच्छा बेटे आदित्य ,तुम तो बड़े स्मार्ट ,होशियार और तेजस्वी हो। 'यथा नाम तथा गुण '। आदित्य का अर्थ सूर्य होता है। बेटे, प्राणायाम करने के बहुत फ़ायदे हैं।शरीर स्वस्थ,
ऊर्जावान,स्फूर्तिवान ,लचीला,और बलवान होता है।मनोबल बढ़ता है,बुद्धि तेज होती है,मन में साहस का संचार होता है और आत्मोन्नति होती है।"
" ठीक है अंकल जी, फिर आप मुझे प्राणायाम करना सिखाइए।"
"बेटे,आज तो समय हो चुका है। कल से आपको सिखाऊँगा। आप  ठीक समय आ जाना।"
"अच्छा प्रणाम।"
"आशीर्वाद।"
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
-०-

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लोग सब (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन

 

लोग सब
(ग़ज़ल)
लोग सब फूल वाले ख़ार समझते थे
कैसे पत्थरों को वफ़ादार समझते थे

इक पाया मैं भी हूँ मेरी भूल निकली
मुझे लोग रास्ते की दीवार समझते थे

हवा चराग़ की कुर्बानी से जल उठेगी
सितारे चाँद को गुनाहगार समझते थे

आवाज़ बग़ावत की रोज़ क़त्ल होती
तू ज़िंदा है वो तो शिकार समझते थे

इक वो ईमान हक़ इंसाफ का दौर था
बंटवारे को लोग अपनी हार समझते थे

उठा अपनी लाश चल निकल नदीम
वे चेहरे नहीं जो जांनिसार समझते थे
-०-
पता
नदीम हसन चमन
गया (बिहार) 
-०-


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जिंदगी (कविता) - गोरक्ष जाधव

जिंदगी
(कविता) 
जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है,
हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।

कभी अनगिनत इच्छाओं के कारण,
कभी अनचाहे ढकोसलों के कारण,
कभी विकलांग कर्मों के कारण,
कभी भ्रमित भ्रमों के कारण,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

कभी प्रलोभित संग्रह के कारण,
कभी आंतरिक संघर्ष के कारण,
कभी अहंता अश्व पर सवार होकर,
कभी अकल्पित कल्पनाओं भार लेकर,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

जिंदगी प्रेम का धाम है,
जिंदगी सुनहरी भोर और मधुरम शाम है,
जिंदगी विश्राम का विश्राम है,
जिंदगी अंत का विराम है,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

जिंदगी साँसों की यातायात हैं,
जिंदगी धड़कनों की कायनात हैं,
जिंदगी रूह की जादूगरी है,
जिंदगी ईश्वर की बाजीगरी है,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।
-०-
गोरक्ष जाधव 
मंगळवेढा (महाराष्ट्र)
 

-०-




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Thursday, 26 November 2020

किसी बहाने से (ग़ज़ल) - अलका मित्तल

 

किसी बहाने से
(ग़ज़ल)
रूठकर उदास बैठी हैं ख़ुशियों इक ज़माने से
पर ग़म चले आते हैं किसी न किसी बहाने से

ओढ़ने से चादर ग़मों की हासिल कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी के कुछ दर्द चले जाते हैं मुस्कुराने से

कभी पा लूँ उसे ये तो शायद मुमकिन ही नहीं
तबियत बहल जाती है ख़्याल उसका आने से

ख़्वाहिश न हो जब तलक रिश्ते नहीं बनते
गर चाहो दिल से बात बन जाती है बनाने से।

तुम कभी दिल की गहराइयों से अपनी पूछना
कितना सुकूँ मिलता है ओरो के काम आने से

खामोशियाँ सी छा गईं उसके मिरे दरमियाँ
नहीं भूलती वो यादें”अलका”लाख भुलाने
-०-

पता:
अलका मित्तल
मेरठ (उत्तरप्रदेश)

-०-

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नहीं दूध में (बालगीत) - डा. जियाउर रहमान जाफरी

   

