*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Monday, 31 August 2020

बहुत मुश्किल से मिलते हैं दोस्त ...... ! (कविता) - अशोक 'आनन'

बहुत मुश्किल से मिलते हैं दोस्त ...... !
( कविता )
बहुत  मुश्किल  से मिलते हैं दोस्त ज़माने में ।
सदियां  लग  जाती  हैं  उन्हें  आज़माने   में ।

पेड़  अपने  आंगन  के  तुम जो काट रहे हो -
लहू  अपना  सींचा  है हमने उन्हें पनपाने में ।

तूफां  में  हमने  जिन्हें   डूबने   से   बचाया -
उन्हें पल  भी  न लगा यारों ! हमें  डुबाने में ।

फूलों को खुशबुओं का साथ क्या मिल गया  -
बाग ने की न ज़रा देर बागवां को भुलाने में ।

झोपड़ियों से थी नफ़रत जिन आसमानों को -
उन  पर  वे  ही  लगे  हैं बिजलियाॅं गिराने में ।

व्यर्थ हैं वे गीत जो किसी का दिल न छू सकें  -
फूटना  है  कान  ही अब  उन्हें  गुनगुनाने में ।

पेट  में  जो  अंगारे  भड़क  रहे   हैं ' आनन ' -
समन्दर भी कम पड़ जाएंगे  उन्हें बुझाने में ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (मध्यप्रदेश)




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कारगिल हो या गलवान (कविता) - राज कुमार साव


कारगिल हो या गलवान
(कविता)
कारगिल हो या गलवान
सबसे पहले सैनिकों का
          सम्मान
कारगिल की बुलंद
चोटियों पर जिन्होंने
शान से सोलह हज़ार
फीट की ऊंचाई पर
तिरंगा लहराया
जिन्होंने अपने लहू
    बहाकर
दुश्मनों से गलवान
घाटी को है बचाया
जिसे सिर झुकाकर
पूरा देश करता है
     सम्मान
कारगिल हो या गलवान
हर बाजी जीतेगा
       हिन्दुस्तान।
-०-
पता: 
राज कुमार साव
पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल)

-०-



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बचपन (कविता) - सुशांत सुप्रिय

बचपन
(कविता)
दशकों पहले एक बचपन था
बचपन उल्लसित, किलकता हुआ
सूरज, चाँद और सितारों के नीचे
एक मासूम उपस्थिति

बचपन चिड़िया का पंख था
बचपन आकाश में शान से उड़ती
रंगीन पतंगें थीं
बचपन माँ का दुलार था
बचपन पिता की गोद का प्यार था

समय के साथ
चिड़ियों के पंख कहीं खो गए
सभी पतंगें कट-फट गईं
माँ सितारों में जा छिपी
पिता सूर्य में समा गए

बचपन अब एक लुप्तप्राय जीव है
जो केवल स्मृति के अजायबघर में
पाया जाता है
वह एक खो गई उम्र है
जब क्षितिज संभावनाओं
से भरा था
-०-
पता:
सुशांत सुप्रिय
ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-



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Saturday, 29 August 2020

अब बेटा बड़ा हो गया है (कविता) - लक्ष्मी बाकेलाल यादव


अब बेटा बड़ा हो गया है
(कविता)
खेल-कूद भूलकर अब
 मोबाईल चलाने लगा है
हँसी-मजाक से परे अब
संजीदा रहने लगा है ,

माँ के आँसू झूठे लगते
बहन-भाई अब तीखे लगते
बीवी का कहना मानकर अब
अपना दिल बहलाने लगा है
अब बेटा बड़ा हो गया है ।

बाप की कमाई पर वह
अपना हक जताने लगा है
जरॆ-जरॆ हर चीज का अब
हिसाब वह रखने लगा है ,

जिनसे उसे पहचान मिली
उनको औकात बताने लगा है
ऊँगली पकड़ जिससे चलना सीखा
उसी को राह दिखाने लगा है

अपनों को पराया समझ अब
गैरों को अपनाने लगा है
सही-गलत की पहचान भूल अब
रिश्तों को दफनाने लगा है
क्योंकि अब बेटा बड़ा हो गया है ।
***
पता:
लक्ष्मी बाकेलाल यादव
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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तू मेरी मैं तेरी थी (कविता) - रोशन कुमार झा

तू मेरी मैं तेरी थी
(कविता)
मैं रोशन यह ज़िन्दगी तेरी थी ,
तब ही अपना मानती थी , जब तू अकेली थी !
तू तो लुटी ही और तुम्हारी लुटने वाली सहेली थी ,
आज किसी और की हो गई यह तुम्हारी नहीं मेरी
क़िस्मत की फेरी थी !!

