बहुत मुश्किल से मिलते हैं दोस्त ज़माने में ।
सदियां लग जाती हैं उन्हें आज़माने में ।
पेड़ अपने आंगन के तुम जो काट रहे हो -
लहू अपना सींचा है हमने उन्हें पनपाने में ।
तूफां में हमने जिन्हें डूबने से बचाया -
उन्हें पल भी न लगा यारों ! हमें डुबाने में ।
फूलों को खुशबुओं का साथ क्या मिल गया -
बाग ने की न ज़रा देर बागवां को भुलाने में ।
झोपड़ियों से थी नफ़रत जिन आसमानों को -
उन पर वे ही लगे हैं बिजलियाॅं गिराने में ।
व्यर्थ हैं वे गीत जो किसी का दिल न छू सकें -
फूटना है कान ही अब उन्हें गुनगुनाने में ।
पेट में जो अंगारे भड़क रहे हैं ' आनन ' -
समन्दर भी कम पड़ जाएंगे उन्हें बुझाने में ।
सदियां लग जाती हैं उन्हें आज़माने में ।
पेड़ अपने आंगन के तुम जो काट रहे हो -
लहू अपना सींचा है हमने उन्हें पनपाने में ।
तूफां में हमने जिन्हें डूबने से बचाया -
उन्हें पल भी न लगा यारों ! हमें डुबाने में ।
फूलों को खुशबुओं का साथ क्या मिल गया -
बाग ने की न ज़रा देर बागवां को भुलाने में ।
झोपड़ियों से थी नफ़रत जिन आसमानों को -
उन पर वे ही लगे हैं बिजलियाॅं गिराने में ।
व्यर्थ हैं वे गीत जो किसी का दिल न छू सकें -
फूटना है कान ही अब उन्हें गुनगुनाने में ।
पेट में जो अंगारे भड़क रहे हैं ' आनन ' -
समन्दर भी कम पड़ जाएंगे उन्हें बुझाने में ।
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