नहीं दूध में
(बालगीत)
बोली     माँ से    नन्हीं  शालू 
रख लो    वापस पूरी   आलू 

लो खिचड़ी भी तुम ही खालो 
रखो यहां मत दाल उठा    लो 

सेब न मुझको कुछ भाता   है 
ये सब कौन है  जो खाता    है 

बनो  न मेरी   नानी       मम्मी  
ले जाओ  बिरयानी       मम्मी 

कहाँ पुलाव  मैं    खा पाती हूं 
बस भूखी ही  रह      जाती हूं 

सुनकर  बोली मम्मी      प्यारी 
ग़लत है बिटिया  बात तुम्हारी 

बच्चे सब    कुछ  जो खाते   हैं 
वो सेहतमंद    रह     पाते    हैं 

बड़ी हो तुम  ये    बात   पता है 
नहीं दूध  में    सारी ग़िज़ा    है 
-0-
-डा जियाउर रहमान जाफरी ©®
नालंदा (बिहार)



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ढूँढते फिरोगे (कविता) - भावना ठाकर

 

ढूँढते फिरोगे

(कविता)

कसक जब साथ बिताएं हसीन लम्हों  की याद आएगी तब, 
ज़िंदगी की किताब के हर पन्नों पर हमसे वाबस्ता इश्क के फ़साने ढूँढोगे।

नादाँ मेरे महबूब अकेले में तड़पते गुज़रा हुआ ज़माना ढूँढोगे 
हम है तो वीरानियों में भी बहार ए चमन है,ना रहेंगे हम तो मौसम ए बारिश की फुहार ढूँढोगे।

जा रहे हे रुख़सत जो दे रहे हो आज अपनी महफ़िल से हंस हंसकर,
कल दिल बहलाने की ख़ातिर हमें  लगातार ढूँढोगे।

बेख़बर हो हुश्न ए रौनक के नूर से तुम, उदास रातों में इन आँखों का नशा पाने मैख़ाने की दहलीज़ ढूँढोगे

बरसों का मोह है चंद पलों की दिल्लगी नहीं भूल पाओ तो भूला देना, 
भूलाने की कोशिश में हमें और करीब पाओगे 
तब अश्क जम जाएंगे ख़्वाबगाह में रोने के बहाने ढूँढोगे।

चाहा है तुम्हें चाहत की हद से गुज़रकर हमने रोम रोम भरकर, साँस साँस छनकर,
ढूँढने पर भी जब नज़र ना आऊँगी तब मचलकर मौत के बहाने ढूँढोगे।

-०- 
पता 
भावना ठाकर
बेंगलोर (कर्नाटक)

-०-



***
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आज फिर (कविता) - सरिता सरस

 

आज फिर
(कविता)
आज फिर....
उसका मुस्कराता चेहरा
तैर गया मेरी आँखों में
कांप गया मेरा वज़ूद ही
उस दिन की अपनी चुप्पी पर....

जब हंसे थे कुछ लोग
उसकी विकलांगता पर,
जब बेचारा कहकर
कर दिया गया था उसे किनारे
मैंने भी तो
बड़ी दया दृष्टि से देखा था उसे
मगर,
आज वह उसकी मुस्कान
चीरती है मेरे खोखले संस्कार को
अट्टहास करती है
मेरे दिमाग के बौनेपन पर...

आज वह उसकी मुस्कान
मुझमें ज्वालामुखी - सी हलचल पैदा कर दी है...
आज जब मैं अकेले... उदास..
जीवन से हारी हुई
बैठी थी अश्रु में डूबी
ओ आया......
वही एक पैरों वाला
हौले से कंधे पर हाथ रखा
फिर वही मुस्कान तैर रही थी
उसके अधरों पर....
बोला फिक्र मत कर ऐ दोस्त
तू अकेली नहीं
मैं तुम्हारे साथ हूँ.....