तब ही पूजा करने योग्य फूल तू चम्पा और चमेली थी ,
जब तू मेरी थी !
तुम्हारी जिन्दगी में किसी के आने की देरी थी ,
बदल गई तू , ऐसा कौन सा पहेली थी !!

तू मेरी मैं तेरी थी ,
कैसे भूलें वह दिन , जब तू मेरे साथ खेली थी !
सुन्दर रूप, सुन्दर चाल चलने वाली तुम्हारी एड़ी थी ,
छोड़कर चली गई, क्या इतने ही दिन की सफ़र मेरी थी !!

मेरी डांट फटकार सब झेली थी ,
कब ? जब तू अकेली थी !
छोड़कर जाना रहा ,यह सोच तेरी थी ,
तुम खुश हो न , फुटा क़िस्मत तो मेरी थी !!
-०-
रोशन कुमार झा
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

-०-



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धोखे पे धोखा (ग़ज़ल) - प्रशान्त 'प्रभंजन'

       

       धोखे पे धोखा
       (ग़ज़ल)
       किस्तों में खोता रहा
       जिंदगी   ढोता   रहा

       क़त्ल    हुए   अरमां
       रूह  भी  रोता  रहा

       मर  गई  जमीं  औ'
       फसल  बोता   रहा

       जल    रहा   आंगन
       घर  भी  सोता  रहा

       रोशनी  जाती   रही
       ख्वाब  संजोता रहा

       खुदी  मार  गंगा  को
       गुनाह   धोता     रहा

       धोखे पे धोखा मिला
       जुस्तजू  होता   रहा
       -०-
       पता:
       प्रशान्त 'प्रभंजन'
       कुशीनगर (उत्तरप्रदेश)
       
       -०-



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Thursday, 27 August 2020

भारत छोडो (कविता) - राम गोपाल राही


भारत छोडो
(कविता)
(9 अगस्त 1942)
काँग्रेस का नेतृत्व पाकर
राष्ट्र चेतना आयी थी |
अँग्रेजों का दम फूला था ,
देश ने ली अँगड़ाई थी ||

भारत छोड़ो आंदोलन का ,
कुछ ऐसा आगाज हुआ |
काँग्रेस महा अधिवेशन में ,
था प्रस्ताव पास हुआ ||

नौ अगस्त सन बियाँलीस को ,
देश में हलचल भारी थी |
गाँधी जी के नेतृत्व में ,
बोली जनता सारी थी ||

अँग्रेजों तुम भारत छोड़ो ,
हिन्दुस्तान हमारा है |
सोने की चिड़िया देश को ,
लूटा तुमने सारा है ||

तुम्हें भगा कर ही दम लेंगे ,
यह संकल्प हमारा है |
बाँधा  हमने कफन समझ लो ,
 यहाँ न हक  तुम्हारा है ||

व्यापारी बन बैठे शासक ,
कि तुमने गद्दारी है |
अपने देश में अपना शासन ,
हक की माँग हमारी है ||

उल्टी गिनती शुरू हो गई ,
अब तुम्हारे जाने की |
अधिपत्य  व राज छोड़कर ,
राज हमें संभलाने की ||

हाथ मशालें लेकर निकले ,
काँग्रेस जन सारे थे |
भारत छोड़ो आंदोलन में ,
राष्ट्र  एकता नारे थे ||

हाथ तिरंगा झंडा गीत ,
सभी बोलते जाते थे |
भारत माँ के जयकारों संग ,
आगे कदम बढ़ाते थे ||

अंग्रेजों ने दमन चक्र का
बिछा चहुँ  ही जाल दिया |
चौदह हजार  भारतीयों को
चहुँ जेल में डाल दिया ||

उग्र हो गया आंदोलन था ,
फैला विकट नजारा था |
बुलंद हौसले हाथकड़ी ,
जज्बा जोश नजारा था ||

नींद उड़ा दी अँग्रेजों की ,
आंदोलन ने हिला दिया |
भारत छोड़ो आंदोलन ने,
ऐतिहासिक काम किया ||