कलेजे को चीर गए ये शब्द
लगा धरती कांप उठी
अम्बर डगमगा उठा.....
आज मैं समझ पाई
विकलांगता का सच...
उसने मुझे मेरे
बौनेपन से आज़ाद कर दिया......
-०-
पता:
सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
-०-



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Tuesday, 24 November 2020

ताश के पत्तों का शहर (कविता) - सोनिया सैनी

ताश के पत्तों का शहर
(कविता)
ताश के पत्तों का शहर
यहां आदमी है,आदमी से बेखबर
एक की सजा दूसरे का मजा बन जाती है,
खून एक का बहे ,तो दूसरे की प्यास बुझ जाती है।


एक बढ़े आगे,तो दो कदम पीछे
धकेल, इंसानियत दिखला दी 
जाती है।
पूरा परिवार है यहां, फिर भी
ये आधुनिकता,हर एक को
तन्हा कर जाती है।

रिश्ते नाते सब है, बेमानी
यहां तो अपनों को ही
सारी दुनियादारी दिखला 
दी जाती है।

मुखौटा मासूमियत का लगाकर
मख़ोल इंसानियत का उड़ाया
जाता है।
अजी यह ,ताश के पत्तो का
शहर है।
यहां आदमी ही आदमी के लिए
ज़हर है।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास का अन्त होना आवश्यक (आलेख) - डाॅ० सिकन्दर लाल

भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास का अन्त होना आवश्यक
(आलेख)

कोरोना वायरस तो मानव एवं जीव-जन्तु के लिए खतरनाक है लेकिन इस वायरस से कहीं अधिक हमारे देश के लिए वो लोग भी खतरनाक हैं जो भारत देश रूपी पावन धाम में, जान - बूझकर लूट-घसोट एवं बेईमानी आदि करके, आय से अधिक धन- दौलत रखे हुए हैं| कुछ मूर्ख लोग विना अपने विद्यालय/महाविद्यालय आदि जैसे अन्य सरकारी संस्थानों में गये वेतन अर्थात् पैसा आदि ले रहे हैं, जिस संस्थान की कमाई खा रहे हैं उसी को,फर्जी बिल-बाउचर के माध्यम से तो कहीं अधिक बढ़ा कर , कम पैसे का सामान अधिक पैसों में दिखाकर, नोच रहे हैं या फिर फर्जी बिल- बाउचर लगाकर पूरा का पूरा सरकारी पैसा निकाल ले रहे हैं  |यहाँ तक कि सरकारी पैसे से कुछ मूर्ख लोग इतना अधिक कमजोर सामान खरीदते हैं जिससे कि वह बहुत दिन तक न चलकर शीघ्र ही टूट- फूट या खराब हो जाता है | इसी तरह अधिकतर भ्रष्टाचारी एवं बेईमान लोग अपने-अपने तरीके से अपने-अपने  विभागों में चोरी एवं घूसखोरी आदि करते हैं तभी तो ये मूर्ख लोग अपने सम्पूर्ण सम्पत्ति का ब्यौरा सरकार को नहीं देते हैं, दिया भी तो आधा- अधूरा|जिससे भारत देश में रहने वाले अधिकतर मानव एवं जीव-जन्तुओं  की समुचित व्यवस्था ( रोटी, कपड़ा, घर, मकान, उत्तम स्वास्थ्य, समुचित शिक्षा तथा जीवों की भी  रहने आदि का पर्याप्त रूप में जगह न मिलना) नहीं हो पा रही है| जहाँ कुछ मूर्ख लोग अपने ज्ञान,पद- प्रतिष्ठा आदि का दुरुपयोग कर भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों का, शोषण करते हुए अपना घर-परिवार सजाने में लगा हुये हैं वहीं धर्म के नाम पर कुछ मूर्ख एवं पाखण्डी साधु दिनों- दिन जमीन को कब्जा करके,जमीन को कम करते जा रहे हैं तथा माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तट को भी कब्जा करके,जल को दूषित करने में लगे हुए हैं | किसान देवता कहाँ से अधिक अनाज पैदा करे और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कैसे स्वच्छ हो, यह हमारे पावन देश में विराजमान् कुछ बुद्धिजीवियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है| सरकार बुद्धिजीवी मानवों के सहयोग से समान दंड व्यवस्था और कठोर कानून बनाकर आय से अधिक सम्पत्ति रखने वाले भ्रष्टाचारी एवं बेईमान मनुष्यों से सम्पूर्ण पैसा तथा जमीन- जायदाद आदि जब्त कर ले तथा इस बचे हुए जमीन और पैसों को, पक्षपात रहित होकर, उन लोगों के विकास में लगाये जायें, जो भारत देश रूपी पावन धाम में रहने के बावजूद भी, अभी तक पर्याप्त शिक्षा, रोटी,कपड़ा तथा घर आदि से वंचित हैं| इसी तरह सरकार कठोर कानून से धर्म के नाम पर जमीन कब्जा करके झूठ- मूठ का प्रवचन देकर भोले-भाले मानव को ठग कर अपना घर-परिवार सजाने वाले पाखण्डी एवं मूर्ख साधु रूपी भस्मासुरों से भी जमीन को छीन ले और साथ ही माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तटों को खाली करा दे तो मुझें लगता है पुनः वेद सम्मति राज आ जायेगा अर्थात् अन्न पैदा करने के लिए जमीन निकल आयेगी और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कुछ हद तक स्वच्छ हो जायेगा जिससे भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों के जीवन में कुछ और अधिक सुख-शान्ति की वृद्धि हो जायेगी| अत: स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ  बेईमान मनुष्यों तथा धर्म के नाम पर जमीन एवं माँ गंगा जैसी महान् नदियों के तट को कब्जा करने वाले कुछ मूर्ख  साधु कोरोना वायरस से लाखों गुना, हमारे भारत देश रूपी पावन धाम के लिए खतरनाक हैं, अत:  भारत भूमि  की रक्षा करने हेतु, मानवों द्वारा भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास आदि जैसे कुरीतियों का निराकरण करना आवश्यक है|

-०-
पता: 
डाॅ० सिकन्दर लाल 
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-
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फरियाद कर लिया (ग़ज़ल) - मोहम्मद मुमताज़ हसन

फरियाद कर लिया
(ग़ज़ल)
दिल ही दिल में याद कर लिया,
दुआ में तुझे फरियाद कर लिया!

ये चाहत भी क्या शै है या रब,
ख़ुद को भी बर्बाद कर लिया!

रास न आई मुझे मुहब्बत तूने,
नई दुनिया आबाद कर लिया!

इक आरज़ू  मेरे  सीने में रख कर,
हसींख़्वाब की बुनियाद कर लिया!

शिकार मेरा करने की चाहत में,
ख़ुद को उसने सैयाद कर लिया!
-0-
पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

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मेरी प्रेरणा (कविता) - अ कीर्तिवर्धन

मेरी प्रेरणा
(कविता)
हासिये पर बने वह लोग
जो विकलांग होकर भी
भीड़ से आगे चले हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं.....

विकलांगता जिनके लिए अभिशाप थी,
अभिशाप की बैशाखियाँ तोड़ कर
जो आगे बढे हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता को जिन्होंने ललकारा है,
आत्मशक्ति को संभाला है
अपने निश्चय पर अड़े हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता को नया अर्थ दे डाला है,
शक्ति का सृजन क्रियात्मक कर डाला है
आज राजपथ पर खड़े हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता अब घबराने लगी है
स्वाभिमान से बचने लगी है
जब से वो गद्दीनशीं हुए हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता अब बेमानी हो गई है
उनकी पहचान सफलता की कहानी हो गई है
आज मंजिलों से आगे वो बढे हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....
-०-
पता: 
अ कीर्तिवर्धन



***
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Monday, 23 November 2020

ऐ मेरी किताब (कविता) - रेशमा त्रिपाठी

 