बलिदानों व संघर्षों  में -
 तन मन खूब लुटाया था |
कांग्रेस के सिवा अन्य दल ,
कोई साथ न  आया था ||
-०-
पता
रामगोपाल राही
बूंदी (राजस्थान)
-०-



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Wednesday, 26 August 2020

क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'

क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है
(कविता)
गीता प्यारी है ,बाइबिल प्यारा है
गुरुग्रंथ साहब  प्यारे हैं
प्यारा पाक कुरान है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

हिंदू प्यारे हैं, मुस्लिम प्यारे हैं
सत श्री अकाल सिख  प्यारे हैं
प्यारे बौद्ध जैन और क्रिश्चियन हैं
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

धर्म प्यारा है ,मजहब प्यारा है
पूजा प्यारी है ,अरदास प्यारा है
प्यारा सबका अपना ईमान है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

अल्लाह प्यारे हैं, गॉड प्यारे हैं
वाहेगुरु प्यारे हैं, प्यारे बुद्ध
महावीर और भगवान हैं
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

ईद प्यारा है क्रिसमस  प्यारा है
बैसाखी का त्यौहार प्यारा है
प्यारा दीपावली का दीप दान है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

धरती प्यारी अम्बर प्यारा
नदियाँ प्यारी, जंगल प्यारे
प्यारा सारा नील गगन है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

आप भी प्यारे, हम भी प्यारे
प्यारे प्यारे लोग हैं सारे
प्यारा सारा जहान है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है

बच्चे प्यारी, बीवी प्यारी
"दीनेश' प्यारे  प्यारे  मां-बाप है
इनकी सेवा करो यही तो भगवान है
क्योंकि प्यारा हिंदुस्तान है.
-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-



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पंख (कविता) - सोनिया सैनी

पंख
(कविता)
उड़ना चाहती हूं , बेखोफ
पापा पंख मुझे ला दो।

आगे बढ़ना चाहती हूं, बेखौफ
थोड़ा सा साहस मेरा बढ़ा दो।

 कोन सा है समाज,जो कहता
बेटी को छोड़, बेटे को अच्छा
पढ़ा दो।
तो ऐसे में , पापा
उन्हें समझा दो ,में भी हूं
आपके दिल का टुकड़ा
उन्हें अच्छे से बतला दो।

नहीं रुकुगी, नहीं थकुगी
बस ,आप पंख मुझे ला दो।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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नवजीवन (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

नवजीवन
(कविता) 
नवजीवन उर को देता है प्रेम,
दुःख सारे हर लेता है प्रेम,
जीवन के इस रंगमंच का,
असली अभिनेता है प्रेम।

पवन है नवजीवन का स्त्रोत,
परहित के भाव से ओतप्रोत,
सबकी श्वांस चलती है पवन से,
जलती इससे ही जीवन ज्योति।

नवजीवन प्रदान करता है जल,
जल से सुरक्षित आज और कल,
जल है जीवन हेतु अपरिहार्य,
जल से ही जीवन शुभ मंगल।

सावन करता है नवजीवन प्रदान,
अलंकृत करता है समस्त जहान,
कलियों में रंग भरतीं नेह बूंदे,
बिन सावन सूना है उद्यान।

नवजीवन सदैव देती है माता,
ईश्वर सदृश वह भाग्य विधाता,
सृष्टि की निरंतरता नारी से,
अंतस में ममत्व सागर लहराता।

नवजीवन मात्र एक शब्द नहीं है,
जीवन का ध्येय, प्रारब्ध यही है,
नवजीवन में सृजनात्मकता है,
रचनात्मकता में उपलब्ध यही है।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)


-०-


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Tuesday, 25 August 2020

धरती का श्रंगार है वन (कविता) - राजेश कुमार शर्मा 'पुरोहित'