अधूरी रही
(कविता)
“आनन्द के उन्मेष में
जीवन के अंश में
रोते हुए कंठ में
शोक के अंश में
आशा के शोर में
उन्माद के सन्तोष में
आत्मा की ग्लानि में
कर्म के मार्ग में
अधर्म और अन्याय में
बुद्धि के विचार में 
अध्ययन और ध्यान में
गुरू और देव में
मैंने तुम्हें ढूंढा हैं
मैंने तुम्हें पूजा हैं
अज्ञानी के ज्ञान में भी 
मैंने तुम्हें खोजा हैं
 ए मेरी किताब
जीवन का सार तू
ज्ञान और अध्यात्म तू
धन और परिवार तू
प्रेम और प्रकाश तू
द्वन्द्व की अनुभूति में 
जीवन का मार्ग तू
ए मेरी किताब।।"
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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लड़कियाँ अपने घर में भी हैं (कविता) - धीरेन्द्र त्रिपाठी

लड़कियाँ अपने घर में भी हैं
(कविता)
एक लड़की चाहती है ,
आपसे थोड़ा प्यार , थोड़ी इज्जत
एक लड़की चाहती है आपसे
थोड़ा अपनापन , थोड़ी आदमियत
पर हर कोई उसे देता रहा उकूबत

हर लड़की चाहती है , कोई समझे उसे
पर हमको कहाँ है इतनी फुर्सत
हर कोई बस जिस्म से खेलने की चाह रखता हैं
और जो नहीं रखता है,वो लडक़ी के लिए होता है कुदरत

अगर कोई समझ पाया किसी लड़की को
तो आजिम है कि वो कातिब होगा
या फिर अपनी बहन,बीबी,के दर्द से मुखातिब होगा

'धीरेन्द्र"माँ की परवरिश पर सवाल नही आएगा
गर फ़ाज़िल रहोगे, एक लड़की की नजर में
किसी भी लड़की से पेश आना,तो यहीं सोचकर
कि लड़किया है तुम्हारे भी घर में । 
-०- 

पता 
धीरेन्द्र त्रिपाठी
सिद्देधार्शथनगर (उत्तरप्रदेश)
-०-



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यादों के गलियारे से (कहानी) - रीता झा


यादों के गलियारे से
(कहानी)
मेरे कमरे की खिड़की से उसके घर के आंगन का दृश्य साफ - साफ दिखाई देता था । राजेश आज यादों के गलियारे में भटकने लगा था ,जब पंद्रह साल बाद आज वह अपने ममेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए अपने ननिहाल (मामा के गांव) पहुंचा था । राजेश का ननिहाल बहुत ही समृद्ध था तथा गांव में भी दो मंजिला इमारत थी और सुख-सुविधा के सारे सामान मौजूद थे उनके घर में । जरूरत से कुछ ज्यादा ही कमरे थे उस इमारत में ।

जब वह बारहवीं में पढ़ रहा था तभी मां बहुत बीमार हो गई थीं, डाक्टर ने उन्हें एक दो महीने पूरा आराम करने की सलाह दी थी । पिताजी ने मां को नानी के घर भेज दिया था, और घर पर सिर्फ़ मैं और पिताजी रह गए थे । हमें खाने- पीने का काफी दिक्कत हो गया था और इसी कारण जैसे ही मेरी गर्मी की छुट्टियां हुईं पिताजी ने मुझे भी नानी के घर भेज दिया था। मैं अपने साथ किताब कापी ले कर गया था कि वहां एक महीने रह कर पढ़ाई करूंगा और फिर छुट्टी खत्म होने पर मां के साथ वापस आ जाऊंगा । ननिहाल में मेरे लिए उपर का एक कमरा सजवा दिया गया जो कि चार खिड़कियों वाला सबसे हवादार कमरा था ,पर घर के बाकी लोग नीचे के कमरों में ही सोते थे , जिससे एकांत में रहकर मैं अच्छे से पढ़ पाऊंगा , यही बात कहा गया था मुझे ।

मैं भी खुशी खुशी वहां पढ़ाई करने लगा ।पांच दिन तक तो मैं अच्छे से पढ़ता रहा था, पर छठे दिन मुझे कुछ अधिक गर्मी महसूस हुई तो मैंने कमरे की तीसरी और चौथी खिड़की भी खोल दिया जो कि पिछले पांच दिन से बंद ही था । पूर्वी दिशा की चौथी खिड़की से सामने के एक छोटे से घर का आंगन दिखाई दे रहा था और वहां एक बहुत खूबसूरत सी लड़की बैठी थी और उसके सामने एक औरत बैठी थी जिनका पीठ मेरी तरफ था । मैं एकटक उस लड़की को देख रहा था, तभी वह किसी बात पर खिला कर हंसी और उसका यूं हंसाना देखकर तो मुझे कुछ कुछ होने लगा। मैं तब तक वहीं जड़वत खड़ा रहा जब तक वह उठकर अंदर नहीं चली गई थी ।

अब तो मेरा रोज़ का यही सिलसिला हो गया, उसकी एक झलक पाने को मैं घंटों खिड़की पर इंतजार करता रहता था और जैसे ही वह दिखाई देती मेरे दिल में मानो सितार बज उठते । मेरा पढ़ाई लिखाई तो उस खिड़की पर खड़े रहने की वजह से चौपट सा ही हो गया था । दो-तीन दिन में शायद वह भी मेरी मनोदशा भांप गई थी और इसी कारण वह बार-बार आंगन में आती थी और मुझे देख कर मुस्कुरा देती थी ।

इस तरह ही सिलसिला चलता रहा और अब मेरे वापस जाने में सिर्फ दो ही दिन बच गया था । मैंने अपनी ममेरी बहन को पास बिठाकर अपने दिल का हाल बयां कर दिया था तथा उससे गुजारिश की थी कि वह अपनी पड़ोसी सखी से मुझे एक बार मिलवा दे । "पर भैया वो तो ..", बस इतना ही कह पाई थी ममेरी बहन कि मैंने उसे झट से कहा" प्लीज़ एक बार मुलाकात करवा दो मेरी प्यारी बहना फिर परसों सुबह तो मैं चला ही जाऊंगा । प्लीज़ , प्लीज़ मेरी खातिर बस एक बार...."। 

उसने हामी भर दी तथा अपनी सहेली से बात करने चली गई और फिर थोड़ी देर बाद आकर उसने मुझसे कहा कि दोपहर के तीन बजे आम के बगीचे में जाना है क्योंकि उस वक्त सभी सोते रहते हैं और किसी को भी पता चल जाने का खतरा नहीं होगा । फिर उसने यह भी कहा कि वह भी हमारे साथ ही रहेगी ।

तय समय पर हम तीनों मिले और मैंने अपनी ममेरी बहन से थोड़ी दूर ले जा कर उससे अपना हालेदिल बयां कर दिया तथा बिना एक पल गंवाए यह भी कह दिया कि वो मेरा इंतजार कुछ वर्षों के लिए करे !!

इतना सुनते ही वह तो फफक- फफक कर रो पड़ी थी। मेरी बहन भी दौड़ी हमारे पास आई और बोली,"भैया मैं तो सुबह आपसे यही बात कहने जा रही थी कि उसकी (गरिमा की) सगाई हो चुकी है और अगले महीने की दस तारीख को उसकी शादी भी होने वाली है, पर आपने तो बात बीच में ही काट दिया था।" यह बात सुनते ही मेरी तो हालत ऐसी हो गई थी कि मानो काटो तो खून नहीं!

फिर कुछ देर बाद गरिमा मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर बोली कि "मुझे माफ़ कर दीजियेगा, वैसे मुझे भी आपका उस तरह निहारना अच्छा लगता था । पर… मैं गांव की एक ऐसी लड़की हूं जिसके लिए उसके अपने अहसास मायने नहीं रखते हैं । मुझे शादी के लिए मना करके अपने पिताजी की बदनामी नहीं करवानी है, अतः मैं वहीं शादी करूंगी जहां उन्होंने तय कर दिया है, आप यह सब बातें और जज्बातों को भूल जाना बस.. ।"