धरती का श्रंगार है वन
(कविता)
धरती का तापक्रम बढ़ रहा
पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा
भूकम्प के झटके आ रहे
प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा
वृक्ष रोज कटते जा रहे
मिट्टी रोज कटती जा रही
पहाड़ों में रास्ते बन गए
जंगल धीरे धीरे कट गए
हर जगह विकास ऐसा हुआ
वानिकी दिवस घोषित हुआ
सब कारणों का उपाय खोजे
मिलकर फिर वृक्षारोपण करें
आओ वनों का संरक्षण करें
वन्य जीव जंतुओं का रक्षण करें
भारत के वनों की रक्षा करें
दक्षिण में केरल के वर्षा वन
उत्तर में लद्धाख के अल्पाइन
पश्चिम में धोरो वाला मरुस्थल
पूर्वोत्तर कर सदाबहार वन
शंकुधारी,सदाबहार,पर्णपाती
कांटेदार,मैंग्रोव वनों की रक्षा करें
वनों से प्राप्त उत्पादों की बात हो
वरना फर्नीचर,ईंधन कहाँ से पाओगे
फल,सुपारी,मसाले कहाँ लेने जाओगे
पेड़ों से आयुर्वेदिक औषधियां बनती
स्थाई उपचार कर सब रोगों को हर लेती
इसलिए कहते हैं भाई सुनों गौर से
पेड़ों को अधिक से अधिक लगाएं
मृदा अपरदन होने से बचायें
पेड़ हमें प्राणवायु देते हैं
बदले मे कार्बनडाई आक्साइड ग्रहण करते हैं
पृथ्वी के सुरक्षा कवच ये कहाते
जंगली जीवों को ये बचाते
सभी जीवों को सूर्य ताप से बचाते
धरती के तापक्रम को नियंत्रित रखते
वन प्रकाश का परावर्तन घटाते
ध्वनि को भी नियंत्रित करते
हवा की गति को कम करते
दिशा वायु की ये बदलते
पेड़ बड़े गुणकारी होते
पीपल,वट, नीम,आंवला,शमी
ये सब पेड़ सदा से पूजित होते
मोर,गिद्ध,गोडावण को बचाएं
धरती का श्रृंगार है वन सबको समझाएं
जन्मदिवस पर वृक्ष लगाने का संकल्प दिलाएँ
एक एक पेड़ लगाकर हम सभी
धरती माता को मिलकर सजाएं
-०-
राजेश कुमार शर्मा 'पुरोहित'
कवि,साहित्यकार
झालावाड़ (राजस्थान)

-०-


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मन का वृंदावन (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

मन का वृंदावन
(कविता)
तन की बसी अयोध्या में है,
मन का वृंदावन |

सागर की नीलामी करता,
रोज समय का सूर्य,
सदा सूचना देता भू को,
बज कलरव का तूर्य,
सावन की हर धूप-छाँह का,
घन का वृंदावन |

आसमान की ऊँचाई का,
मिला नहीं परिणाम,
जेठ दुपहरी में पर्वत को,
भून रहा है घाम,
तड़पा खुशियों की मथुरा में,
जन का वृंदावन |

पौराणिक आख्यान, कथाएँ,
लोकव्यथा का गान,
भक्ति-भाव का रूप चिरंतन,
समता का सम्मान,
कृष्ण-राधिका की यह माटी,
वन का वृंदावन |

सत्संगों की समिधाओं का,
एक हवन का कुंड,
योग साधना का पद्मासन,
जनमानस का झुंड,
आस्थाओं की पूजाओं का,
अन का वृंदावन |
-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


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जीवन का अंतिम सत्य (लघु आलेख) - अमित डोगरा

जीवन का अंतिम सत्य 
(लघु आलेख)
    कभी किसी ने बैठकर सोचा ,नहीं सोचा होगा, क्योंकि हम अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं, कि हमारे पास इस मानव जीवन के अंतिम सत्य के बारे में सोचने का समय नहीं है, हमारे पास केवल अपनी तृष्णाओं की पूर्ति का समय है ,हमें केवल धन एकत्रित करना है, हमें केवल भोग भोगने हैं, हमें केवल अपनी सत्य स्थापित करनी है, हमें केवल दूसरों को नीचा दिखाना है, पर कभी किसी ने सोचा ,यह सब भोग क्षण भर के हैं ,हमारे से पहले इस पृथ्वी पर कितने राजा, महाराजा आए, जो कितने शक्तिशाली थे, उन्होंने अपनी भक्ति से देवो को प्रसन्न करके कई वरदान हासिल किए,पर  वो भी एक दिन काल के ग्रास बन गए, तो क्यों आज इस पृथ्वी का तुछ्च सा मानव यह भूल गया है, उसे भी एक दिन काल का ग्रास बनना है,अगर भूल गए हैं , तो एक दिन शमशान भूमि में जाकर किसी जलते मुर्दे को देख आए ,क्योंकि यही जीवन का अंतिम सत्य है।।
-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