मैं वापस घर आया और फिर नीचे के कमरे में ही यह कहकर रह गया कि "एक दिन तो सबके साथ बिता लूं पता नहीं फिर कब आना होगा।" उस दिन मैंने यह ठान लिया था कि अब जीवन में कभी भी उस कमरे में नहीं जाउंगा और उस खिड़की से वास्ता तो कभी भी नहीं रखूंगा ।

"राजेश तुम्हारा बिस्तर उपर के सबसे हवादार कमरा में लगवा दिया है ।" मामा जी का यह स्वर सुन राजेश अतीत के गहवर से वर्तमान में लौट आया । खाना पीना हो जाने के बाद राजेश आराम करने उपर के उस कमरे में गया और आराम करने की कोशिश करने लगा , कुछ देर बाद अचानक ही वह उठकर खिड़की को खोल सामने गरिमा के घर के आंगन को निहारने लगा था और पुरानी यादों के झरोखे से उन बीते दिनों को मानो फिर से जीने की एक कोशिश कर रहा था ।
-०- 

पता 
रीता झा
कटक (मध्यप्रदेश)
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Sunday, 22 November 2020

चाल (लघुकथा) - विवेक मेहता

चाल
(लघुकथा)
  शोरगुल और चमक भरी रात थी। हमेशा की तरह राजा ने श्मशान में प्रवेश किया। पेड़ पर लटकी लाश को उतारा, पीठ पर लादा और चल पड़ा।
                  लाश में छिपा बेताल मुखर हो गया। बोला-" राजन, तुम प्रयास करते करते थक गए होंगे। तुम्हारी थकान कम करने के लिए एक कहानी सुनाता हूं।
                लोकतांत्रिक जम्बू देश में भयानक बहुमत से ढ़पोरशंख राजा बन गया। हवाओं में चारों ओर जुमलो और वादों की बरसात हो गई। उसके राजा बनते ही उसकी पार्टी के लोग उत्साह में आ गए। उनके उत्साह ने उन्हें अनैतिक कार्यों से धन कमाने के लिए उकसाया। गलत कार्यों का भांडा कभी न कभी तो फुटना ही था। न जाने कैसे उनमें से कुछ के अनैतिक देह व्यापार की पोल खुल गई। मामले ने तूल पकड़ा और रेला राजा के नजदिकीयों के पांव तक पहुंचा। साम-दाम-दंड-भेद से मामले को दबाने के प्रयास होने लगे। विरोधियों को भी मामले में सत्ता की सीढ़ी दिखलाई पड़ने लगी। विरोध प्रदर्शन, कैंडल मार्च, बयान- बाजी होने लगी। समाचार पत्रों, टीवी बहसों में मामला छाने लगा। विरोध पक्ष ने राज्य भर में पदयात्रा कर मामला गरमाने की चाल चली। जिस दिन पदयात्रा शुरू होनी थी उसी रात को ही राज्य भर में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई। टीवी पर प्रमुखता से समाचार आ रहे थे कि सीमा पार से दो आतंकी देश में घुस आए हैं।  सारे राज्य में नाकाबंदी कर उनकी तलाश की जा रही है। पदयात्रा हुई, भीड़  न जुटी। न समाचारों में मुद्दा छाया। पदयात्रा के समाप्त होते ही आतंकियों वाला मुद्दा भी बंद हो गया। नाकेबंदी, पुलिस सब गायब हो गए।"
               कहानी समाप्त कर बेताल ने पूछा-"राजन देह व्यापार वाली समस्या का क्या हुआ? वे आतंकी कहां गए? इन सवालों का जवाब जानते हुए भी नहीं दोगे तो तुम्हारे सर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।"
             "आतंकवादी होते तो मिलते। समस्या से ध्यान भटकाने के लिए देशभक्ति का माहौल बनाना पड़ता है। देश सर्वोपरि होता है। सत्ताधारी इस मानसिकता को समझते हैं और प्रयोग में लाते हैं। यही इस खेल का मूल था। बात खत्म। खेल खत्म। 
             राजा की बात खत्म होते ही बेताल लाश को लेकर पेड़ पर लटक गया।
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पता:
विवेक मेहता
आदिपुर कच्छ गुजरात

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