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Monday, 24 August 2020

गणेश चतुर्थी (गीत) - सपना परिहार


गणेश चतुर्थी
(गीत)
भाद्र पक्ष की चतुर्थी
जन्म हुआ गजराज
रंग -गुलाल उड़ रहा
और बज रहा है साज ।

प्रथम पूज्य को शीश झुकाऊ
गौरी पुत्र गणेश
भालचंद्र है जिनके सिर  पर
पिता है तुम्हारे महेश ।

एक सौ आठ है नाम तुम्हारे
तुम उनसे सुशोभित हो,
मूसक वाहन है तुम्हारी सवारी
तुम सबके मन मोहित हो ।

कार्तिकेय के भ्राता अनुज
रिद्धी-सिद्धि संग विराजत हो,
शुभ-लाभ के बिना अधूरे
पिता उनके कहावत हो।

हर वर्ष में ग्यारह दिवस तुम
हम सबके घर में आते हो ,
अगले बरस फिर आने का वादा
तुम करके चले जाते हो।

हर शुभ मंगल कार्य में
तुम्हे ही पूजा जाता है
जीवन में कुछ  भी संकट हो
जिह्वा पर नाम तुम्हारा ही आता है।
-०-
पता:
सपना परिहार 
उज्जैन (मध्यप्रदेश)


-०-
मधुकांत जी की रचना पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें! 

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विनय सुनो मेरी (कविता) - रीना गोयल

विनय सुनो मेरी
(कविता)
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा ।।
आया हूँ अब शरण तुम्हारी ,काटो सकल कलेश हमारा ।।

शिव गौरी के राज दुलारे ,दीन दुखी के रखवारे ।
रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु जी ,जग पालक,पालन हारे ।
हृदय लुभाती भोली सूरत ,अनुपम है परिवेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।


सब देवों में प्रथम पूज्य हो ,मंगल करते मंगलकारी ।
अति प्रिय भोग तुम्हें मोदक का ,मूषक राजा बने सवारी ।
सकल भुवन है चरण ;शरण में ,जब जब हो आदेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।

थाल सजा हम करें आरती ,द्वार दया का प्रभु अब खोलो ।
लम्बोदर,गणपति,गणनायक,सारे मिलकर जय हो बोलो ।
दशों दिशा दिगपाल जहाँ में , है सत्कार विशेष तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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जय गणेश (कविता) - अतुल पाठक 'धैर्य'



जय गणेश
(कविता)
नया काम कोई भी करता,
जय श्रीगणेश है नाम वो लेता।

सबसे पहले पूजा जाता,
वह हैं ऋद्धि सिद्धि के दाता।

मोदक उनको बहुत है भाता,
हम सबके वह भाग्यविधाता।

मूषक है गणपति की सवारी,
पूजें घर-घर नर और नारी।

शिव पार्वती के राजदुलारे,
गणपति जी सबके हैं प्यारे।

भक्ति करो मन से गणेश की,
हरते हैं सबके दुःख क्लेशजी।

देवलोक के तुम सरताज,
शत-शत नमन करें हे विघ्नराज।
-०-
पता: 
अतुल पाठक  'धैर्य'
जनपद हाथरस (उत्तरप्रदेश)

-०-

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Sunday, 23 August 2020

खेल (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

खेल
(लघुकथा)
 " दीदी, अपना नागेंद्र हर वक्त किताबों की दुनिया में खोया रहता है; क्या उसे व्हाट्सएप, फेसबुक, फिल्म या आइपीएल जैसे खेलों में रुचि नहीं...? "
" अब, क्या बताऊं सनोज ! मुझे तो उसकी किताबों के प्रति दीवानगी देखकर कभी- कभार डर सा लगता है। देखो न किताबें पढ़- पढ़कर कितना कमजोर हो गया है वह "
" दीदी ! पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी जरूरी है; वरना, इंसान पा....ऽऽ " तभी स्टडी रूम से झाँकते हुए नागेंद्र ने कहा।
" मामा ! विश्व के किसी ऐसे व्यक्ति का नाम बताएं जो पढ़ाई से पागल हुआ हो? .....दरअसल मामा ! मैंने पढ़ाई को ही अपना खेल मान लिया है; और खेल को ही पढ़ाई.....! "
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)


-०-



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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
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